“क्या पानीदार रहेगी हमारी दुनिया” विषय पर परिचर्चा का आयोजन
इंदौर,। पर्यावरण विशेषज्ञ, लेखक और चिंतक पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि जल स्रोतों की कमी के कारण करोड़ों की जन आपूर्ति योजनाएं अपने उद्देश्यों को पूरा करने में असफल हो रही हैं। ऐसे में जल संकट से निपटने के लिए स्थानीय स्तर पर लघु परियोजनाओं का क्रियान्वयन ही प्रभावी समाधान हो सकता है। शहरी क्षेत्रों में शेष बचे कुओं का पुनरुद्धार कर उन्हें पुनर्जीवित किया जा सकता है। इन पारंपरिक जल संरचनाओं के संरक्षण और देखरेख की जिम्मेदारी स्थानीय समाज पर आधारित ‘जल बिरादरी’ को सौंपनी चाहिए, जिससे समुदाय फिर से अपनी लोक परंपराओं और जल स्रोतों पर निर्भर हो सके।

श्री पंकज चतुर्वेदी आज सेवा सुरभि द्वारा विश्व जल दिवस पर इंदौर प्रेस क्लब के सभागृह में “क्या पानीदार रहेगी हमारी दुनिया” विषय पर बोल रहे थे। इस मौके पर इंदौर नगर पालिक निगम के आयुक्त श्री शिवम वर्मा, सीईपीआरडी से जुडे डॉ संदीप नारूलकर वकत के तौर पर उपस्थित थे।
पंकज चतुर्वेदी ने किसी समय इंदौर शहर में सौ से ज्यादा बावडियां थी जो कहीं एक मंजिला तो कहीं दो मंजिला होती थी। उनमें चंपा बावडी, तात्या की बावडी, पंच कुईयां में पांच कुंए मामा साहब कुआं आदि पानी संरक्षण के मुख्त स्रोत रहे है। लेकिन इंदौर में नर्मदा का पानी आने किे बाद लोग इस पंरपरा को भूला बैठै।
पंकज चतुर्वेदी (दिल्ली) ने कहा कि मेरा इंदौर पर शब्द ऋण हैं। वो समय भी मैंने देखा हैं, जब सूरज की सुनहरी किरणें कान्ह नदी पर पड़ती थी और नदी का किनारा अवध जैसा चमकता था। हम कहां से कहां आ गए। आज शहर की जीवनरेखा मानी जाने वाली कान्ह और नर्मदा नदी की स्थिति दिनों-दिन खराब होती जा रही हैं। हमने सौन्दर्यीकरण के नाम पर गांवों को शहर बना दिया है और विकास के नाम पर हमारी शहर की बावडियों ,तालाबों कुओं आदि को पाट दिया है। कहीं ऐसा समय न आ जाए कि धरती ही प्यासी रह जाए।
श्री चतुर्वेदी ने कहा कि जल संरक्षण हमारे जीवन की आवश्यकता हैं। हम पानी की कीमत क्यों नहीं समझ रहें हैं। हम हर दिन 1.5 लाख लीटर शुद्ध पेयजल नाली में बहा रहे हैं। हम कोशिश करें कि बोरवेल की जगह कुएं के जल का उपयोग करें, वेस्ट वाटर को किचन-गार्डनिंग में उपयोग करें तो हम पानी को बचा सकते हैं।
निगमायुक्त शिवम वर्मा ने कहा कि पता नही क्यों हम पानी का महत्व नहीं समझ रहें हैं। विकसित होते शहर में पानी की मांग बढती जा रही है। जल हमारे पास सीमित मात्रा में हैं। नर्मदा का चौथा चरण आ चुका हैं। हमें जल स्रोतों के वैकल्पिक उपायों पर कार्य करना होगा। और रेन वाटर हार्वेस्टिंग को बढावा देना होगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान में 413 एमएलडी पानी का रिसाइकल हो रहा है। जिनका उपयोग गार्डन में किया जा रहा है। गंगा जल संवर्द्धन अभियान के तहत जल संरचनाओं कुएं/बावडियों के संरक्षण के लिए कार्य किया जा रहा है। 53 बावडियां और 525 कुओं का चिन्हांकन किया गया है। इंदौर भूजल के मामले में क्रिटिकल झोन में है। इससे उबरने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इंदौर ने हमेशा रास्ता दिखाया है। इंदौरियों के लिए कोई भी काम कठिन नहीं है।
पर्यावरणविद् डॉ. संदीप नारूलकर ने कहा कि हमारी जनसंख्या हर दिन बढ रही हैं। और हमारा एक बडा भू – भाग वर्षा पर निर्भर करता हैं। अब वर्षा का जल स्तर कम हो गया है। हमें जल को बचाने के लिए संकल्प लेना होगा और मांग प्रबंधन पर जोर देना होगा। हमें और युवा पीढ़ी को जल संसाधन का सही उपयोग करना सीखना-सिखाना होगा।
कार्यक्रम के दौरान संस्था की ओर से अतुल शेठ एवं ओ.पी. जोशी ने निगमायुक्त शिवम वर्मा को शहर के प्राचीन वृक्षों पर आधारित पुस्तक भेंट की, जिसमें नगर निगम से इन पेड़ों को धरोहर घोषित करने की मांग की गई। निगमायुक्त ने इस विषय पर सकारात्मक ध्यान देने का आश्वासन दिया।

कार्यक्रम की शुरुआत विश्व जल दिवस पर प्रारंभ में ओमप्रकाश नरेडा, शिवाजी मोहिते, अजीत सिंह नारंग और डॉ. उमाशशि शर्मा द्वारा गमले में लगे पौधा के अभिसिंचन के साथ हुई । अतिथि स्वागत गौतम कोठारी, एवं इंदौर स्कूल ऑफ सोशल वर्क की छात्रा यशस्वी बुर्रा ने किया। कार्यक्रम का संचालन रंगकर्मी संजय पटेल ने किया और आभार व्यक्त कुमार सिद्धार्थ ने किया। अतिथियों को स्मृति चिन्ह प्रकाश हिन्दुस्तानी, गोविंद मंगल, निकेतन सेठी ने भेंट किए।
इस अवसर पर पर्यावरणविद डॉ. ओ.पी. जोशी, डॉ. दिलीप वाघेला, अतुल शेठ, नेताजी मोहिते, सुनील चतुर्वेदी, डॉ. सम्यक जैन, मोहन अग्रवाल, कमल कलवानी, चक्रेश जैन, विपुल कीर्ति शर्मा, पंकज कासलीवाल, विनय जैन, युक्ता बर्वे, कीर्ति राणा, इंदौर स्कूल आफ सोशल वर्क के छात्र/ छात्राओं सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
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