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” हम मकान नहीं घर बनाते हैं ” यह नारा और किसी ने नहीं मैंने दिया था 

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कनक तिवारी 

  मैं अविभाजित मध्यप्रदेश में 3 वर्ष तक मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड का अध्यक्ष रहा। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल उस समय संचालक मंडल के सदस्य बनाए गए थे। बोर्ड को कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। एक नायाब काम बोर्ड ने किया।  प्रदेश के सबसे बड़े राष्ट्रीय ख्याति के लेखक श्री नरेश मेहता के पास खुद का मकान नहीं था। उन्हें बोर्ड ने एक बेहतरीन मकान तोहफे में भेंट किया। यह धन बोर्ड ने बोनस के रूप में कमाया था क्योंकि देश में सबसे अच्छा काम किया था। बोर्ड को देशभर के लेखकों के बीच सराहना मिली। मेरे ही समय 1996 में हाउसिंग बोर्ड को अधोसंरचना उपक्रम के रूप में भी विस्तारित किया गया। मुझे केंद्र शासन ने राष्ट्रीय आवास नीति का सदस्य बनाया। मैं  हाउसिंग बोर्ड का अकेला अध्यक्ष था जिसे यह सम्मान मिला। उस समय की नीति के अनुसार आवासहीन लोग  भाड़ा क्रय  योजना के अंतर्गत 15 वर्षों की किश्त में मकान खरीदते थे ।इससे आम जनता को फायदा होता और निजी बिल्डर्स को दिक्कत होती थी छत्तीसगढ़ बनने के बाद वह नीति नष्ट कर दी गई ।मैंने छत्तीसगढ़ के तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों को पहले भी लिखा है। मौजूदा मुख्यमंत्री को भी फिर याद दिलाता हूं ।हाउसिंग बोर्ड के मकान बिक नहीं रहे हैं। जनता के ही करोड़ों बल्कि अरबों रुपए फंस गए हैं । दो-तीन बड़े अधिकारियों को मैं जानता हूं।जिनमें आईएएस  वाले मुख्य हैं। हाई कोर्ट के टिप्स चीफ जस्टिस चीफ सेक्रेटरी डीजीपी तमाम जजों और बड़े लोगों को विधायकों सांसदों को पाश कॉलोनी में बसाया गया हाउसिंग बोर्ड की कीमत पर। जबकि वह धरती वह जमीन मध्य वर्ग के और गरीब लोगों के लिए हाउसिंग बोर्ड की नीति के अनुसार रही है। खुला भ्रष्टाचार है। वीआईपी कल्चर के लोगों ने औने पौने में हाउसिंग बोर्ड की जमीन हड़पी।जिस पर उनका नैतिक और कानूनी अधिकार नहीं था और उसे फिर बहुत महंगी दरों पर बेचा। पैसा कमाया ।रिटायरमेंट के बाद में यहां से रफू चक्कर हो गए।मूंछों पर ताव देखकर उन्होंने अरबों रुपए का भ्रष्टाचार किया है। 

इस सरकार में हिम्मत नहीं है कि उनकी जांच भी कर सके क्योंकि भ्रष्टाचार तो भाजपा शासन में हुआ है। कुछ सेवा निवृत्त आईएएस स्तर के बड़े अधिकारी भाजपा का सदस्य बनने की कोशिश करते हैं। कुछ बन भी गए हैं। ये गड़े मुर्दे नहीं हैं। जिंदा भ्रष्ट लोग हैं।इसमें सरकार का रुपया नहीं फंसा है । यह भी समझना चाहिए कि हाउसिंग बोर्ड में सरकार का पैसा नहीं लगता है।लोगों को मकानों की ज़रूरत है । निजी बिल्डर पूरे पैसे लेकर मकान बनाते हैं ।चाहे गुणवत्ता उनकी अच्छी भी क्यों न हो । हाउसिंग बोर्ड सरकारी उपक्रम भी उसी तरह पूरा पैसा अग्रिम में लेकर बनाएगा ।तो सरकारी उपक्रम में और निजी बिल्डर में फर्क क्या रहेगा?? सारे के सारे मकानों को नीति बदलकर 15 वर्ष की भाड़ा क्रय योजना में फिर से करना चाहिए ।मकानों की गुणवत्ता का ध्यान रखना चाहिए। ताकि आम जनता को सरकारी उपक्रम से सस्ती दरों पर मकान अपनी जगह पर मिल सके। मेरे ही कार्यकाल में रायपुर में दीनदयाल उपाध्याय नगर बसाया गया जहां मैंने कई पत्रकारों को नियमों को अनुकूल बनाते मकान अलॉट किए और हितग्राहियों के अलावा। भोपाल के साहित्यकार मित्रों की निराला नगर कॉलोनी में उनके सामने कठिनाई आने पर हाउसिंग बोर्ड ने मेरी अध्यक्षता में सहयोग किया और कितने शानदार कॉलोनी बन गई। मैंने महापुरुषों की स्मृति में कबीर नगर सुभाष नगर फिल्मकार किशोर कुमार की स्मृति में किशोर नागर और पत्रकार मायाराम सुरजन की नगर में मायाराम सुरजन नगर जैसी कई योजनाएं की हैं। छत्तीसगढ़ में भी पक्षी नगर मुक्तिबोध नगर बलदेव प्रसाद मिश्र नगर माधवराव सप्रे नगर मुकुटधार पांडे नगर और न जाने क्या-क्या।मुझे उम्मीद है सरकार को यह काम करना चाहिए । आजकल हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी इतने बदतमीज हो गए हैं कि लोगों के पत्र का जवाब तक नहीं देते। हाउसिंग बोर्ड की रहवासी कॉलोनी में रखरखाव ऐसा है कि उसे छत्तीसगढ़ की धारावी कहना चाहिए। क्या कहें रहवासी भी ऐसे हैं उन्होंने अपना एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया है। उसमें अपनी समस्याओं के बारे में नहीं लिखते। मनोरंजन चुटकुले फोटो थैंक यू इसी में रहते हैं। मौजूदा विभागीय मंत्री को समय ही नहीं मिल रहा है।इसलिए सबके सामने इसे पोस्ट कर रहा हूं। उन्हें मैदानी स्तर पर आकर देखना चाहिए कि हाउसिंग बोर्ड के रहवासियों को क्या बंधुआ मजदूर समझा जा रहा है?हितग्राहियों की मदद करना मेरा आज भी फर्ज है। हाउसिंग बोर्ड के एक विश्वस्त अधिकारी की मदद से मुझे पूरा कच्चा चिट्ठा मिला था भ्रष्टाचार का जिसमें बड़े लोग शामिल थे। एक जनहित समर्थक सक्रिय दोस्त ने फाइल मुझसे ले ली और कुछ करने वाले थे। दुर्भाग्य से फाइल गुम गई। समझ नहीं आता मीडिया कौरव सभा के द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह की तरह आंख कान बंद कर क्यों बैठता है? दम नहीं है क्या लिखने की?

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