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नेताओं की सुरक्षा के नाम पर करोड़ों की बर्बादी 

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हरी ओम पंजवानी

देश में अतिविशिष्ट और विशिष्ट शख्सियतों की सुरक्षा जरूरी है। यह उनको उनके ओहदे और परिस्थितियों के आधार पर बनी श्रेणियों के अनुसार उपलब्ध भी करवाई जाती है। ताकि किसी भी तरह का सुरक्षा संकट उन पर न आए। समस्या इसमें है कि कुछ व्यक्तियों और वर्गों में यह धारणा बनी हुई है कि वीआइपी सुरक्षा उनका अधिकार है और वे इसको तब भी भोगना चाहते हैं, जब वे पद से हट जाते हैं तथा उनकी जान को किसी तरह का कोई खतरा भी नहीं होता। वे इस सुख्खा को स्टेटस सिंचाल मानकर चलते हैं, जिसका त्याग करना उन्हें गवारा ही नहीं होता। केंद्र और राज्य कोई भी इससे अछूते नहीं हैं। हर जगह इस तरह के उदाहरण बड़ी संख्या में मिल जाएंगे। ताजा प्रसंग दिल्ली में निवास करने वाले 18 पूर्व केंद्रीय मंत्रियों और 12 पूर्व सांसदों से जुड़ा हुआ है। व्यवस्था के तहत पद से हट जाने के बाद सामान्य परिस्थतियों में सुरक्षा खुद-ब-खुद हट जाती है, लेकिन इन मामलों में सुरक्षा बनी हुई है। इसका भार सरकार पर ही पड़ रहा है। हां यह बताना उचित होगा कि इन सभी की बाई श्रेणी का सुरक्षा कवच हासिल है, जो काफी खर्चीली है। अगर जरूरत हो तो खर्च वहन भी किया जा सकता है, लेकिन बिना आवश्यकता और समीक्षा के इसे जारी रखना तो पैसे की बर्बादी है। इसके अलावा इसका प्रतिकूल प्रभाव निश्चित रूप से सुरक्षा के अन्य अंगों पर भी आ रहा होगा। पूर्व जनप्रतिनिधियों के सुरक्षा अमले के अलग न होने से नए जनप्रतिनिधियों के लिए नए अमले और साजो सामान की जरूरत पड़ती है। यह अतिरिक्त खर्च मांगती है। यहां इसका ओख करना जरूनी है कि देश में सुरक्षा एजेंसियों को दिया जाने वाला बजट सालों पहले एक लाख करोड़ से ज्यादा हो चुका है। संसद तक में इसकी बात होने लगी है कि जहां संभव हो सके, सुरक्षा खर्च में कटौती की जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी तक के सुरक्षा खर्च में कुछ कटौती के कदम भी देश देख चुका है। ऐसे में अनावश्यक खर्च को रोकना तो सख्त जरुप्पी है। इसके लिए सबसे पहले तो सरकार की इसकी समीक्षा करनी चाहिए कि पद से हटने के साथ ही सुरक्षा के हटने की व्यवस्था सुचारू, सतत और स्थतः क्यों नहीं है?

इस विलंब को तत्काल दूर कर देना चाहिए। किसी को भी इसे स्टेटस सिंचल की तरह काम में लेने की छूट नहीं दी जानी चाहिए। यह व्यवस्था सभी राज्यों में भी सख्ती से लागू की जानी चाहिए। एजेंसियां समीक्षा भी करें और किसी की

ओर से मांग आए ती उम्र पर गंभीरतापूर्वक विचार कर जरूनी मामलों में सुरक्षा बहाल रखने का फैसला भी हो। लेकिन, सामान्य परिस्थितियों में किसी तरह की उदारता और विलंब देश हित में नहीं है।

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