पानी की कमी से अगले 7 सालों में जीडीपी को होगा बड़ा नुकसान…भारत के सिलिकॉन वैली में लोगों ने शुरू की पानी की राशनिंग, तेजी से सूख रहे पोखर, तालाब एवं झीलें
-भारत में दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी का हिस्सा, जबकि देश के पास सिर्फ 4 प्रतिशत जल संसाधन
पानी की कमी और सूखे से जूझ रहे क्षेत्रों के लिए पानी बचाना और इसका सकुशल उपयोग करना ही समय की जरूरत बन गया है। ऐसे में विश्व स्तर पर, जनसंख्या वृद्धि के साथ स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना भारत सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। आजकल जलवायु परिवर्तन के दौर में मॉनसून और उस पर निर्भर जल संसाधनों पर बुरा असर पड़ा है। हैदराबाद में 30 झीलों का सूख जाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ताजा रिपोर्ट की मानें तो अगस्त में शहर की 185 झीलों में से 30 झीलों के सूखने की सूचना मिली थी, कुछ झीलों पर अतिक्रमण भी कर लिया गया है।
पीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार शेखपेट, कुकटपल्ली, मेडचल-मल्काजगिरी और कुतुबुल्लापुर की झीलें सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं, लेकिन ये संकट इससे भी कहीं ज्यादा बड़ा है। इस चुनौती से बचने के लिए, भारत सरकार ने 2024 तक सभी ग्रामीण परिवारों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए अगस्त 2019 में जल जीवन मिशन (जेजेएम) शुरू किया हुआ है। जेजेएम 256 जिलों में 1592 जल-तनावग्रस्त ब्लॉकों पर केंद्रित है। कार्यक्रम का उद्देश्य स्रोतों को अनिवार्य रूप से लागू करना है।
पूरे भारत की बात करें तो कई बड़ी नदियों के सूखने के साथ भारत को जल संकट के दौर से गुजरना पड़ रहा है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस तरह का गंभीर जल संकट भारत में कभी देखने को नहीं मिला था। भारत में दुनिया की आबादी का 18 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि देश के पास सिर्फ 4 प्रतिशत जल संसाधन हैं। ये भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा पानी की कमी वाले देशों में से एक बनाता है। यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में गर्मियों के आते ही पानी भारत में सोने की तरह कीमती चीज बनती जा रही है।
बता दें कि ब्रह्मांड में पृथ्वी एकमात्र ऐसा ग्रह है जिस पर पानी और जीवन संभव है। लेकिन भले ही ग्रह का 70 प्रतिशत हिस्सा पानी से ढका हुआ है, केवल 1 प्रतिशत तक ही लोगों के पास आसानी से पहुंच सकता है। यह देखते हुए कि सभी प्रकार का जीवन जल पर निर्भर हैं। घरेलू और कृषि उपयोग के लिए इसके महत्व को कम नहीं आंका जा सकता। इसके अलावा, पानी का उपयोग बिजली उत्पादन और प्रक्रिया उद्योग में किया जाता है।
अगस्त 2021 में नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (नीति) आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार के अनुसार, भारत में वाष्पीकरण के बाद वार्षिक उपलब्ध पानी 1999 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है, जिसमें से उपयोग योग्य जल क्षमता 1122 अनुमानित है। बीसीएम, भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है, जिसका अनुमानित उपयोग प्रति वर्ष लगभग 251 बीसीएम है, जो वैश्विक कुल के एक चौथाई से अधिक है। 60 प्रतिशत से अधिक सिंचित कृषि और 85 प्रतिशत पेयजल आपूर्ति इस पर निर्भर है, और बढ़ते औद्योगिक/शहरी उपयोग के साथ, भूजल एक महत्वपूर्ण संसाधन है। यह अनुमान लगाया गया है कि प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 2025 में लगभग 1400 घन मीटर तक कम हो जाएगी, और 2050 तक 1250 घन मीटर तक कम हो जाएगी। Water Crisis In India
