राम प्रसाद यादव
तय है
लड़ाई तो है
लेकिन लड़ने वाले
लड़ाकों की तादाद
कितनी है
लड़ाई की खबर
ठीक से फैली नहीं
या फैलने से रोक दी गयी
और इसकी खबर
खबर नहीं है तो
इस खबर को
खबर बनाने की
ज़िम्मेवारी किस की है
निर्णय तो लेना है
कवि बनना है
कि खबरी बनना है
क्या पता है
कि यह लड़ाई
किस के विरूद्ध
किसके लिये है
और नहीं पता है
तो दुखद है
भीड़
युद्ध के मैदानों में होनी थी
और भीड़
मंदिर परिसर में है
आईपीएल के मैदानों
और कांवर यात्राओं में है
उद्घोषणा युद्ध की
राम की खाल में छिपा
जिस ठग रावण के विरूद्ध होनी थी
क्या ऐसी कोई उद्घोषणा है
या यह कि जो
विद्वता भीड़ को
समझाने में खर्च होनी थी
खर्च नक़ली और दिखावटी
सेमिनारों पर तो नहीं हो रही है
हम लड़ाई लड़ रहे हैं
या लड़ाई लड़ने के ढोंग
या साफ़ कहें तो
कहीं पाखंड तो नहीं कर रहे हैं
हम शायद भूल रहे हैं
लोहा लोहे को काटता है
और पारदर्शी शीशा
अपारदर्शी पत्थर से
टकरा कर चूर चूर हो जाता है
ऐसा नहीं है कि
धुआँ नहीं है
ऐसा नहीं है कि
आग नहीं है
और ऐसा भी नहीं है
कि बदन झुलस नहीं रहा है
लेकिन चर्चा मणिपुर की
न सुबह की कॉफी में है
न चर्चा कश्मीर की
शाम की चाय पर है
वह तानाशाह है
हिटलर है
हम क्या हैं
गैस चेंबर में मरते ज्यूस ???