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वादों का क्या,वफा होनी चाहिए?

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शशिकांत गुप्ते

हम सबसे अलग हैं। इसलिए हम सिर्फ और सिर्फ वादें ही करतें हैं।
हम सबसे अलग हैं, इसीलिए हम शाब्दिक विकास और विश्वास दोनों को साथ लेकर चलते हैं। हम हमारे शाब्दिक विकास और विश्वास,उदासीन न हो इसलिए शाब्दिक प्रगति को उनके साथ ही रखतें हैं।
उक्त कथन की पुष्टि के लिए हम यह शेर भी पढ़ते हैं
मको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के खुश रखने को “ग़ालिब” यह ख्याल अच्छा है

इतना लिखा हुआ पढ़कर सीतारामजी ने मुझसे कहा आप तो तंज़-ओ-मज़ाह के लेखक हो?
आपको तो शायर फ़ैज़ साजिद यह शेर लिखना चाहिए।
बस्ती में तुम ख़ूब सियासत करते हो
बस्ती की आवाज़ उठाओ तो जानें

आगे लिखों कसमें वादें प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या?
जो कहते हैं, हम सबसे अगल हैं,उन्हे शायर ख़्वाजा साजिद यह शेर सुना दो।
कल सियासत में भी मोहब्बत थी
अब मोहब्बत में भी सियासत है

जब तंज की बात करनी है तो शायर मुनव्वर राणा का यह शेर भी लिख दो।
बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है
बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है

सिर्फ कह देने से अलग है,साबित नहीं होता है। पहले इस सवाल का जवाब चाहिए,जो इस शेर के माध्यम से शायर सागर खय्यामी ने पूछा है।
कितने चेहरे लगे हैं चेहरों पर
क्या हकीक़त है और क्या सियासत है

लेखक का फर्ज होता है,शब्दों के माध्यम से आमजन को यथार्थ से
अवगत करना।
इस संदर्भ में यह शेर एकदम मोजू होगा। शायरा मोहतरमा तरन्नुम कानपुरी फरमाती हैं
ऐ काफ़िले वालों, तुम इतना भी नहीं समझे
लूटा है तुम्हे रहजन ने, रहबर के इशारे पर

सीतारामजी से अपनी बात को विराम देते हुए कहा,समझने वाले समझ जाएंगे। बस एक शेर शायर लाला माधव राम जौहर यह शेर सटीक है।
भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया
ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते
हैं

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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