-विष्णु नागर
हमने शादी की थी
तो सोचा था कि जब हमारे बच्चे हो जाएंगे
तो हम उन्हें गोद में खिलाएंगे पीठ पर बैठाएंगे
अपने पर मुत्ती कराएंगे
उन्हें गीत-कहानियां सुनाएंगे
कभी हम उन्हें डराएंगे
कभी वे हमें डराएंगे
फिर वे बड़े और बड़े और बड़े होते जाएंगे
फिर वे हमारे मां-बाप जैसे हो जाएंगे
और हम उनके बच्चे जैसे
कभी वे, कभी हम याद करके अपना बचपन
कभी हंसने और कभी उदास होने लग जाएंगे
कभी हम उन्हें समझाएंगे
कभी वे हमें
जब वे काम पर जाएंगे
तो हमसे कह जाएंगे
ये यहां रखा है और वो वहां
ठीक से रहना
भूख लगे तो खाना गरम कर खा लेना
हमें देर हो जाए तो घबराना मत
दवा टाइम पर ले लेना
और जरूरी हो तो हमें फोन कर लेना
जब वे शाम को आएंगे
हमें अच्छे बच्चे की तरह पाएंगे
तो इस तरह खुश हो जाएंगे
जैसे हम कभी हो जाया करते थे
वे बाजार से लायी कोई चीज हमें खिलाएंगे
पूछेंगे कैसी है
जब हम बेमन से कहेंगे कि अच्छी है
तो कभी तो कुछ नहीं कहेंगे
कभी हमारा चेहरा देख मुस्कुराएंगे
कहेंगे मुझे मालूम है कि
आपको बस एक ही मिठाई पसंद है
चलो कल वह लाएंगे
हम झूठ क्यों बोलें
हमने तो इसी दिन के लिए शादी की थी।