~ पवन कुमार ‘ज्योतिषाचार्य
विवाह के सन्दर्भ में उक्त मेलापक विधि से वर एवं कन्या के गुणों का मिलान हो जाता है, परन्तु मेलापक दृष्टि से गुणों के अतिरिक्त वर एवं कन्या के जन्मांगों में मंगल का विचार प्रमुख विचार होता है।
मंगल के विचार से ही स्पष्ट होता है कि वर या कन्या मंगली है अथवा नहीं? या वर और कन्या की जन्मांग मंगल दोष से प्रभावित है या नहीं? विवाह के सन्दर्भ में मंगल दोष को बहुत सावधानी पूर्वक देखना चाहिए एवं साथ ही साथ मंगल दोष के परिहार पर भी ध्यान देना चाहिए।
यद्यपि जन्मांग में मंगल दोष पर ज्यादा विवाद नहीं है परन्तु मंगल दोष के परिहार पर विवाद अधिक होने के कारण मंगल दोष के सन्दर्भ में किसी विद्वान ज्योतिषी की सलाह अवश्य लेकर ही मंगल दोष का निर्धारण करें।
*मंगल दोष पर विचार :*
सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि जन्म कुण्डली में किन-किन भावों को मंगल दोष कारक होने की संज्ञा दी गयी है।
यदि जन्म कुण्डली में मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भावों में से किसी भी भाव में स्थित हो तब कहा जायेगा कि जन्म कुण्डली में मंगल दोष विद्यमान है।
दक्षिण भारत में तथा उत्तर भारत के कुछ विद्वान द्वितीय भाव को भी मंगल का दोष कारक भाव मानते हैं।
विवाह के सन्दर्भ में जिन भावों से मंगल का दोष माना जाता है वह चक्र निम्न प्रकार है :
मंगल की स्थिति लग्न के अनुसार है। इसी प्रकार जन्म कुण्डली में जहाँ चन्द्र स्थित हो उसको लग्न मानकर भी मंगल की स्थिति की विवेचना करनी चाहिए.
इसी प्रकार जन्मांग में जहां शुक्र स्थित हो उसको लग्न मानकर यह देखना चाहिए कि मंगल उपरोक्त किन्हीं ६ भावों में तो स्थित नहीं है।
तात्पर्य यह है कि मंगल दोष में लग्न, चन्द्र लग्न एवं शुक्र लग्न से यदि मंगल उपरोक्त वर्णित भावों में स्थित है तो वह जन्मांग मंगल दोष से युक्त मानी जायेगी।
*मंगल दोष परिहार :*
मंगल के उक्त वर्णित भावों में स्थित होने से वह जन्मांग मंगल दोष से प्रभावित मानी जाती है इसमें कोई सन्देह नहीं है, परन्तु मंगल दोष के परिहार के सम्बन्ध में विद्वानों के बीच मतभेद हैं।
अतः मंगल दोष परिहार के लिये विद्वान ज्योतिषी की सलाह से ही उसका परिहार मानें। मंगलदोष से सम्बन्धित परिहार के कुछ नियम ये हैं :
१. यदि मंगल मेष राशि, कर्क राशि, वृश्चिक राशि, या मकर राशि में हो तथा मंगल चतुर्थ या सप्तम भाव पर लग्न से चन्द्र लग्न से या शुक्र लग्न से स्थित हो, तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
२. यदि मंगल मेष, मिथुन, कन्या या वृश्चिक राशि में हो तथा मंगल द्वितीय भाव पर लग्न से चन्द्र लग्न से या शुक्र लग्न से स्थित हो, तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
३. यदि मंगल मेष, वृष, तुला या वृश्चिक राशि में हो तथा मंगल चतुर्थ भाव पर लग्न से चन्द्र लग्न से या शुक्र लग्न से स्थित हो, तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
४. यदि मंगल मेष, कर्क, वृश्चिक या मकर राशि में हो तथा मंगल सप्तम भाव पर लग्न से चन्द्र लग्न से या शुक्र लग्न से स्थित हो, तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
५. यदि मंगल कर्क, धनु, मकर या मीन राशि में हो तथा मंगल अष्टम भाव पर लग्न से चन्द्र लग्न से या शुक्र लग्न से स्थित हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
६. यदि मंगल वृष, मिथुन, कन्या या तुला राशि में हो तथा मंगल द्वादश भाव पर लग्न से चन्द्र लग्न से या शुक्र लग्न से स्थित हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
७. यदि वर एवं कन्या किसी एक के जन्मांग में मंगल प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हो तथा दूसरे के जन्मांग में उक्त किसी भी भाव में शनि स्थित तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
८. सिंह लग्न और कर्क लग्न में यदि मंगल लग्न में स्थित हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
९. शनि यदि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में एक के जन्मांग में हो और दूसरे के जन्मांग में उक्त भावों में से किसी एक भाव में मंगल हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
१०. यदि राहु, मंगल या शनि जन्मांग के तृतीय, षष्ठ, या एकादश भावों में दूसरी कुण्डली में हो तो मंगल दोष नष्ट हो जाता है।
मौलिया मंगल :
जन्म कुण्डली के लग्न स्थान से प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में मंगल हो तो ऐसी कुण्डली मंगलीक कहलाती है, परन्तु उपरोक्त स्थिति यदि पुरुष जन्मांग में हो तो वह जन्मांग मौलिया मंगल वाली कहलाती हैं।
चुनरी मंगल :
यदि उपरोक्त भावों में मंगल किसी स्त्री के जन्मांग में हो तो वह जन्मांग चुनरी मंगल वाली कहलाती है।
(चेतना विकास मिशन).