जून 2018 में नीति आयोग द्वारा प्रकाशित ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (सीडब्ल्यूएमआई)’ नामक एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि भारत अपने इतिहास में सबसे खराब जल संकट के दौर से गुजर रहा है (लगभग 600 मिलियन लोग अत्यधिक जल संकट का सामना कर रहे थे और सुरक्षित पानी की अपर्याप्त पहुंच के कारण हर साल लगभग 200,000 लोग मर रहे थे। रिपोर्ट में आगे उल्लेख किया गया है कि जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत को 122 देशों में से 120वें स्थान पर रखा गया है, जिसमें लगभग 70 प्रतिशत पानी दूषित है।
इसमें अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक देश की पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी हो जाएगी, जिससे लाखों लोगों के लिए गंभीर कमी होगी और देश की जीडीपी में अंतत: नुकसान होगा। सीडब्ल्यूएमआई की अवधारणा राज्यों के बीच सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद की भावना पैदा करने के लिए एक उपकरण के रूप में की गई थी। यह मेट्रिक्स का एक अखिल भारतीय सेट बनाने का पहला प्रयास था जिसने जल प्रबंधन के विभिन्न आयामों और पानी के जीवनचक्र में उपयोग को मापा। जल डेटा संग्रह अभ्यास जल शक्ति मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय और सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) के साथ साझेदारी में किया गया था। रिपोर्ट को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया और राज्यों को उनके सफलता क्षेत्रों पर, पूर्णत: और अपेक्षाकृत रूप से, और उनके जल भविष्य को सुरक्षित करने की सिफारिशों पर मार्गदर्शन प्रदान किया गया। Water Crisis In India
अगस्त 2019 में जारी सीडब्ल्यूएमआई 2.0 ने आधार वर्ष 2016-17 के मुकाबले संदर्भ वर्ष 2017-18 के लिए विभिन्न राज्यों की रैंकिंग की। 2017-18 में गुजरात पहले स्थान पर रहा था, उसके बाद आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, गोवा, कर्नाटक और तमिलनाडु रहे थे। उत्तर पूर्वी और हिमालयी राज्यों में, हिमाचल प्रदेश को शीर्ष पर आंका गया। केंद्रशासित प्रदेशों ने पहली बार अपना डेटा प्रस्तुत किया, जिसमें पुडुचेरी को शीर्ष स्थान पर घोषित किया गया। सूचकांक में वृद्धिशील परिवर्तन (2016-17 से अधिक) के मामले में, हरियाणा सामान्य राज्यों में पहले स्थान पर रहा और उत्तराखंड उत्तर पूर्वी और हिमालयी राज्यों में पहले स्थान पर रहा। पिछले तीन वर्षों में सूचकांक पर मूल्यांकन किए गए राज्यों में से औसतन 80 प्रतिशत ने +5.2 अंकों के औसत सुधार के साथ अपने जल प्रबंधन स्कोर में सुधार किया है।
लेकिन चिंता की बात यह है कि 27 में से 16 राज्य अभी भी सूचकांक पर 50 से कम अंक (100 में से) प्राप्त करते हैं, और कम प्रदर्शन वाली श्रेणी में आते हैं। ये राज्य सामूहिक रूप से प्त48 प्रतिशत जनसंख्या, प्त40 प्रतिशत कृषि उपज और प्त35 प्रतिशत भारत के आर्थिक उत्पादन का योगदान करते हैं।
उत्तर प्रदेश, राजस्थान, केरल और दिल्ली, भारत के आर्थिक उत्पादन में शीर्ष 10 योगदानकतार्ओं में से 4 और भारत की एक चौथाई से अधिक आबादी के लिए जिम्मेदार, सीडब्ल्यूएमआई पर 20 अंक से 47 अंक तक के स्कोर हैं। खाद्य सुरक्षा भी खतरे में है, यह देखते हुए कि बड़े कृषि उत्पादक (राज्य) अपने जल संसाधनों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह परेशान करने वाली बात है क्योंकि सूचकांक के लगभग आधे अंकों का मूल्यांकन सीधे तौर पर कृषि में जल प्रबंधन से जुड़ा है।
बेंगलुरु समेत कई शहरों में अभी से दोगुनी कीमत पर बिक रहा पानी, बढ़ेगा और संकट,
नई दिल्ली/बेंगलुरु/भोपाल (ईएमएस)। देश में अभी गर्मी की दस्तक भले ही नहीं हुई है, लेकिन जल संकट की आहट शुरू हो गई है। जबकि गर्मी आने में अभी एक महीना बाकी है। आशंका जताई जा रही है कि देश के कई राज्यों में गर्मी में भयंकर जलसंकट हो सकता है। मौसम विभाग के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून कमजोर होने के कारण दक्षिण भारत के राज्यों के साथ ही दिल्ली, मप्र, छग, राजस्थान, महाराष्ट्र में जल संकट का सबसे अधिक असर पड़ेगा। दरअसल, इन राज्यों में पोखर, तालाब, छोटी नदियां और झीलें तेजी से सूख रही है।
