–सुसंस्कृति परिहार
जन्नत के नज़ारे का अहसास कराने वाले जम्मू कश्मीर में पिछले आठ साल से राष्ट्रपति शासन है। 2014में हुए चुनाव में सत्तारूढ़ सरकार को दो साल बाद बर्खास्त कर दिया गया ।उसके बाद से यहां केंद्र की मनमानी चल रही है।इस आठ साला दौर के बीच वहां बिना विधानसभा के कई असंवैधानिक निर्णय भारत सरकार ने ना केवल लिए बल्कि उन्हें सख्ती से लागू भी कराया गया है। आतंकवाद से निजात दिलाने के नाम पर धारा 370 की एक व्यवस्था से छेड़छाड़ की गई। उस पर विधानसभा की राय ली जाना चाहिए थी। वहां राज्यपाल की राय लेकर षड्यंत्र पूर्वक नया कानून लागू किया गया इसके तहत् कश्मीरी अवाम को इस तरह घरों में कैद किया गया जितनी पाबंदियां जेल में भी नहीं रहती। बमुश्किल कश्मीर के लोग आतंक के साए से छुटकारा पाने इसे सहते रहे लेकिन उनकी इस नज़रबंद पाबंदी का कोई सुफल सामने नहीं आया।आतंकी ताकतें आज भी बराबर सक्रिय हैं।
दूसरा आमशुमारी किए बगैर इस राज्य का पूर्ण दर्जा छीनकर, लद्दाख को अलग कर जम्मू-कश्मीर को इसे केंद्र शासित राज्य घोषित कर दिया गया। इतना ही नहीं इसके लद्दाख वाले हिस्से को विभाजित कर उसे अलग से केंद्र शासित राज्य बनाया गया ।इससे ये समूचा राज्य केंद्र शासित हो गया।यानि यहां भारत सरकार का आधिपत्य कायम हो गया। इसकी वजह से यहां हिंदू, मुस्लिम और बौद्ध लोगों के बीच तनाव को पैदा किया गया।
इन तमाम उथल-पुथल के बीच यहां के राजनैतिक दलों के नेताओं को नज़रबंद रखा गया ताकि अवाम से उनका मेल जोल ना हो सके और भाजपा की राह आसान हो सके। लेकिन नगर और जिला पचायतो के चुनाव में भाजपा का कोई नाम लेवा नहीं रहा। लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने अपनी फजीहत ना करवाने बावत अपने उम्मीदवार भी नहीं उतारे।
इसलिए भारत सरकार ने राज्य चुनावों को नहीं कराना उचित समझा ।जब जब चुनाव की मांग उठी आतंक की घटनाएं बढ़ जाती हैं।राग मर्सिया शुरू हो जाता है। इस बार देश के सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकों के मौलिक अधिकार ‘अपनी सरकार’ के लिए भारत सरकार को सितंबर के पूर्व चुनाव कराने कहा है।अगस्त माह प्रारंभ हो गया देखिए चुनाव होते हैं या नहीं।भारत सरकार खुद अब और तब जाने की स्थिति में है और अपने समीकरण बनाए रखने की जुगत में मशगूल हैं इसलिए मुश्किल लगता है ये चुनाव सम्पन्न होंगे।
जबकि जम्मू कश्मीर का अवाम सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के मुताबिक चुनावी तैयारी में जुट चुका है। निर्णय केंद्र सरकार और उसके गुलाम चुनाव आयोग को लेना है। वहां की अवाम अपनी सरकार वापसी जल्दी चाहती है। भाजपा भली-भांति समझ रही है यदि चुनाव होते हैं तो विधानसभा के चुने प्रतिनिधि उन निर्णयों को वापसी का भी आदेश जारी कर सकते हैं जो असंवैधानिक हैं। उन्हें यह भी भली-भांति मालूम है कि प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा के दौरान जो मोहब्बत यहां मिली है वह बड़ी बाधा हो सकती है।
खास बात ये भी है कि कश्मीरी सेब, अखरोट और बादाम जैसे यहां के उत्पाद को इन आठ वर्षों में वहां के किसानों से सस्ते में छीनकर अडानी कंपनी विदेश भेजकर भारी भरकम फायदा ले रही है। कश्मीर के तमाम उत्पादों से कश्मीरवासी ही वंचित हैं फिर हम सब की क्या औकात इसे खरीदने की। देश भर कश्मीर के नाम का जो उत्पाद मिल रहा है वह विदेश से आया रद्दी सस्ता माल है जो पुराने असली कश्मीर के माल से दो-तीन गुना ज़्यादा मंहगा है।सारा लाभ दोनों ओर से अडानी की झोली में जा रहा है। कश्मीरी अपने इस व्यवसाय में घाटा सह रहे हैं।यदि उनकी अपनी सरकार बनती है तो वे पूर्ण राज्य का दर्जा भी मांगेंगे जो अपने माल को खुद अपने दाम पर बेचेगी।
अफसोसजनक सच यह भी है यहां जनता की आवाज़ मुखर करने वाले पत्रकारों पर भी पाबंदी है कई पत्रकार जेल में हैं। जनता की आवाज़ का दमन हो रहा है पता नहीं कब कश्मीर की इन वादियों में खिलखिलाहट और सुकून देखने मिलेगा ।
कुल मिलाकर दोनों केन्द्र शासित राज्यों में अतिशीघ्र चुनाव की घोषणा होनी चाहिए।ताकि राज्य के लोग अपने मूलाधिकारों से वंचित ना रह पाएं यह विश्व के बड़े लोकतांत्रिक गणराज्य भारत के लिए अपनी प्रतिष्ठा कायम रखने भी बहुत ज़रूरी है।