-निर्मल कुमार शर्मा,
अभी कुछ ही दिनों पूर्व मुसलमानों के एक छोटे से उत्तेजित वर्ग द्वारा इस देश के कई राज्यों मसलन जम्मू-कश्मीर,उत्तर प्रदेश, झारखंड,पश्चिम बंगाल,गुजरात और महाराष्ट्र के अलग-अलग इलाकों और शहरों में पत्थरबाजी और दंगे किए गए,जिसमें बहुत से आम लोगों के अलावा पुलिस के जवान भी घायल हो गए ! प्रश्न है कि नूपुर शर्मा की टिप्पणी से उपजे विवाद पर भारतीय मुसलमानों का एक वर्ग दो हफ़्ते बाद इतना ग़ुस्सा क्यों जता रहा है ? वह बिल्कुल ही बेतुका,नाजायज और निरर्थक है और राजनीतिक नासमझी का सबूत भी है ! प्रश्न ये भी है कि आखिर इन दंगा करनेवाले मुसलमानों का ग़ुस्सा इतने दिनों बाद क्यों भड़का ? क्या उनके पास इस सवाल का कोई तार्किक जवाब है ?
ज़ाहिर है कि बीजेपी प्रवक्ता नुपुर शर्मा के बेहूदे बयान के बाद तमाम अरब देशों की बेहद कटु प्रतिक्रिया के बाद भारतीय मुसलमानों के इस वर्ग को लगा कि उन्हें अपने देश में भी कुछ विरोध प्रदर्शन आदि करना चाहिए ! वे अतिउत्साह में आकर ये नीच हरकत कर बहुत बड़ी ग़लती कर गए ! असल में अरब देशों की प्रतिक्रिया करने के बाद मोदी सरकार घबराकर हड़बड़ी में कुछ ऐसे क़दम उठा ली,जो भारतीय मुसलमानों को ग़लत संकेत दे गई ! वैसे अरब देशों की कठोरतम् प्रतिक्रिया के बाद मोदी सरकार ने जिस कदम को उठाई उसके सिवा कोई और कदम उठाने का विकल्प भी उसके पास नहीं था ! मोदी सरकार को नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल के विरूद्ध किए गए कठोर कदम अपने दल के प्रवक्ताओं द्वारा किए कुकृत्यपूर्ण बयान के तुरंत बाद ही उठा लेने चाहिए थे ! लेकिन अब इस मामले में भारतीय मुसलमानों का एक छोटा सा वर्ग इतनी देर से उग्र प्रदर्शन कर और भयंकरतम् ग़लती कर रहा है !
मुसलमानों के एक सिरफिरे गुट ने दंगे करके अक्षम्य अपराध किया है !
कुछ मुसलमानों के गुट एक गुट द्वारा भारत के कई राज्यों के बहुत से शहरों में पत्थरबाजी और बलवा करके उस व्यापक भारतीय जनमत की अवहेलना की है,जो इस मामले में पूरी एकजुटता के साथ उनके साथ खड़ा है !भारतीय मुसलमानों का एक वर्ग यदि यह सोचता है कि अरब समर्थन से उसका सीना चौड़ा हो गया है तो यह उनकी निरी मूर्खता है ! भारतीय मुसलमानों का हित केवल और केवल इस बात में ही है और रहेगा कि व्यापक भारतीय जनमत मतलब उसमें हिन्दू ,बौद्ध ,सिख,जैन आदि सभी लोगों का समर्थन उसके साथ खड़ा रहे !यह बात इन्हें समझनी ही पड़ेगी ! भारतीय मुसलमानों का नेतृत्व उलेमा या पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे किसी धार्मिक संगठन के हाथ में हो यह बहुत बड़ी मूर्खतापूर्ण बात है,क्योंकि इसका कारण यह है कि धार्मिक नेतृत्व किसी समाज को प्रगति के रास्ते पर ले ही नहीं जा सकता ! क्योंकि ऐसा नेतृत्व अनिवार्य रूप से रूढ़िवादी और मूढ़ ही होता है !
इस देश के स्वतंत्रता के बाद से अब तक मुसलमानों के इस धार्मिक नेतृत्व ने लगातार यही सिद्ध किया है कि उनमें रत्ती भर भी राजनीतिक समझ और दूरदर्शिता नहीं है ! उदाहरणार्थ शाहबानो विवाद,यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड,बाबरी मसजिद समेत तमाम मुद्दों पर इन मुस्लिम धार्मिक जमातों की राजनीतिक नासमझी खुल कर सामने आ चुकी है !
मुसलमानों के पास कोई समझदार नेतृत्व ही नहीं है !
