अखिलेश अखिल
प्रधानमंत्री मोदी का दंभ ख़त्म हुआ है या अभी हालात की वजह से दंभ पर नियंत्रण कर लिया गया है यह तो वही जानें लेकिन जिस तरह के परिणाम सामने आये हैं उसने मोदी को हिला कर रख दिया है। मोदी अभी बेचारा बने दिख रहे हैं। उनकी बेचारगी से उनके अंधभक्त रुदाली करते नजर आ रहे हैं। आलम ये है कि जब बाहर वाला या फिर भीतर वाला कोई नेता मोदी के सामानांतर किसी और बीजेपी नेता का नाम पीएम पद के लिए लेता है तो अंधभक्तों की त्योरियां चढ़ जा रही हैं।
अनाप-शनाप बोल उनके मुंह से निकल रहे हैं और देहाती भाषा में कहें तो अंधभक्त गाली देने से बाज नहीं आते। अंधभक्त कहते हैं कि मोदी जैसा कौन है? इस देश को मोदी ही चला सकते हैं। बीजेपी के दूसरे नेता मोदी जैसा नहीं हो सकते। और बड़ी बात तो यह है कि देश के कई इलाकों से इस तरह की खबरें भी आ रही हैं कि मोदी के अंधभक्त कई रातों से सो नहीं पा रहे हैं। कुछ ने तो खाना भी त्याग दिया है।
अयोध्या में इस बार बीजेपी की हार हो गई। हार तो चित्रकूट में भी हुई लेकिन अयोध्या चूंकि भगवान राम से जुड़ा स्थल है और बीजेपी वालों के साथ ही अंधभक्तों को लग रहा था कि जो राम को लाये हैं भला उनकी हार अयोध्या से कैसे हो सकती है? लेकिन हुआ कुछ ऐसा ही। अब अंधभक्त आपे से बाहर हैं। अयोध्या के आम लोगों को गरिया रहे हैं और उन्हें भविष्य में दण्डित करने की बात भी कर रहे हैं।
एक अंध भक्त आज इस पत्रकार से टकरा गया। वह कहने लगा कि ”इस देश के लोगों को शर्म भी नहीं आती। बताइये तो अयोध्या वाले भी बीजेपी को हरा दिए। भगवान राम क्या सोच रहे होंगे? जिस बीजेपी और मोदी ने अयोध्या के लिए क्या-क्या नहीं किया अब वही अयोध्या उन्हें चिढ़ा रहा है। घोर कलयुग है। बताइये तो भगवान के अवतार को कहीं हराया जाता है? अगर भगवान के अवतार ही हारने लगे तो यह देश कैसे चलेगा?”
अंधभक्तों की एक लम्बी फ़ौज इस देश में पिछले दस सालों में खड़ी हो गई है। इन्हें मूर्ख भी तो नहीं कहा जा सकता। इनमें से बहुत से लोग डिग्री धारी भी हैं। लेकिन हां अंधभक्त। ऐसा अंधभक्त जिसकी कल्पना भी आप नहीं कर सकते।
चुनाव परिणाम चाहे जो भी आये हों लेकिन एक सच तो यही है कि मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनते दिख रहे हैं। भले ही उनकी पार्टी को पहली बार मोदी के इस स्वर्ण काल में बहुमत नहीं मिला। 240 सीटों पर ही बीजेपी सिमट गई। एनडीए को मिलाकर कुल 293 सेट ज़रूर आई है जबकि इंडिया गठबंधन के पास कुल 234 सीटें हैं। जाहिर है इंडिया गठबंधन भले ही सरकार बनाने से पीछे है लेकिन एक मजबूत विपक्ष के खड़ा होने से बीजेपी समेत शाह और मोदी की परेशानी ज्यादा ही बढ़ गई है।
मोदी तो एकदम शांत हो गए हैं जबकि शाह आराम की मुद्रा में चले गए हैं। कहने को सरकार बनाने की प्रक्रिया में अमित शाह ज़रूर दिख रहे हैं लेकिन एनडीए के भीतर अब जिस तरह की बातें अमित शाह को लेकर की जा रही हैं, शायद वह पहले नहीं की जाती थीं। आगे और भी क्या कुछ होना है यह देखने की बात होगी।
बीजेपी के लोग कह रहे हैं कि मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे और फिर उनका सपना पूरा हो जाएगा। आखिर मोदी का दमित सपना क्या है? यह बात और है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने दमित सपने को कभी उजागर नहीं किया लेकिन बीजेपी के लोग और भगत जन ही कहते हैं कि उनका सपना देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू की बराबरी करने का रहा है। नेहरू जी तीन बार देश के पीएम बने थे और मोदी भी कुछ ऐसा ही चाहते हैं। अगर यह सपना पूरा हो जाएगा तो मोदी जी धन्य हो जायेंगे। देश विकसित हो जाएगा और देश में राम राज्य भी आ जाएगा।