जलवायु परिवर्तन के दौर में मानसून और उस पर निर्भर जल संसाधनों पर बुरा असर पड़ा है। पूरे भारत में कई बड़ी नदियों के सूखने के साथ भारत को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। इस तरह का गंभीर जल संकट कभी नहीं देखा गया है। भारत में दुनिया की आबादी का 18 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि देश के पास सिर्फ 4 प्रतिशत जल संसाधन हैं। ये भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा पानी की कमी वाले देशों में से एक बनाता है। यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में गर्मियों के आते ही पानी भारत में सोने की तरह कीमती चीज बनती जा रही है। नीति आयोग की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक बड़ी संख्या में भारतीय जल संकट का सामना करते हैं। अपनी पानी की जरूरतों के लिए भारत की अनियमित मानसून पर निर्भरता इस चुनौती को और बढ़ा रही है। इससे लाखों लोगों का जीवन और आजीविका खतरे में हैं। फिलहाल, 60 करोड़ भारतीयों पर गंभीर जल संकट मंडरा रहा है और पानी की कमी और उस तक पहुंचने में आने वाली मुश्किलों की वजह से हर साल लगभग दो लाख लोगों की मौत हो जाती है। 2030 तक देश की पानी की मांग, उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने का अनुमान है, जिससे लाखों लोगों के लिए पानी की गंभीर कमी और देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में करीब 6 प्रतिशत का नुकसान होने का अनुमान है।
40,000 करोड़ क्यूबिक मीटर से ज्यादा पानी का उपभोग
यदि पानी का सबसे ज्यादा उपभोग करने वाले देशों की बात करें तो उसमें भी भारत शामिल है, जोकि हर साल 40,000 करोड़ क्यूबिक मीटर से भी ज्यादा पानी का उपभोग कर रहा है। जबकि हाल ही में एक्वाडक्ट वाटर रिस्क एटलस में भी जल संकट का सबसे ज्यादा सामना कर रहे 17 देशों की लिस्ट में भारत को 13वां स्थान दिया है। जो देश में बढ़ते जल संकट को दर्शाता है। वहीं नाइट्रोजन प्रदूषण के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों ने पाया है कि 2050 तक पानी की किल्लत और गुणवत्ता में आती गिरावट का सामना करने वाले इन नदी बेसिनों का यह आंकड़ा बढक़र 3,061 पर पहुंच जाएगा। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि नाइट्रोजन प्रदूषण और बढ़ते दबाव के चलते इन सबबेसिनों में या तो पीने के लिए पर्याप्त पानी नहीं होगा और यदि होगा तो वो इतना दूषित होगा कि इंसानों और दूसरे जीवों के उपयोग के लायक नहीं रहेगा। इसका मतलब है कि पानी की कमी और उसकी गुणवत्ता में आती गिरावट से वैश्विक स्तर पर 680 से 780 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं, जो पिछले अनुमान से करीब 300 करोड़ ज्यादा है।
सिलकॉन वैली में सबसे खराब स्थिति
भारत का सिलकॉन वैली यानी बेंगलुरु इस समय पानी की किल्लत से जूझ रहा है। पिछली साल बेंगलुरू में साउथवेस्ट मॉनसून कमजोर रहा है। इसकी वजह से कावेरी नदी के बेसिन में पानी का स्तर कम हो गया। इस नदी से जिन जलस्रोतों में पानी भरता था, वो भी लगभग खाली हैं। बेंगलुरू के कुछ जलाशय तो सूख गए हैं। हजारों आईटी कंपनियों और स्टार्टअप्स वाले इस शहर में करीब 1.40 करोड़ लोग रहते हैं। गर्मियों के आने से पहले ही यहां के लोग पानी को दोगुने कीमत पर खरीदने को मजबूर हैं। कुछ लोगों ने अपने रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली पानी की मात्रा में कमी ला दी है। राशनिंग कर रहे हैं। बेंगलुरू के कुछ इलाकों में पानी टैंकर डीलर हर महीने का 2000 रुपए ले रहे हैं। जबकि एक महीने पहले यह मात्र 1200 रुपए था। इतने रुपयों में 12 हजार लीटर वाला पानी का टैंकर आता था। होरामावू इलाके में रहने वाले और पानी खरीदने वाले संतोष सीए ने बताया कि हमें दो दिन पहले पानी के टैंकर की बुकिंग करनी पड़ती है। पेड़-पौधे सूख रहे हैं। एक दिन छोडक़र नहा रहे हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा पानी बचा सकें।