मुसलमानों द्वारा बनाई गई किसी राजनीतिक पार्टी या फिर ऐसी कोई भी पार्टी अन्ततः जिन्ना सिंड्रोम को जन्म देकर हिन्दुत्ववादी ताकतों जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसों को हिन्दुओं में असुरक्षा की भावना भड़काये रखने के लिए नये तर्क गढ़ लेती है ! जाहिर सी बात है इससे मुसलमानों का कभी कोई भला हो ही नहीं सकता ! उल्टा इसका राजनीतिक लाभ हमेशा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी तथा हिन्दू विश्व परिषद जैसे सांप्रदायिक हिन्दुत्ववादी ताक़तों को ही मिलता है ! मुस्लिम समुदाय और समाज का सबसे बड़ा संकट यह भी है कि उनके पास कोई ऐसा समझदार नेतृत्व ही नहीं है,जो उन्हें धार्मिक जाहिलता और अंधविश्वासी कटघरे से निकाल कर,उनमें नयी सोच जगा कर लोकतंत्र में अपना जायज हिस्सा पाने के लिए उन्हें सही रास्ता दिखा सके,सुझा सके !
सबसे हतप्रभ करनेवाली बात यह भी है कि भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष कहलाने वाले राजनैतिक दलों ने भी मुसलमानों का हमेशा नुक़सान ही किया है,क्योंकि वे अपने वोटबैंक कहीं फिसल न जाय इस सोच की वजह से मुसलिम नेतृत्व की नासमझियों की आलोचना न करके उन्हें सही रास्ता दिखाने के बजाय, हमेशा चुप रहे ! इसका नुकसान मुसलमानों और धर्मनिरपेक्ष दलों दोनों को ही दीर्घकालिक तौर पर बहुत बड़ा और आत्मघाती नुकसान हुआ !हकीकत यह है कि धर्मनिरपेक्ष और स्वतंत्र विचारधारा के लेखकों और समाज शास्त्रियों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे हिन्दू सम्प्रदायवादियों आदि के कुकृत्यों तथा धार्मिक वैमनस्यता आदि दुर्नीति यों की तो खुल कर आलोचना करते रहे, लेकिन मुसलमानों के ऐसे क़दमों पर बोलने से वे सदा बचते रहे,जबकि उन्हें मुस्लिम समाज की बेवकूफियों,अंधविश्वासों और जाहिलताओं के विरूद्ध भी मुखर होकर लिखना और बोलना चाहिए था ! ताकि अंधविश्वास और कूपमण्डूक मुस्लिम समाज को भी अपने आत्म सुधार का अवसर मिल सके ! इसकी वजह मुसलमानों की कट्टरता भी है और यह डर भी क्योंकि हिन्दूओं के पाखंड और कल्पित ईश्वर व देवी-देवताओं की आलोचना खूब होती है, लेकिन इस्लाम धर्म के खुदा और अल्लाह की आलोचना करने से प्राय : लेखक इसलिए भी कतराते हैं क्योंकि मुसलमान हिन्दुओं की अपेक्षा ज्यादा कट्टर,हिंसक और प्रतिक्रियावादी हैं !
दंगे कुछ अराजक तत्वों द्वारा मुस्लिमों को बदनाम करने के लिए कराए !
भारतीय लोकतंत्र में किसी भी समस्या पर विरोध और प्रदर्शन करना इसके नागरिकों का मौलिक और संवैधानिक अधिकार है,परन्तु हिंसा,मारपीट और पत्थरबाजी करना,सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना किसी भी रूप में उचित और संसदीय गरिमा के अनुकूल नहीं कहा जा सकता ! प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि विवादास्पद बयान देने वाले बीजेपी के दोनों राष्ट्रीय प्रवक्ताओं को गिरफ्तार किया जाए। झारखंड की राजधानी रांची में तो प्रदर्शनकारियों का समूह हिंसक हो गया, जिससे पुलिस को मजबूरी में गोली चलानी पड़ी,जिसमें दो लोगों की दु:खद मौत हो गई !
इस देश के करोड़ों अमन पसंद लोगों को यह पूरा भरोसा था कि अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लोग न्यायालय के फैसले का इंतजार करेंगे और ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे,जिससे देश और समाज में अस्थिरता पैदा हो ! परन्तु मुस्लिम समाज के कुछ शरारती और गुंडे तत्त्वों को शायद यह मुद्दा एक स्वर्णिम मुद्दे और अवसर की तरह हाथ लगा है और वे इसे तुरंत भुनाने के प्रयास कर रहे हैं। यही कारण है कि ये समाज विरोधी तत्व विरोध प्रदर्शन के लिए मस्जिदों को चुने। सब जानते हैं कि जुमे की नमाज के लिए भारी संख्या में लोग जुटते हैं और उन्हें उत्तेजित कर अपना मकसद आसानी से साधा जा सकता है ! वरना उनका मकसद सचमुच केवल विरोध प्रदर्शन करना होता,तो वे कोई और जगह भी चुन सकते थे !
दोनों धर्मों में दंगे-फसाद कराने के लिए अराजक तत्वों का बोलबाला !
