अग्नि आलोक
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वो सुबह अभी कहां आई है?

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मुनेश त्यागी

जब सबको रोटी मिल जाएगी
जब घरों में भूख ना छायेगी,
जब सबके पेट भर जाएंगे
जब इंसानियत करम फरमायेगी।
वो सुबह अभी कहां आई है?

जब जातिवाद मिट जाएगा
जब वर्णवाद मर जाएगा,
जब सांप्रदायिकता पिट जाएगी
जब सामंतवाद ढह जाएगा।
वो सुबह अभी कहां आई है?

जब सबका विकास हो जाएगा
जब सबको शिक्षा मिल जाएगी,
जब समता समानता छा जाएगी
जब असमानता मिटा दी जाएगी।
वो सुबह अभी कहां आई है?

जब पापों के घरोंदे फूटेंगे
जब जुल्मों के बंधन टूटेंगे
जब शोषण के शिकंजे टूटेंगे
जब अमानवता के बंधन टूटेंगे
वो सुबह अभी कहां आई है?

जब कैदी कैद से छूटेंगे
जब जेल के फाटक टूटेंगे,
जब बेगुनाह जेल न जाएंगे
जब फांसीघर ढह जाएंगे
वो सुबह अभी कहां आई है?

जब घनघोर अंधेरा मिट जाएगा
जब चहूं ओर प्रकाश छा जाएगा,
जब आसमान भाईचारा बरसाएगा
जब न्याय का परचम लहराएगा
वो सुबह अभी कहां आई है?

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