कुमार चैतन्य
अपने विचारों या अपने किसी हुनर को वीडियो के माध्यम से लोगों तक पहुंचाना व्लॉगिंग कहलाता है। इस तरह से व्लॉगिंग एक अच्छा प्रयास है जिससे लोग अपने हुनर के हिसाब से जीवन में आगे बढ़ सकते है परंतु आजकल ब्लॉगिंग में ख़ुद की लाइफ को दिखाना ट्रेंड पर चल रहा है.
अब इसमें तो कोई हुनर नहीं. अपना मोबाइल उठाओ और दिन भर जो करते हो उसका वीडियो बनाओ और पोस्ट कर दो।
आजकल जिसे देखो वो ऐसे व्लॉग बना रहा है और लोग देख भी रहे हैं। किसी भी इनफार्मेटिव वीडियो से ज्यादा व्यूज इन व्लॉगस पर आते हैं। ज्यादा व्यूज,ज्यादा सब्सक्रिप्शन और फिर पैसा भी। तो ये पैसा कमाने का एक साधन भी बन गया है।
अब ऐसे व्लॉगस लोग देखते क्यों हैं? कोई अपनी जिंदगी के हर पल को वीडियो बना पोस्ट कर रहा है और चूंकि लोगों को दूसरों की लाइफ में क्या चल रहा जानने की उत्सुकता हमेशा से रही है; तो ये एक अच्छा माध्यम है दूसरों की ज़िंदगी को देखने का. जिसमें जिसकी ज़िंदगी को देखा जा रहा है उसकी भी सहमति है. ऐसे व्लॉगस फल-फूल भी रहे हैं।
फिर परेशानी क्या है? जब जो व्लॉग बना रहा और जो देख रहा सब राज़ी तो प्रॉब्लम कहां है?
प्रोब्लम है कंटेंट, अब रोज़ नया कंटेंट कहां से लाएं अपनी जिंदगी में ताकि व्यूर्स बने रहे। आपका बच्चा रो रहा उसे चोट लगी है पर पहले आप कैमरा ढूंढेंगे ताकि वीडियो बना सकें बजाय कि उसे चुप कराएं। कोई घायल है या किसी से रेप हो रहा है : तो भी यही पैटर्न.
एक व्लॉगर ने अपनी पत्नी के प्रेग्नेंसी के दौरान जो मूड – स्विंग्स होते हैं उनको भी पोस्ट किया। पत्नी नहीं चाहती कि उसकी हर अवस्था को दिखाया जाए पर कंटेंट की जरूरत तो है ही अपना चैनल चलाने के लिए. तो संवेदना का अभाव होता जा रहा है। कल वेडरूम की ऐक्टिविटीज भी आम होगी. हो भी रही है.
पहले लोग अपने घर में क्या चल रहा है, नहीं चाहते थे कि लोगों को पता चले. पर अब खुद ही सब दिखाना चाहते हैं। अपने घर की लड़ाई , दुख सब पोस्ट कर रहे है और बाकी लोग भी देख रहे है।
दूसरे की जिंदगी में क्या चल रहा उसमें क्यों अपना टाइम खराब किया जाए. तो ये भी एडिक्शन ही है जिसमें फालतू में अपना अमूल्य वक्त बर्बाद किया जा रहा है।
अब हर कोई व्लॉग बनाने की सोच रहा है. तो बच्चे क्यों इससे अछूते रहें. वो भी एडिक्टड हो रहे हैं। उन्हें भी फेमस होने का आसान तरीका इसमें दिखाई दे रहा है। वे छोटी उम्र में ही लाइक , कॉमेंट , सब्सक्राइब के जाल में फंस रहे हैं।
अगर हर बच्चा मोबाइल उठा कर व्लॉग बनाएगा तो बाकी प्रोफेशन का क्या होगा। सभी को व्लॉगर बनना है। पुलिस, वकील, डॉक्टर , इंजीनियर आदि सभी प्रोफेशन क्या नहीं रहेंगे?
व्लॉगर के अलावा कुछ और बनने के लिए तो मेहनत ज्यादा होगी. पढ़ना ज्यादा पड़ेगा और रिजल्ट आने में भी देर लगेगी. पर सोशल मीडिया पर उसी वक्त रिजल्ट। उसी वक्त लाइक , कॉमेंट। आपका कंटेंट हिट हो रहा या नहीं, उसी वक्त पता चल जाता है।
बच्चे बहुत मासूम होते हैं. उन्हें सोशल मीडिया के दलदल में फंसने नहीं देना चाहिए हमें। उनकी क्रिएटिव साइड देख कर उनका जिस ओर रुझान है , उस तरफ़ प्रोत्साहित करना है। ये काम माता पिता ही कर सकते हैं।
अगर बच्चे व्लॉग बनाना ही चाहते हैं तो उसे खाली वक्त में किया जाए और अपने हुनर को दिखाया जाए उसमें न कि अपनी ज़िंदगी को. माता – पिता की देखरेख में ये सब हो कि बच्चे क्या पोस्ट कर रहे हैं।
आपकी ज़िंदगी आपकी निजी होनी चाहिए उसे पब्लिक करना क्या उचित है। कुछ चीजें होती हैं जो हम अपने दोस्तों से साझा करना चाहते हैं और करते भी हैं. उनसे भी हम हर बात नहीं शेयर करते. लेकिन पब्लिक को सब कुछ दिखाना और कंटेंट के लिए अपने ही परिवार वालों की तरफ संवेदनहीन हो जाना सही नहीं। बच्चों को तो इससे दूर ही रखा जाए। उनकी मासूमियत को बचाया जाये, जहां तक हो सके.