पानी के टैंकरों से सप्लाई
लोगों को इस बात की चिंता है कि पैसे देने के बाद भी टैंकर लाने वाले आते नहीं हैं। कहते हैं कि भूजल में कमी है। पानी कहां से लेकर आएं। कई बार पानी जिस दिन चाहिए उस दिन नहीं मिलता। उसके एक-दो दिन बाद मिलता है। बैंगलोर वाटर सप्लाई और सीवरेज बोर्ड शहर में पानी की सप्लाई के लिए जिम्मेदार संस्था है। यह संस्था पूरे शहर को ज्यादातर पानी कावेरी बेसिन से खींचकर देती हैं। कावेरी नदी का उद्गम स्थल तालाकावेरी है। यह नदी पड़ोसी राज्य तमिलनाडु से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है।
79 प्रतिशत जलाशय, 88 प्रतिशत ग्रीन कवर खत्म
गर्मियों में भूजल निकाल कर पानी के टैंकरों से सप्लाई के लिए मजबूर हो जाती है। दक्षिण-पूर्व बेंगलुरु में रहने वाले शिरीष एन ने कहा कि पानी की सप्लाई करने वालों के लिए कोई नियम नहीं है। वो अपनी मर्जी से पानी की कीमतें बढ़ा देते हैं। इस साल भी उन्होंने पानी की कीमतें बढ़ाईं हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेस की स्टडी के मुताबिक एक समय था जब बेंगलुरु को बगीचों का शहर और पेंशन वालों का स्वर्ग कहते थे। वजह थी इसका मॉडरेट जलवायु। लेकिन अब पर्यावरण वैसा नहीं है। पिछले चार दशक यानी 40 सालों से बेंगलुरु ने अपना 79 फीसदी जलाशय और 88 फीसदी ग्रीन कवर को खो दिया है। इमारतों की संख्या 11 गुना तेजी से बढ़ी है।
बेंगलुरु बनता जा रहा है शहरी खंडहर
एनर्जी एंड वेटलैंड्स रिसर्च ग्रुप के प्रमुख टीवी रामचंद्र ने बताया कि पेड़ों की कटाई और इमारतों की बढ़ती संख्या की वजह से शहर के भूजल में तेजी से गिरावट आई है। बारिश का पानी जो पहले जमीन के नीचे टिकता था, अब वैसा नहीं है। ग्राउंडवाटर रीचार्ज हो ही नहीं रहा है। ऐसे में पानी की किल्लत तो होगी ही। कोलिशन फॉर वाटर सिक्योरिटी के संस्थापक संदीप अनिरुद्धन ने कहा कि बेंगलुरु अब शहरी खंडहर का सबसे बड़ा उदाहरण है। क्योंकि ये तेजी से विकसित होने वाला शहर है। ढांचागत विकास तेज लेकिन कमजोर है। यहां आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है। इसलिए प्राकृतिक संसाधनों की कमी होनी तय है।
खतरे की मार क्यों झेल रही हैं नदियां
भारतीय नदियों को जलवायु संकट, बांधों के अंधाधुंध निर्माण, और जल विद्युत की ओर बढ़ते बदलाव के साथ-साथ रेत खनन जैसे स्थानीय कारकों से गंभीर खतरा हो रहा है। बांधों और विकास परियोजनाओं की वजह से अधिकांश सबसे लंबी नदियां तेजी से सूख रही हैं। आज हमारी 96 प्रतिशत नदियां 10 किमी से 100 किमी के दायरे में हैं। लंबी नदियां 500-1000 किमी रेंज में हैं। भारत में लंबी नदियों की जरूरत है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि पानी की लगातार बढ़ती कमी की सबसे बड़ी वजह तालाबों को खोना है। 1.3 अरब से ज्यादा आबादी वाला देश जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, मानवजनित गतिविधियों, भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों और लोगों के व्यवहार के कारण अपने तालाबों को खो रहा है। भूजल की कमी प्रमुख कारणों में से एक है और अति दोहन ने स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। पानी न केवल घरों के लिए एक समस्या है। बल्कि यह खेती और उद्योग के लिए जरूरी है। तमाम जल निकाय या तालाब और झील घरेलू और कृषि उद्देश्यों के लिए बहुत जरूरी हैं। ये जल भंडारण और पानी तक पहुंच उपलब्ध कराने में मदद करते हैं। बांधों से बनी झीलें बिजली पैदा करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।