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क्या सच क्या झूठ?

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व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा

भाई ये तो हद्द है। राहुल गांधी के यह कहने का क्या मतलब है कि मैं सच बोलने के लिए माफी नहीं मांगूंगा। अब इसमें बेचारे सच को बीच में घसीटने की क्या जरूरत है? हिम्मत है तो साफ-साफ कहिए कि संसद चले तो, और रुकी रहे तो, मैं माफी नहीं मांगूंगा। जब आप ऐसी जिद पकडक़र बैठ सकते हैं, जिसकी वजह से बेचारी मोदी जी की सेना संसद को जाम करने पर मजबूर हो गयी है, तो आप को संसद के जाम होने की जिम्मेदारी स्वीकार करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। और इस दलील के पीछे छिपने की कोशिश आप तो नहीं ही करें कि संसद ठप्प तो मोदी जी की सेना ने की है। आप तो संसद में हर आरोप का जवाब देने के लिए तैयार हैं, माफी मांगने की मांगों का भी, पर मोदी जी की सेना संसद तो चलने दे। और ये तो कोई दलील ही नहीं हुई कि यह पहली बार है कि सरकारी पार्टी ने संसद ठप्प कर रखी है। पहले नहीं हुआ, तो क्या इसीलिए अब भी नहीं होना चाहिए! पहले तो नया इंडिया भी नहीं बना था। अमृतकाल भी नहीं लगा था। पहले तो मोदी जी जैसा छप्पन इंच की छाती वाला पीएम भी कहां हुआ था। जब यह सब हो सकता है, तो सरकारी दल संसद ठप्प क्यों नहीं कर सकता है?

आपकी ये बहानेबाजी, मोदी जी के नये इंडिया में अब नहीं चलेगी। संसद ठप्प भी मोदी जी की सेना ही करे और संसद ठप्प करने की जिम्मेदारी भी मोदी जी की सेना ही ले, यह तो सरासर नाइंसाफी की बात है। डैमोक्रेसी चाहिए, तो विपक्ष भी तो कुछ करे। ताली एक हाथ से थोड़े ही बजती है। सरकारी पार्टी संसद ठप्प करने के लिए तैयार है, तो विपक्ष कम-से-कम संसद ठप्प करने की जिम्मेदारी तो ले। खैर! आप तो पहले माफी मांगकर यह साबित करिए कि आप को संसद की परवाह है, उसके चलने, न चलने की परवाह है। उसके बाद मोदी जी की सेना की संसद आप का इंसाफ करेगी। आपको अगर एंटी नेशनल नहीं घोषित होना है, तो आपको इसका भरोसा रखना और जताना ही होगा, कि मोदी जी के नये इंडिया की नयी संसद, सारे नियम-कायदों को फौलो करते हुए तय करेगी–मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए, बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाए!

और रही सच-झूठ की बात, तो जब सारे नियम-कायदों को फौलो किया जा रहा हो, तो इससे फर्क क्या पड़ता है कि क्या सच है और क्या झूठ? नियम-कायदों का फौलो किया जाना ही बड़ी चीज है। बेशक, नये भारत के नियम-कायदे नये हैं और आगे-आगे और नये आएंगे। जाहिर है कि नये भारत में नये नियम-कायदों को ही फौलो किया जाएगा, पर सब नियम-कायदे से ही किया जाएगा। क्या बताना है, क्या नहीं बताना है; क्या कहना है, क्या नहीं कहना है; क्या पूछना है, क्या नहीं पूछना है; क्या मानना है, क्या नहीं मानना है; यह भी पूरे कायदे से बताया जाएगा। क्या खाना, पहनना, किससे रिश्ता रखना है, वगैरह भी। जाहिर है कि क्या डैमोक्रेसी है, क्या नहीं है, वगैरह भी। इस तरह, पूरे नियम-कायदे से जब सच को झूठ में और झूठ को सच में बदल ही दिया जाएगा, तो इससे फर्क ही क्या पड़ता है कि कोई किसे सच मानता है और किसे झूठ!                                                   

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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