_अब देश मे रोटी-कपड़ा-मकान औऱ चिकित्सा-शिक्षा मुद्दा नही शायद। न ये मसले अब राजनीति का विषय रह गए हैं। आम आदमी की रोजमर्रा की दिक्क़ते अब शायद संसद की चर्चा का केंद्र नही रह गई। अगर ऐसा नही है तो कहा है लोकतंत्र के मंदिर में आम आदमी? वहां तो झोले हैं। मनुस्मृति हैं। संविधान हैं। उसमें कथित बदलाव हैं। उसका अपमान हैं। आरक्षण हैं। अब बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर हैं। उन पर दिये कथित बयान पर रुद्रावतार के नज़ारे हैं।
दोनों तरफ़ से दलित हितैषी होने की होड़ मची हैं। सदन से सड़क तक बस ये ही मसले हैं। देश व देशवासी कहा हैं? आम आदमी की दुश्वार होती दाल रोटी कहां हैं? अब सब तो मुफ़्त का नही खा रहे हैं? जो पा रहें हैं, उनकी असली परेशानियो पर बात क्यो नही? आख़िर कब तक ये देश संविधान, आरक्षण, मनुस्मृति, झोले, झंडे झेलेगा? माननीयों कुछ तो रहम कीजिये। चुनाव तक चल गया। जनता की अदालत फेसल्ला हो गया न? अब तो दम ले लो माननीयों। क्यो देश व देशवासियों का दम निकाल रहें हो। कभी ‘ लूण-तेल-नमक’ को भी चर्चा का केंद्र बनाओ न। बरसो हो गए इस पर आपकी मुखरता को सुने।_*
_माननीयों, कुछ तो रहम कीजिये। आप अब भी देश को 1990 के दौर का समझ रहें हैं? अब तो सब कुछ खुला हुआ हैं। आपके बोले गए बोल, आपका किया गया कृत्य, आपका आचरण ही नही, आपकी भावभंगिमा भी अब सबको समझ आती हैं। कुछ भी तो नही छुपता अब। आप छुपाना चाहो, तो भी नही। देर सबेर सब ख़ुलासा हो ही जाता हैं। बावजूद इसके आप देश को मूढ़मति समझकर अपना आचरण कर रहें हैं। सदन के भीतर भी, बाहर भी। देश व देशवासियों की चिंता आपके आचरण में कम, पार्टी व वोटबैंक की फ़िक्र में आप ‘ दुबले ‘ हुए जा रहें हैं।_
*_आम आदमी कहा है सदन में? उसके रोजमर्रा जीवन की दुश्वारियों की गूंज कहा गुम हैं। अब सदन में आम आदमी क्यो नही चर्चा का केंद्र हैं। कभी संसद, क़भी संविधान, कभी आरक्षण, कभी अंबेडकर, कभी मनुस्मृति, क़भी झोले-झंडे। आदि आदि। इन सबके इर्दगिर्द ही आपकी राजनीति, देशनीति क्यो घूम रही हैं। इस देश को इसके अलावा कोई काम नही?या आपके पास इसके अलावा कोई काम-मुद्दा नही? आम चुनाव के बाद 4 राज्यो के अहम चुनाव भी निपट गए। इन सब मुद्दों पर बुरी तरह मुंह की खाने के बाद भी माननीय हैं कि मान ही नही रहें। महज़ दो दिन का संसद सत्र शेष हैं। मुद्दों पर बात की जगह अब बयानों-व्यक्तव्यों पर हल्का मचा रहें हैं।_*
_माननीयों, हंस रहा हैं ये देश व देशवासी आप पर। आपके इस शोर से क्या उस वर्ग का मन बदल जायेगा, जिसका आप वोट पाने के लिए मरे मरे जा रहें हैं? लहरा तो ली आपने संविधान की प्रतियां खूब। सदन में भी, चुनावी मैदान में भी। आरक्षण पर भी तो इस देश मे हल्ला मच गया न कि देश मे आरक्षण ख़त्म हो जाएगा। संविधान में आमूलचूल परिवर्तन का शोर भी तो आप सब लोग मिलकर देशभर में मचा चुके हैं। उसके बावजूद क्या हुआ? आम चुनावों में जागी उम्मीदें, तुरंत बाद हुए राज्यों के अगले चुनावो में परवान चढ़ी?_
