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ग्वालियर में अपराधियों के हौसले बुलंद होने का दोषी कौन?

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विरेन्द्र भदोरिया 

      कला, संगीत व इतिहास की विपुल धरोहर समेटे ग्वालियर शहर इन दिनों अपराधियों के लिए निरापद स्थान बन गया है। आज उपनगर मोरार में दिनदहाड़े स्कूली बच्चे का अपहरण हो गया। अपहरणकर्ता मां के हाथ से बच्चे को छीनकर ले गए। अपराधों का ग्राफ दिनों-दिन ऊंचा होता है। हत्या , प्राणघातक हमले,चोरी, छीना-झपटी, महिलाओं से छेड़छाड़ की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।

     अपराधों की रोकथाम का काम अकेले पुलिस के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। सीमित संसाधन व संख्या बल के बावजूद पुलिस अपराध नियंत्रण के लिए यथासंभव प्रयास करती है,पर एक नागरिक समाज के रूप में हमें अपनी भूमिका पर भी गौर करना चाहिए। हमें यह सोचना चाहिए कि अपराधियों को संरक्षण कौन दे रहा है?

       तत्परता पूर्वक कार्यवाही करते हुए पुलिस यदि अपराधी को गिरफ्तार कर भी लेती है, तो नेताजी , खासतौर पर सत्ता दल से जुड़े लोग,तुरंत सक्रिय हो जाते हैं, उनके फोन घनघनाने लगते हैं, इतना दबाव बनाते हैं कि न चाहते हुए भी अपराधियों को छोड़ना पड़ता है। सैंया कोतवाल हो गए तो काहे का डर ?

    दुर्भाग्य की बात तो यह है कि  शहर में आए दिन आयोजित होने वाले सम्मान समारोहों में अपराधियों को संरक्षण देने वाले इन्ही नेताओं का चरण वंदन, अभिनंदन व स्वागत किया जाता है। शहर के विकास के लिए शून्य योगदान वाले नेताओं का स्वागत करना, उनके चरणों में लहालोट हो जाना इस शहर के उद्योग व्यापार जगत से जुड़े चर्चित चेहरों का फुल टाइम बिजनेस बन चुका है, इनमें से कुछ तो बाकायदा दलाल की भूमिका में ‘तोड़’ कराने लगे हैं। आम व्यापारी इन स्वागतोत्सुक लोगों की हरकतों से बहुत दु:खी है, पर क्या मजाल कि उनको थोड़ी भी शर्म आ जाए। स्वागत की बीमारी इतनी बढ़ गई है कि यदि किसी हफ्ते कोई स्वागत समारोह आयोजित नहीं होता है तो शहर सूना सूना सा लगने लगता है। इतने स्वागत समारोह शायद भारतवर्ष के किसी शहर में आयोजित नहीं होते हैं।

      नाम खोलने पर मिर्ची लग जाएगी, लेकिन आखिरकार शहर कब तक आपके फोटू खिंचाऊ शौक का शिकार बनता रहेगा। आपका यह दर्द अपनी जगह वाजिब है कि विशाल धन संपत्ति इकट्ठा कर लेने के बावजूद शहर में कोई पूंछपरख नहीं है, इसलिए होर्डिंग, पोस्टर व मंच में स्थान पाने के लिए आपको बहुत जतन करने पड़ते हैं,आपकी इसी कमजोरी का फायदा कुछ चलते पुर्जे लोग उठा रहे हैं।

     जिस शहर में बिना कोई काम किए स्वागत अभिनंदन हो रहा हो, वहां के नेताओं को भला जनता के काम करने की जरूरत क्या पड़ी है? इसलिए स्वागत करने वालों से हाथ जोड़कर विनती है कि कम से कम एक साल तक स्वागत का सिलसिला रोक दीजिए और अपने जनप्रतिनिधियों के चरणों में बिछने के बजाय आंखों में आंखें डालकर उनसे चुभते हुए सवाल पूछने का हौसला पैदा कीजिए। 

   इंदौर ने यही रास्ता अख्तियार कर सबसे साफ सुथरे शहर का तमगा हासिल किया, जबकि आपका शहर कूड़े के ढ़ेर में तब्दील हो चुका है, और आपका दिल है कि स्वागत करने से मानता नहीं है। बस एक साल सब्र कीजिए,शहर भी सुधरेगा और अपराध भी कम होंगे।

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