अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

मध्यप्रदेश में’आरक्षण’- किसे फायदा-किसको नुकसान:सामान्य का कोटा 40 से घटकर 27% बचा कुछ जातियों को OBC में मिल सकती है जगह

Share

शिवराज सरकार ने मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को सरकारी भर्तियों और परीक्षाओं में 27% आरक्षण लागू कर दिया है। जिन परीक्षाओं और भर्ती पर हाईकोर्ट ने लगाई हैं, सिर्फ उनमें रोक रहेगी। यानी 6 परीक्षाओं को छोड़ अन्य भर्तियों में OBC के लिए 14 की बजाय अब 27% के हिसाब से आरक्षण रहेगा। इस आदेश के बाद मध्य प्रदेश में 64 विभागों में एक लाख से ज्यादा खाली पद भरने की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी।

OBC आरक्षण की सीमा बढ़ाने के बाद सिख की कुछ जातियों के OBC कैटेगरी में शामिल करने को लेकर दबाव बढ़ गया है। जांगिड़ ब्राह्मण समाज ने OBC लिस्ट में शामिल करने के लिए आवेदन भी दे दिया है। किराड़ पंजाबी भी इस लिस्ट में शामिल होना चाहता है। अभी तक राज्य में आरक्षण की कुल सीमा 60% (SC-ST-OBC 50% व 10% आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) थी, लेकिन अब यह 73% हो गई है।

आरक्षण की नई सीमा लागू होने के बाद सामान्य वर्ग के लिए 27% कोटा रह गया है, क्योंकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के 10% के कोटे में तीनों वर्ग के लोग भी शामिल हो सकते हैं। हालांकि, इसमें शर्त जोड़ी गई है कि जातिगत वर्ग में शामिल होने पर इस वर्ग में लाभ नहीं मिलेगा, लेकिन अब ओबीसी वर्ग की 4% महिलाओं को सरकारी सुविधाओं का लाभ बढ़ जाएगा, जबकि सामान्य वर्ग की महिलाओं का यह नुकसान है। बता दें कि प्रदेश में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण लागू है।

OBC वर्ग में 178 जातियां
मध्यप्रदेश में OBC में 178 जातियां (राज्य में 92 व केंद्र में 86) शामिल हैं। अब कई जातियां इस लिस्ट में शामिल होकर OBC को मिलने वाली सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाना चाहती हैं। इसमें सबसे उच्च वर्ग ब्राह्म्ण वर्ग की भी जाति शामिल हैं। राज्य सरकार भी राजनीतिक फायदे का गुणा-भाग देखकर कुछ जातियों को OBC में शामिल कर सकती है। प्रदेश में OBC लिस्ट में शामिल होने की इच्छुक जातियों में विश्नोई समाज, किराड़ पंजाबी समाज के साथ अन्य सिख भी शमिल हैं। करीब 3 दर्जन जातियां और समुदाय खुद को OBC बाताकर राज्य सरकार की सूची में शामिल होना चाहते हैं। इन सब जातियों के दावे पर पिछड़ा वर्ग आयोग की मुहर लगना बाकी है।

OBC वर्ग कल्याण मंत्री रामखेलावन पटेल का कहना है कि OBC वर्ग में शामिल करने के लिए कई जातियों द्वारा आवेदन दिए गए हैं। पहले पिछड़ा वर्ग आयोग पड़ताल करेगा, बाद में उन पर नियमानुसार विचार किया जाएगा। इसके लिए रजभर व राजभर जाति तथा लोधी राजपूत ने खुद को OBC बताते हुए केंद्र की सूची में शामिल होने के लिए आवेदन दिया है।

इनमें लागू नहीं होगा बढ़ा हुआ आरक्षण
एडवोकेट जनरल पुरुषेन्द्र कौरव के मुताबिक राज्य सरकार सरकारी नियुक्तियों और प्रवेश परीक्षाओं में OBC को 27% आरक्षण दे सकती है। हाईकोर्ट ने सिर्फ 6 प्रकरणों में ही रोक लगाई है। अन्य मामलों में सरकार स्वतंत्र है। सरकारी नियुक्तियों और प्रवेश परीक्षाओं में OBC को बढ़ा हुआ आरक्षण देने पर कोई रोक नहीं है। हाईकोर्ट ने सिर्फ पीजी NEET 2019-20, PSC, मेडिकल अधिकारी भर्ती और शिक्षक भर्ती में रोक लगाई है। इसके अलावा, सभी भर्तियों और परीक्षाओं में 27% OBC आरक्षण दिया जा सकता है।