*_नही न? वहां तो वे ही जोरशोर से सत्ता में आ गए, जिन पर संविधान में बदलाव व आरक्षण की समाप्ति का आरोप मढ़ा गया था। इतने पर भी आपका ‘ पेट’ नही भरा। अब फिर से वो ही संविधान, वो ही आरक्षण औऱ वो ही ‘ बाबा साहेब’ के ‘ हितैषी’ बनने की कलाबाजियां। आख़िर ये सब कब तक? क्या ‘ बाबा साहेब’ के अनुयायी इतने अपढ़ है या 80-90 के दौर के हैं, जो आपके शोर से रीझ जाएंगे। अब वे सब आपसे भी ज्यादा समझदार हो गए हैं। आम चुनाव में भी ओर उसके बाद हुए राज्यो के चुनावों में भी ये साफ़ हो गया कि जिस वर्ग के लिए आप सब घड़ियाली आंसू बहा रहें हैं, वह आपसे ज्यादा समझदार हैं। लेक़िन आप है कि मानने को ही तैयार नही।_*
_माननीयों, अब आप बीते दो दिन से सदन में दिये गए व्यक्तव्य पर कथित रूप से उद्वेलित हैं। सिर्फ़ आप ही। शेष को इससे कुछ लेना देना नही। या आप अपनी इस हरकत से देश को भी उद्वेलित करना चाहते हैं? देश उस व्यक्तव्य के सिर्फ एक हिस्से का नही, पूरे बयान का चश्मदीद हैं कि उस बयान का संदर्भ क्या था औऱ उसके बाद की लाइन क्या थी? सब कुछ तो लाइव था। लेक़िन आप हैं कि इसे ‘ बाबा साहेब ‘ के अपमान से जोड़कर मैदान में आकर खड़े हो गए। सदन तो ठप्प किया ही, सड़क भी रोक दी। क्या आपके पास औऱ कोई मुद्दा नही? आपकी ये हरकत संविधान के मसले पर आपकी संसद के दोनों सदन में हुई ‘ धुलाई-कुटाई’ से तो नही जुड़ी हैं? या कथित बयान की नैया के ज़रिए आप एक बार फिर स्वयम को ‘बाबा साहब’ का हितेषी औऱ सामने वालो को घोर विरोधी बताने पर अमादा हैं? संसद में तो सब कुछ रिकार्ड होता हैं औऱ दो दिन चली संविधान पर बहस में जो कुछ बोला गया, ये उसकी खीज़ हैं?_
*_एक बयान को आप अपनी भविष्य की राजनीति के लिए स्वर्ण अवसर मान रहे है तो आपके राजनीतिक प्रबंधन व तौर तरीकों पर तरस के अलावा कुछ नही आता। आप वे सब भुल गए जो संविधान की चर्चा के दौरान बाबा साहेब के साथ देश की उस वक्त की सत्ता और सत्तानशीन लोगोंद्वारा किये गए व्यवहार बताया गया। देश के एक बड़े हिस्से के लिये ये सब कुछ सुनना एकदम नया नवेला था कि क्या बाबा साहेब के साथ ऐसा हुआ था? अब देश और वो वर्ग जिसकी चिंता में आप सड़क पर हैं, वो बाबा साहेब के साथ उस दौर में किये गए व्यवहार के विषय मे जानना, समझना व सुनना ज्यादा पसंद करेगा या एक बयान पर आपके विरोध की अदा पर फ़िदा होगा? इत्ता सा भी माननीय आप समझ ही नही रहे, जो हम जैसे नोसिखिये समझ रहें हैं। फ़िर किस बात के आप बड़े नेता और सबसे पुराने राजनीति दल।_*
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