लेकिन जब भगत लोगों से नेहरू की बराबरी की बातें की जाती हैं तो वे यह भी कहते हैं कि यह बात सच है कि नेहरू जब भी देश के पीएम बने उन्हें अपार बहुमत भी मिला था। जनता का उन पर खूब यकीन भी था लेकिन मोदी जी भी कम नहीं। परिणाम चाहे जो भी है प्रधानमंत्री तो बन ही रहे हैं।
भक्तों की बहस अंतहीन है। यह पहली बार देखने को मिल रहा है कि आम जनता में तो मोदी के प्रति भक्ति है ही देश की अधिकतर मीडिया से जुड़े लोग भी भक्ति में लीन है। एक बड़े चैनल के संपादक ने जो कहा वह बड़ी बात थी। सम्पादक महोदय ने कहा कि बीजेपी को नीतीश कुमार और चंद्रबाबू का साथ नहीं लेना चाहिए। उन्हें धोखा मिल सकता है। ये दोनों नेता कभी भी मोदी को धोखा दे सकते हैं। नीतीश कुमार और नायडू समाजवादी लोग हैं। ये दलित, पिछड़े और मुसलमानों के हिमायती हैं।
इनके साथ गठबंधन ठीक नहीं है। असली कहानी तो तब होती जब मोदी उद्धव शिवसेना और शारद पवार को ही अपने साथ ले आते। राजद और कांग्रेस को तोड़ देते। और ऐसा करके ही मोदी पांच सालों तक सरकार चला सकते हैं। लेकिन मजे की बात तो ये हो गई कि जब संपादक महोदय से यह पूछा गया कि मोदी तो यही काम करते रहे हैं। तब उनका जवाब था कि यह उनका विशेषाधिकार है। वे कुछ भी कर सकते हैं और जो भी करते हैं देश के कल्याण के नाम पर ही करते हैं।
इस संपादक से एक सवाल किया गया कि जब वे 75 साल के हो गए हैं और बहुमत भी नहीं ला पाए तो फिर क्यों पीएम बनने को उतावले हैं तब संपादक का जवाब मजेदार था। उन्होंने कहा कि यह नियम तो पार्टी के अन्य नेताओं के लिए है। मोदी तो जब तक ज़िंदा रहेंगे उन्हें इस पद पर बने रहने का अधिकार है। इस देश में मोदी जैसा कौन है जो देश को चलाएगा? आप इन तर्कों पर हंस सकते हैं लेकिन देश की मीडिया की असलियत यही है।
अब कुछ मुद्दे की बात हो जाए। खबर है कि महाराष्ट्र वाले फड़नवीस ख़राब चुनावी परफॉर्मेंस को लेकर इस्तीफा देने वाले हैं। इधर इसी के बहाने यूपी के सीएम योगी को भी टारगेट किया जा रहा है। संभव है कि आने वाले दिनों में बीजेपी के भीतर कोई बड़ा परिवर्तन देखने को मिल सकता है। लेकिन सवाल तो यही है कि इस बार लोकसभा का चुनाव मोदी के नाम पर ही लड़ा गया था। हर जगह मोदी की तस्वीर थी। हर जगह उनकी रैली हो रही थी। हर जगह सिर्फ वही बोल रहे थे और फिर उनके बाद शाह की तस्वीर और आवाज दिखाई और सुनाई पड़ रही थी।
अगर मोदी चार सौ पार हो जाते हैं तो उनकी पूजा और भी बढ़ जाती और अब हर जगह से उनको डेंट लगा है तो सभी का ठीकरा प्रदेश के क्षत्रपों पर फोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। मोदी का यह खेल भ्रमित कर रहा है। ऐसे में एक बड़ा सवाल तो यही है कि जिस शिवराज सिंह ने इस बार फिर से मध्यप्रदेश में सभी 29 सीटों को हासिल किया है क्या उन्हें पीएम बनाया जा सकता है? मोदी इस तरह का त्याग कर सकते हैं? सच तो यही है कि अगर एमपी से सभी सीटें बीजेपी को नहीं मिलतीं तो मोदी का तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का सपना भी रह जाता।
लेकिन मोदी का जो सच है वह यही है कि वह अपने सामने किसी को खड़ा होने नहीं देते। जीत की जिम्मेदारी वे खुद लेते हैं लेकिन हार की जिम्मेदारी लेने के लिए सामने वालों को बाध्य करते हैं जैसा कि योगी के साथ किया जा रहा है। सच मानिये योगी को बदलने की कोशिश हुई तो बीजेपी का क्या हश्र होगा यह वक्त ही बता सकता है। लेकिन थेथर राजनीति की इसी बानगी के जरिये बीजेपी की राजनीति सरपट भागती दिख रही है।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)