1996 में OBC वर्ग को मिला था 14% आरक्षण
संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 16 (4) के तहत पिछड़े वर्गों (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्ग) का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान किया है। मध्यप्रदेश में सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं की खाली सीटों और सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 16% और 20 % आरक्षण देने का प्रवाधान 1984 में लागू हुआ था। इसके बाद तत्कालीन सरकार ने 1996 में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदाय को भी 14% आरक्षण देने का निर्णय लिया। अब शिवराज सरकार ने (हाईकोर्ट में लंबित केस में शामिल 6 परीक्षाओं को छोड़कर) इसे बढ़ाकर 27% कर दिया है।

SC द्वारा तय 50% आरक्षण की सीमा पार
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50% तय कर दी है। बावजूद इसके कई राज्यों में इस सीमा से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहा है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल 2008 को एक फैसले में सरकारी धन से पोषित संस्थानों में 27% ओबीसी (OBC) कोटा शुरू करने के लिए सरकारी कदम को सही ठहराया था। इसके साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट रूप से अपनी पूर्व स्थिति को दोहराते हुए कहा था कि क्रीमी लेयर (मलाईदार परत) को आरक्षण नीति के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से मांगी है राय
सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2021 में सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की 50% तय सीमा में बदलाव को लेकर राज्यों से राय मांगी थी। देश के आधा दर्जन राज्य ऐसे हैं, जो आरक्षण का दायरा 50 %से ज्यादा करने के पक्ष में खड़े हैं। दरअसल, ये राज्य आरक्षण के दायरे को बढ़ाकर अपने राजनीतिक और सामाजिक समीकरण को मजबूत करना चाहते हैं।

सरकार का तर्क
इसको लेकर सरकार का तर्क है कि 50% कोटा की जहां तक बात है तो इसका प्रावधान न तो सुप्रीम कोर्ट ने दिया है और न ही संसद में कोई कानून बनाकर इसे पारित किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में 50% कोटा तय करने की बात कही थी, लेकिन यह कोई संवैधानिक कानून की श्रेणी में नहीं आता। इसमें बदलाव संभव है। यदि सरकार कारण बताती है कि इस कोटे से ऊपर भी जाने की जरूरत है तो यह सीमा भी आसानी से लांघी जा सकती है। OBC आरक्षण के चलते SC-ST कोटा पर कोई असर नहीं पडे़गा।

क्या कहता है इंदिरा साहनी जजमेंट ?
1992 में इंदिरा साहनी जजमेंट में नौ जजों ने मिलकर फैसला दिया था कि OBC को 27% आरक्षण दिया जा सकता है। 9 जजों की बेंच ने अपने फैसले में ये बात भी कही थी कि कुछ जगह पर 50% से ज्यादा नहीं हो सकता, लेकिन जजमेंट में यह व्यवस्था भी की गई थी कि जहां पर OBC की आबादी ज्यादा हो वहां जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण घटाया या बढ़ाया जा सकता है।

इसलिए हो रही सियासत
प्रदेश की आबादी में 50% से ज्यादा हिस्सेदारी ओबीसी समुदाय की है। इस समुदाय को राज्य में अभी तक 14% आरक्षण मिल रहा था, जो मंडल कमीशन की सिफारिशों से भी कम था। ऐसे में दोनों ही दल (भाजपा-कांग्रेस) चाहते थे कि इस समुदाय को मिलने वाले आरक्षण की सीमा 27% हो जाए।सरकार ने 2 सितंबर को इसका आदेश जारी कर दिया। इसके बाद भी दोनों दल इसका श्रेय खुद लेना चाहते हैं। फौरी तौर पर इसे आने वाले समय में प्रदेश में होने वाले विधानसभा के तीन उपचुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है, लेकिन असलियत में यह 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी से जुड़ा मामला भी है।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें