भारत जैन
लोकसभा चुनाव के लिए देश का सबसे महत्वपूर्ण राज्य है उत्तर प्रदेश। भाजपा के बाद विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है समाजवादी पार्टी । लेकिन इस राज्य की आगामी चुनाव के संदर्भ में कोई चर्चा नहीं है । ऐसा नहीं लगता कि सपा के वर्तमान मुखिया और प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चुनाव के मैदान में सक्रिय भी हैं ।
अभी डेढ़ साल से भी कम समय पूर्व अखिलेश विधानसभा चुनाव में अपनी जीत के प्रति आश्वस्त दिख रहे थे । मगर बहुत दूर रह गये लक्ष्य से और उसके बाद बिल्कुल निष्क्रिय हैं जमीन पर । केवल ट्विटर पर बयानबाजी के अलावा और कोई राजनीतिक गतिविधि नज़र नहीं आ रही है । भाजपा , जो 365 दिन और चौबीसों घंटे चुनावी तैयारी में रहती है , से मुकाबला करने के लिए लगातार ज़मीन पर राजनीतिक सक्रियता ज़रूरी है ।
अखिलेश और राहुल 2017 के विधानसभा चुनाव में एक मंच पर थे मगर अब लगभग कोई संबंध नहीं है । लेकिन छह साल में राहुल एक जुझारू नेता की छवि बनाने में कामयाब हुए हैं तो अखिलेश की छवि कुछ धूमिल ही हुई है । उत्तर प्रदेश जैसे समस्याओं से घिरे राज्य में केवल सोशल मीडिया की मार्फ़त राजनीति करना आत्मघाती सोच है ।
जिस तरह के हालात आज हैं उसमें यदि बदलाव नहीं आया तो 2024 के चुनाव में सपा लगभग लुप्त हो जाएगी और भाजपा को लोकसभा चुनाव में वाॅकओवर ही मिल जाएगा । अखिलेश यादव को लगता है कि भाजपा विरोधी वोट उनकी झोली में गिरना तय है । लेकिन भाजपा विरोधी वोट बुरी तरह बंट जाएंगे और लाभ भाजपा को ही होगा ।
अखिलेश यादव को शायद इस बात का अहसास नहीं है कि 2024 का लोकसभा चुनाव उनके राजनीतिक अस्तित्व पर विराम लगा सकता है ।