शशिकांत गुप्ते
सीतारामजी ने आज एक बहुत मनमोहक लेख पढ़कर सुनाया।
सीतारामजी ने कहा कि,उन्होंने आज अलग तरह से लेख लिखा है।
अब हम कर्तव्यपथ पर चल रहें है। विश्वास के साथ प्रगति, विकास का हाथ थामकर दौड़ लगा रही है।
कुछ ही माह पश्चात हम एक अमेरिकन डॉलर में एक लीटर पेट्रोल खरीदने की ओर अग्रसर है। विरोधियों के बहकावे में नहीं आएंगे। देश के विकास में सहयोगी बनकर हम सहनशील बन रहे है। असहिष्णुता का ढिंढोरा पीटने वालों का साथ हम नहीं देंगे।
प्रगति ने विकास से कहा सत्तर वर्षो की बीमारी को दूर करने के लिए कड़वी दवाई पीना और खाना ही पड़ेगी।
हम तो इंसान है,पहली बार मवेशियों का चारा भी महंगा हो गया है। बेचारे मूक प्राणी सहन कर सकतें हैं, तो हम क्यों नहीं?
स्वाभाविक प्रक्रिया है। जब मवेशी महंगा आहार भक्षण करंगे तो दूध तो महंगा होगा ही। विरोधियों को इतना सामान्य सा गणित भी समझ में नहीं आता है?
प्रगति ने कहा मैने तो उसी दिन से प्याज लहसुन खाना छोड़ दिया है, जिस दिन एक आर्थिक विशेषज्ञ सलाहकार,निर्मल मना ने बहुत ही व्यवहारिक सलाह दी थी।
अब हम ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का नहीं गाएंगे
अब की बार हम आएंगे। ये देश अग्निवीरों का मात्र चार वर्ष में सेवा निवृत्त होने वालों का, युवावस्था में रिटायर्ड कहलाने वालों का।
इन युवाओं को सेवा निवृत्ति के पश्चात, लगभग ग्यारह लाख रुपयों की भारीभरकम रकम प्राप्त होगी? चौकिए मत पंद्रह लाख से सिर्फ चार लाख ही कम है।
सेवनिवृत्त होने पर उनके लिए विश्व के सबसे बड़े सियासीदल के दफ्तरों में सुरक्षाकर्मी की नौकरी अभी से रिजर्व है?
अभी तो सिर्फ आठ वर्ष ही हुए हैं, अभी अड़तालीस वर्ष बाकी है। आठ+अड़तालीस=पचास वर्ष यह कोरी कल्पना नहीं है।”अमिट” अनुमान है।
जब सक्षम हाथों में देश की बागडौर हो तो प्रशासनिक व्यवस्था एकदम चुस्त हो जाती है। जरा भी गड़बड़ की तो बुलडोजर तैयार रहता है? कानूनी प्रक्रिया में समय बर्बाद करने के बजाए। अब तो सड़क पर ही “तुरत दान महा कल्याण” की सूक्ति को चरितार्थ करने वाले अभूतपूर्व दृश्य खुलेआम दिखाई दे रहें हैं।
ना अपील ना दलील ना वकील अपराध किया तो अपराधी के तशरीफ़ पर कर्तव्यनिष्ठ पुलिस की प्रताड़ना स्वरूप उपहार मिल जाता है।
इसके बाद भी कुछ लोग आदतन विरोध करते ही हैं। उन्हें समझाने के लिए कर्तव्य की इतिश्री करता हुआ। रटारटाया संवाद सुनाई देता है। जाँच होगी दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा?
अचानक जनआंदोलनों में लगने वाला एक नारा याद आ गया। अभी तो ये अंगड़ाई है,आगे और लड़ाई है।
समझलो जब सत्तर वर्ष बाद सिर्फ अंगड़ाई लेते ही देश ने इतनी प्रगति करली है तो देखना है आगे आगे होता है क्या?
विरोधी कहतें हैं सिर्फ अंगड़ाई ने ही दिन में तारे दिखा दिए हैं तो आगे क्या होगा?
लेकिन जो लोग सबका विकास,विश्वास के साथ करने के लिए संकल्पित हैं।
वे तो अच्छेदिनों के लिए कर्तव्यपथ पर चल ही रहें हैं। पहली बार साहस के साथ नई व्यवस्था ने अपना फर्ज अदा करने के लिए एक विशिष्ठ मार्ग का नाम बदलकर कर्तव्यपथ कर दिया है।
इतंजार है, रामजी के दिव्यभव्य मंदिर के निर्माण का।
अब भगवान के भरोसे ही है भारत। यह भरोसे का नहीं आस्था का प्रश्न है?
शशिकांत गुप्ते इंदौर