विजया पाठक,
भोपाल। बतौर स्वास्थ्य आयुक्त रहते हुए 14 साल पहले इंजेक्शन की खरीदी में किए गए हेरफेर मामले के मास्टर माइंड आईएएस अफसर डॉ. राजेश राजौरा के कारनामों की फाइले दिन प्रतिदिन खुलती जा रही है। मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले आईएएस राजौरा के खिलाफ विशेष कोर्ट द्वारा दोबारा से शुरू की गई जांच की कार्यवाही को लेकर प्रदेश के आईएएस अफसरों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है।
कई लोग तो यह तक भी कह चुके है कि मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार राजौरा पर किसी भी प्रकार का कोई केस नहीं बनेगा और इस जांच रिपोर्ट को आने वाले समय में समाप्त कर दिया जाएगा। खैर, यदि ऐसा होता है तो यह प्रदेश का दुर्भाग्य होगा कि एक अफसर होने के नाते अपने पद का दुरपयोग करने के बावजूद भी दोषी पर कारवाई किए जाने की बजाय उसे निर्दोष करार देने की तैयारी की जा रही है। जानकारी के अनुसार डॉ. राजौरा अपने आईएएस कार्यकाल के दौरान जिन विभागों में भी पदस्थ रहे है उन्होंने वहां सिर्फ मनमानी की और पैसों का बंदरवाट किया। यही वजह है कि कुछ वर्ष पहले आयकर विभाग ने राजौरा के घर में छापेमार कार्यवाही की थी और वहां से नकदी समेत कई महत्वपूर्ण दस्तावेज और आभूषण बरामद किए थे। यही नहीं सुनने में तो यह भी आया कि राजौरा का नाम मद्य प्रदेश के बहुचर्चित हनी ट्रैप मामले में भी रहा है। अपना नाम सामने आने के डर से राजौरा तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के शरण में पहुंचे और उन्होंने इस पूरे मामले से उन्हें बाहर रखने की गुजारिश की थी। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को डॉ. राजेश राजौरा के कारनामों के काले चिट्ठों को एक बार फिर से ध्यानपूर्वक पढ़ते हुए उन पर उचित कार्यवाही किए जाने के आदेश जारी करना चाहिए, ताकि दोबारा फिर कोई आईएएस अफसर इस तरह से पद का दुरपयोग न करें। हालांकि भ्रष्टाचार, पद का दुरपयोग करने वाले अफसरों की लंबी फेहरिस्त है जिनकी बात हम अगले कुछ दिनों में करेंगे। फिलहाल डॉ. राजेश राजौरा पर चल रही इस जांच की कार्यवाही को गति मिलनी चाहिए, ताकि दोषियों को सजा मिल सके। जाहिर है कि 14 साल पहले डॉ. राजेश राजौरा के निर्देश पर बिना आवश्यकता के 37 लाख रुपए के इंजेक्शन की खरीदी की थी। यह इंजेक्शन महिलाओं के इलाज के नाम पर खरीदे गए थे। क्रमश…