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बदलते रुखों से क्या हो रहा है ज़ाहिर ?

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सुसंस्कृति परिहार

निवृत्त मान महामहिम  रामनाथ कोविंद की सेंट्रल हाल में बिदाई इस लिहाज़ से महत्वपूर्ण मानी जा रही है कि यहां से बिदा होने वाले वे अंतिम राष्ट्रपति हैं। जहां तक उनके कार्यकाल का सवाल है वह हांजी हांजी वाला ही रहा किन्तु जाते जाते ऐसा लगा जैसे वे पिंजड़े की कैद से मुक्त हुए हों। अपने कार्यकाल में मन की बात नहीं कह पाए जो अंतिम भाषण में कह गए वह बहुत महत्वपूर्ण है। आपने कहा कि–“लोगों को अपने लक्ष्यों को पाने की कोशिश करने के लिए विरोध करने और दबाव बनाने का अधिकार है लेकिन उनके तरीके गांधीवादी होने चाहिए।”ये बात वे सी ए ए  और किसान आंदोलन के दौरान भी कहकर सरकार को सावधान कर सकते थे। आमतौर इस तरह के वक्तत्व हमारे माननीय न्यायाधीश अपने कार्यकाल समाप्ति पर देते रहे हैं जिसकी चर्चाएं आमतौर पर हुई हैं। बहरहाल उन्होंने हिम्मत जुटाकर जो बोला उसका स्वागत होना चाहिए। अप्रत्यक्ष तौर पर उन्होंने इन आंदोलनों को उचित माना।जनता को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।

सोशल मीडिया पर लोग एक वीडियो में महामहिम की बिदाई का एक दृश्य दिखाकर जिसमें प्रधानमंत्री जी  सामने हाथ जोड़े खड़े राष्ट्रपति की उपेक्षा करते कैमरे की ओर देख रहे हैं ,का सम्बंध उपयुक्त भाषण से जोड़ कर मोदीजी की नाराज़गी बता रहे हैं।यह संभव भी हो सकता है क्योंकि साहिबजी ईंट का जवाब पत्थर से देने में माहिर हैं। बहरहाल अब वे दबाव मुक्त हैं खुलकर देश को मार्गदर्शन दे सकते हैं। निश्चित तौर पर गांधी की प्रासंगिकता आज भी बरकरार है।

वहीं मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था को लेकर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की मन की टीस भी जुबान पर आई है ।गडकरी ने शनिवार को एक कार्यक्रम के दौरान साफ कह दिया कि -“कभी-कभी मन करता है कि राजनीति छोड़ दूं ,समाज में और भी काम है जो बिना राजनीति के किए जा सकते हैं गांधीजी के समय की राजनीति और आज की राजनीति में बहुत बदलाव हुआ है बापू के समय राजनीति देश समाज विकास के लिए होती थी लेकिन अब राजनीति सिर्फ सत्ता के लिए होती है उन्होंने कहा हमें समझना होगा कि राजनीति का क्या मतलब है क्या वह समाज देश के कल्याण के लिए है या सरकार में रहने के लिए ?”संघ के बहुत करीब होने के बावजूद नितिन गडकरी का गांधी की राजनीति के प्रति यह शुद्ध मन से कहीं बात भी मायने रखती है। वैसे गडकरी ही एक ऐसे केंन्द्रीय मंत्री हैं जो हिम्मत के साथ जब तब सच निडरतापूर्वक  बोलते रहे हैं।उनका काम भी सड़कों पर देश भर में बोलता है।उनका आज के दौर में यह कहना भी बहुत मायने रखता है।

गांधी की जगह गोडसे को महत्व देने वाली सरकार के लिए ये दोनों बातें हजम नहीं होंगी।इसी कड़ी में संघ और भाजपा के नंबर दो शत्रु देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल लाल नेहरू और उनका परिवार सदैव निशाने पर रहा है।आज की स्थिति यह है आज़ादी के अमृत महोत्सव के  घर घर तिरंगा अभियान के दौरान अब तक नफरती नेहरू की याद मोदीजी को करनी पड़ी इतिहास के पलों को याद करते हुए उन्होंने एक ट्वीट किया जिसमें तिरंगे से जुड़ी समिति की डिटेल शेयर करने के साथ ही पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा फहराए गए पहले तिरंगे की तस्वीर भी शेयर की है।  सच है इतिहास को झुठलाया नहीं जा सकता।

इसी तरह देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले दिनों कहा कि-“चीन पर नेहरू जी  की आलोचना नहीं कर सकता, किसी की नीति खराब हो सकती है नीयत नहीं। बहुत सारे लोग जवाहर लाल नेहरू की आलोचना करते हैं। मैं भी एक विशेष राजनैतिक दल से आता हूं. मैं भारत के किसी भी प्रधानमंत्री के आलोचना नहीं करना चाहता ।साथ ही मैं किसी भी प्रधानमंत्री की नीयत पर सवालिया निशान नहीं लगाना चाहता। नीयत में किसी की खोट नहीं हो सकता है।”ये विचार एक सुलझे हुए समझदार रक्षामंत्री के हैं।जो जवाहर लाल नेहरू की नीयत को खराब नहीं मानते।

ये तमाम लोग इस बात को भली-भांति स्वीकार कर रहे हैं कि गांधी और नेहरू देश की बुनियाद है जिस पर लोकतंत्र की इतनी बड़ी इमारत खड़ी की गईं है ।भाजपा के भक्तों और संघ के स्वयं सेवकों को इतिहास का बारीकी से अध्ययन करना चाहिए।यदि अध्ययन ना करें तो अपने नेताओं के इन बयानों से ही सीख ले लें। गांधी और नेहरू के सिद्धांतों की उपेक्षा से देश कमज़ोर हो रहा है।यह हमारे सामने है। मोदी से लेकर गडकरी तक जो कुछ भी यह सामने आया है वह देश की समृद्धि और भरपूर विकास के साथ एकता,सद्भाव और शांति का संदेश भी देता है।यह भी जताता है गांधी नेहरू के प्रति बेरुखी से ही देश झूठ और हिंसा की आग में जलने की ओर  अग्रसर है।

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