नरेन्द्र नाथ
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर एक बार फिर चर्चा गर्म हो रही है। इस पर बहस तब तेज हुई, जब हाल ही में लॉ कमिशन ने लोगों से इस बारे में राय देने को कहा। तब ऐसा सियासी संदेश गया कि बीजेपी अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले इस मुद्दे को उठा सकती है। दरअसल यूनिफॉर्म सिविल कोड बीजेपी की पुरानी मांग है। लेकिन सरकार और पार्टी के लेवल पर बीजेपी अभी इस मुद्दे पर बहुत हड़बड़ी में नहीं दिखती। पार्टी इस पर व्यापक विचार और तमाम गुणा-भाग के बाद ही आगे बढ़ना चाहती है। पिछले दिनों इस पर लोगों से राय लेने की जो प्रक्रिया शुरू हुई, उसे सामान्य बताया जा रहा है। यह मामला पहले भी कई बार सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा है। हर बार कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक दायरे में सरकार को कानून बनाने का अधिकार है। जाहिर है सरकार इस पर कानून बनाने को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरत रही है।
देश की राजनीति में बीजेपी ने तीन अहम भावनात्मक मुद्दों के साथ अपनी पैठ बनाई। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना, अयोध्या में राम मंदिर बनवाना और देश में यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड लागू करना। कहीं न कहीं ये तीनों मुद्दे हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का मिश्रण रहे हैं। इनमें पहले दो मुद्दों को बीजेपी अब तक 9 साल के शासन में लागू कर चुकी है। ऐसे में कयास लगने लगे हैं कि बीजेपी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करके ही तीसरे टर्म के जनादेश के लिए जनता के बीच जाएगी।
क्या है बीजेपी की रणनीति
बीजेपी के शीर्ष नेताओं के अनुसार यह एक ऐसा पेचीदा मुद्दा है जिस पर सरकार फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाएगी। इसी साल फरवरी में संसद में सरकार की ओर से तत्कालीन कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के मामले में अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है। लेकिन सरकार ने भारत के 21वें लॉ कमिशन से अनुरोध किया था कि इससे जुड़े तमाम मसलों और मुद्दों से संबंधित सारे पहलुओं को देखकर वह अपनी राय दे।
देश में बहुसंख्यकों की यह लंबे समय से मांग है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से माना गया कि इस मुद्दे पर आगे बढ़कर मोदी सरकार चुनाव से पहले संदेश देना चाहेगी कि वह उनके हितों के साथ है। साथ ही मोदी सरकार ट्रिपल तलाक की तरह इसे भी सुधार के रूप में पेश कर सकती है। लेकिन बीजेपी और सरकार के एक शीर्ष नेता ने कहा कि इसे लागू करने से पहले कई चीजों को देखना होगा। अभी जो संकेत मिल रहे हैं, उसके अनुसार पार्टी अपने शासित किसी छोटे राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड को चरणों में लागू कर सकती है। फिर उसका प्रभाव देखकर और लोगों के फीडबैक के आधार पर पूरे देश या दूसरे राज्यों में लागू करने की ओर बढ़ सकती है। साथ ही पार्टी की मंशा यह भी है कि समानांतर रूप से इस मसले पर पूरे देश में संवाद भी जारी रहे। ऐसे में आम चुनाव से पहले भले इस मुद्दे पर बात या राजनीति हो, इसके लागू होने की संभावना कम ही दिख रही है। लेकिन जैसा कि बीजेपी के एक नेता ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी कब कोई फैसला लेकर चौंका दें, किसी को पहले से अंदाजा नहीं रहता है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करना एक पुराना वादा होने के बावजूद बीजेपी अगर इस मुद्दे पर फूंक-फूंक कर आगे बढ़ रही है तो इसके पीछे रणनीतिक कारण हैं। अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो इसका असर मुस्लिम समुदाय के साथ आदिवासी, ईसाई और सिख समुदायों पर भी पड़ेगा। नॉर्थ-ईस्ट में भी इसका प्रभाव पड़ेगा। ऐसे में इस मुद्दे का राजनीतिक जोखिम उन इलाकों में हो सकता है। वैसे बीजेपी सरकार तलाक पर पहले ही कानून बना चुकी है। अब तक मुसलमानों के अधिकतर संगठनों ने भी इस कानून को लागू करने की प्रक्रिया में खामोश ही रहने की रणनीति अपनाई है। ऐसे में बीजेपी इस बात का आकलन करना चाहती है कि अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता तो बाकी धर्मों में किस तरह की प्रतिक्रिया होगी, क्योंकि जानकारों के अनुसार इसका प्रभाव कम या ज्यादा, सभी पर पड़ेगा। ऐसे में बाकी धर्मों को मानने वाले इस बदलाव को किस तरह स्वीकार करते हैं, पार्टी यह भी देखना चाहेगी। सबसे अधिक चिंता आदिवासियों की है। उनके भी कायदे-कानून अलग रहे हैं। वे इस परिवर्तन को किस तरह स्वीकार करेंगे, इस बारे में भी बीजेपी पूरी तरह आश्वस्त नहीं है।
मिडिल क्लास की भी है चिंता
मालूम हो कि 2014 और 2019 में आदिवासी सीटों पर लगातार मिली जीत बीजेपी की सियासी सफलता के पीछे अहम वजह रही है। आजादी के बाद आदिवासियों के बीच कांग्रेस ने हमेशा पैठ बनाए रखी, लेकिन 2014 के बाद पीएम नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने इस ट्रेंड को बदला। ऐसे में यूनिफॉर्म सिविल कोड के प्रभाव के कारण बीजेपी इस लाभ को खोना नहीं चाहेगी। इसी तरह बीजेपी आम चुनाव से पहले अपना कुनबा बढ़ाकर एनडीए को मजबूत करना चाहती है। इसके लिए अकाली दल की दोबारा एनडीए में वापसी की बात चल रही है। चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं का स्टैंड भी यूनिफॉर्म सिविल कोड के विरोध में रहा है। ऐसे में चुनाव से ठीक पहले इन्हें नाराज करने का जोखिम लेना है या नहीं, बीजेपी को यह तय करना है। वहीं पार्टी इस बात का भी आकलन करेगी कि अगर यह मुद्दा सामने आता है तो इस पर जबर्दस्त राजनीतिक लड़ाई होगी। इससे विकास या दूसरा अजेंडा पीछे रह सकता है। इससे मिडिल क्लास या शहरी तबका किस तरह रिस्पॉन्स देगा, यह कहना मुश्किल है। विपक्ष इन दिनों कल्याणकारी योजना और मुफ्त की योजनाओं का वादा कर रहा है। यही कारण है कि भले बीजेपी सरकार ने इस मुद्दे पर लोगों से राय मांगने की प्रक्रिया शुरू की है, लेकिन किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले सभी पहलुओं का 360 डिग्री आकलन कर ही आगे बढ़ने पर फैसला लेगी।