लेखिकाः बिनालक्ष्मी नेप्रम
अंग्रेजों ने तो 200 साल तक राज करने के बाद भारत छोड़ा पर उनके जाने के कुछ ही बाद बाद भारत ने 11 सितंबर, 1958 को पूर्वोत्तर भारत पर सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (आफ्स्पा) लागू कर दिया। वैसे पहली बार आफ्स्पा 15 अगस्त, 1942 को ब्रिटिश वायसराय लिनलिथगो ने भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 72 के तहत लागू किया था। लिनलिथगो को सबसे अनुदार गवर्नर जनरलों में गिना जाता है। इसे लागू करने का मकसद सशस्त्र बलों के कुछ अधिकारियों को विशेष अधिकार देना था। मणिपुर और नॉर्थ ईस्ट को इस मार्शल लॉ के चलते बलात्कार, गिरफ्तारी और यातना का लंबा सिलसिला भुगतना पड़ा है। अब तक कम से कम 20,000 लोग मारे गए हैं। इस अधिनियम के तहत सशस्त्र बलों को कोई भी अपराध करने की पूरी छूट मिल जाती है।
नगालैंड और पूर्वोत्तर के इतिहास में 4 और 5 दिसंबर 2021 काले दिन के रूप में याद किए जाएंगे। नगालैंड के मोन जिले में एक असफल काउंटरइन्सर्जेंसी ऑपरेशन और इसके दुखद परिणाम के रूप में कोन्याक मूलनिवासी समुदाय के 14 लोग मारे गए। इस घटना ने पूरे नॉर्थ ईस्ट को झकझोर कर रख दिया और आफ्स्पा निरस्त करने की मांग फिर से तेज हो गई। केंद्र में सत्तारूढ़ दल की सहयोगी पार्टियों से जुड़े दो मुख्यमंत्रियों ने भी आफ्सपा निरस्त करने की मांग की है। इसके चलते नगालैंड का हॉर्नबिल महोत्सव रुक गया, इंटरनेट बंद करके लॉकडाउन लगा दिया गया। इलाके भर में काले झंडे लहराए गए और भारतीय सेना वापस जाओ के नारे वाले पोस्टर लगाए गए।
यह कोई पहली बार नहीं है जब इस तरह से नागरिकों को मारा गया हो। 1958 से इधर बड़े पैमाने पर हत्याएं हो रही हैं। हममें से बहुतों के घर उन जगहों के आसपास हैं जहां पर ऐसे कांड हुए। मसलन, इम्फाल में हीरांगोइथोंग कांड जहां हुआ था, मैं उसी इलाके में पली-बढ़ी हूं। वहां 1984 में वॉलिबॉल मैच देख रहे 14 नागरिकों को सीआरपीएफ ने गोली मार दी थी। ऐसी अन्य घटनाओं में उल्लेखनीय है मणिपुर का मालोम कांड जिसमें 10 नागरिक मारे गए थे और 1995 का रिम्स कांड जिसमें एक मेडिकल छात्र सहित नौ नागरिक मारे गए थे।
पिछले 63 सालों से आफ्स्पा के लागू रहने से सुरक्षा बलों को जैसे हत्या का लाइसेंस मिल गया है। भारत दुनिया का इकलौता देश है जहां बगैर किसी युद्ध के ही एक इमरजेंसी मार्शल लॉ लगा हुआ है। मणिपुर बीजेपी ने 2014 के अपने चुनावी घोषणापत्र में आफ्सपा को खत्म करने की बात कही थी, मगर वह अब चुप है। भले ही नगालैंड और केंद्र सरकार ने जांच की मांग की हो, लेकिन आफ्स्पा भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा किए गए हर गलत काम की सुरक्षा करता है।
ध्यान रहे कि आफ्स्पा को खत्म करने की मांग सशस्त्र बलों के खिलाफ नहीं है और न ही यह कोई राष्ट्र-विरोधी कार्य है। सशस्त्र बल निहत्थे नागरिकों को मारने के लिए नहीं हैं। वे सीमा सुरक्षा के लिए हैं। आफ्स्पा को निरस्त करने की मांग दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत से लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सच्चे रहने को कहने का साहस है। अगर कोई विधानसभा ‘अशांत क्षेत्र अधिनियम’ के टैग को वापस ले ले तो सेना आफ्स्पा के तहत आकर काम नहीं कर सकती। नगालैंड और पूर्वोत्तर के लोगों को अपने प्रतिनिधि चुनते वक्त भी इस बारे में साफ-साफ सोचना होगा।
पूर्वोत्तर में ऐसे कांडों का अब तक का जो अनुभव रहा है, उसके मद्देनजर यह उम्मीद ही की जा सकती है कि सोमवार को हुई हत्याएं मुआवजा, सरकारी नौकरी देकर न्याय से वंचित कर देने की परिणति की ओर नहीं जाएगी। आज तक नॉर्थ ईस्ट में रेप, यातना और हत्या जैसे अपराधों में शामिल किसी भी सुरक्षाकर्मी को जेल में नहीं डाला गया है।
विश्वास बहाली का सबसे बड़ा उपाय आफ्स्पा का खात्मा ही हो सकता है। आफ्स्पा भारत के संविधान के साथ-साथ मानव अधिकारों और मूलनिवासियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की घोषणा का उल्लंघन करता है। अधिनियम को हटाने से यह दिखाई देगा कि हम देश में बराबर के नागरिक हैं।
(लेखिका मणिपुर विमिन गन सर्वाइवर्स नेटवर्क की संस्थापक-निदेशक हैं)