मुनेश त्यागी
अब सीता को कर देना
चाहिए इंकार अग्नि परीक्षा से।
अब हर सीता को आवाज उठानी
चाहिए गृह निष्कासन के खिलाफ।
अब हर द्रौपदी को कर देनी चाहिए
घोषणा कि नही होगा मेरा चीर हरण।
सारी औरतों को मिलकर कहना होगा
कि अब हम में से कोई नहीं होगी “देवदासी।”
हम सारी बहनें जोर से कहेंगी कि अब
हम में से कोई नहीं बनेगी “कोठों का श्रृंगार।”
सारी बहूओं को कह देना चाहिए
कि अब हम नहीं चाहेंगे दहेज की भेंट।
अब सारी द्रौपदियां मिलकर कह दें कि
अब हम नहीं लगेंगी किसी जुए में दाव पर।
अब सारी बेटियों को कह देना चाहिए
कि हम नहीं हैं दहेज में लेने देने का सामान।
अब सारी औरतों को जमाने को बता देना
चाहिए कि हम नहीं हैं मनोरंजन का सामान।
सारी बच्चियों को एकजुट
होकर कह देना चाहिए कि अब
नहीं की जायेगी गर्भ में ही हमारी हत्या।
अब हर बच्ची को अपने मां बाप
से कह देना चाहिए कि मेरे भी उतने
ही हक अधिकार हैं जितने मेरे भाई के।
अब हर बच्ची कहे कि मैं
सारे जमाने से कहूंगी कि कीजिए
सारे जुल्मियों का सामाजिक बहिष्कार।
सारी औरतों को विद्रोह का परचम
लहरा कर कह देना चाहिए कि खत्म
करो औरत विरोधी मानसिकता का साम्राज्य।
अब हर बच्ची को खुलेआम
कह देना चाहिए कि मैं मशाल
वाहक बनूंगी सभी अंधेरों के खिलाफ।
अब सारी बच्चियों को खुलकर
घोषणाकर देनी चाहिए कि हम बनेंगी
विद्रोहिनी हर जुल्मों सितम के खिलाफ।