दोनों धर्मों मतलब हिन्दूओं और मुस्लिमों में धार्मिक भावनाओं को भड़का कर अपने राजनीतिक स्वार्थ साधने वाले हिन्दू धर्म में भी मौजूद हैं और इस्लाम धर्म में भी हैं ! यह बात इन दोनों समुदायों के लोग भी अच्छी तरह से जानते हैं। फिर भी अधिकांश अमन पसंद मुस्लिम कैसे अपना विवेक खोकर हिंसक भीड़ में बदल गए ? शायद लंबे समय से उनके भीतर दबा आक्रोश और असुरक्षाबोध अचानक प्रकट हुआ होगा ! मगर इन घटनाओं के लिए पूरे समुदाय को दोषी नहीं ठहराया जा सकता ! उन लोगों की पहचान होनी चाहिए,जिन्होंने साजिशन भीड़ को हमलावर बना दिया। फिर यह सवाल अपनी जगह है कि कैसे खुफिया एजंसियों और प्रशासन को ऐसी घटना की आशंका नहीं हुई। हफ्ता भर पहले ही कानपुर में तथाकथित सबसे काबिल इस देश में के प्रधानसेवक जी के शहर में रहते जुमे के दिन जबर्दस्त हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ था ! उस घटना से कोई सबक लेना क्यों जरूरी क्यों नहीं समझा गया कि इस जुमे को भी उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में वैसी ही घटना की पुनरावृत्ति हो गई !
ताली कभी भी एक हाथ से नहीं बजती !
लेकिन ताली एक हाथ से कभी नहीं बजती ! नुपुर शर्मा की गिरफ्तारी से क्षुब्ध बीजेपी द्वारा गठित आईटी सेल के युवाओं ने अपनी ही पार्टी के सरकार के कर्णधारों पर हमला बोलते हुए एक आंकड़े को सार्वजनिक किया है कि केवल नुपुर शर्मा को दंडित क्यों किया जा रहा है,जबकि बीजेपी के वर्ष 2014में सत्ता में आने से अबतक के समय में कुल 37बीजेपी के प्रवक्ताओं और नेताओं द्वारा मुस्लिमों, इस्लाम धर्म आदि की कुल 5000से भी ज्यादे बार कटु आलोचना,निंदा और अपमानजनक भाषा तथा अमर्यादित आचरण का प्रयोग किया गया है ! इस स्थिति में किसी भी धार्मिक समूह या समूह के खिलाफ लगातार गाली गलौज और अश्लील भाषा का प्रयोग करने पर वह आजीज आकर अपने गुस्से का इजहार कर दे तो यह स्वाभाविक ही है !
क्या बुलडोजरी न्याय भारतीय न्यायपालिका पर सीधा हमला नहीं है ?
तथाकथित हिन्दू धर्म के ठेकेदार बने बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उग्रवादी संगठनों की बात-बात में आस्था को ठेस पहुंच जाती है ! और वे किसी भी निरपराध गरीब लोगों: के साथ मांब लिंचिग करके उनकी बीच सड़क पर,भीड़ भरे बाजार में,घर में घुसकर और ड्यूटी करते कर्मचारियों और अधिकारियों को समूह में हमला करके निर्मम हत्या कर देते हैं ! फिर उत्तर प्रदेश के अपराधिक पृष्ठभूमि का मुख्यमंत्री अपना बुलडोजरी न्याय के बहाने केवल मुस्लिमों के ही घर तोड़ने क्यों निकल पड़ता है ? क्या उसे कपिल मिश्रा, प्रवेश वर्मा, अनुराग ठाकुर,टेनी मिश्रा और अब नुपुर शर्मा तथा 37 बीजेपी के प्रवक्ताओं और नेताओं की 5000से भी ज्यादे बार मुस्लिमों और इस्लाम धर्म के खिलाफ गाली-गलौज और असंसदीय भाषा प्रयोग करनेवाले गुंडे तत्वों के घर अपने बुलडोजरों से तोड़ना जानबूझकर भूल जाता है या अंजाने में ! या उनके अपराधिक कुकृत्य दिखाई ही नहीं देते ! बुलडोजरों से घर तो इन शैतानों के भी टूटने चाहिए ! इस देश के कथित न्याय के सबसे बड़े मंदिर सुप्रीमकोर्ट के जज अपनी गहरी कुंभकर्णी नींद से कब जागेंगे ? क्या उन्हें अपने स्वत : संज्ञान लेकर उत्तर प्रदेश के अपराधिक पृष्ठभूमि के मुख्यमंत्री द्वारा गरीबों के प्रति किए जाने वाले यह सरेआम अत्याचार नहीं दिखाई दे रहा है ? क्या सुप्रीमकोर्ट के जजों की स्थिति भी अब सीबीआई जैसे सरकारी पिंजरे के तोते जैसी हो गई है ? अगर हां तो इस राष्ट्र राज्य की लोकतांत्रिक व्यवस्था के शव को अब अंतिम संस्कार कर ही देना श्रेयस्कर होगा ! इस मुर्दे लोकतंत्र को बंदरिया के मरे बच्चे जैसे निरर्थक ढोनें से क्या फायदा ?
-निर्मल कुमार शर्मा, जी-181-ए,एचआईजी फ्लैट्स,डबल स्टोरी, ( शहीद भगतसिंह लेन ) आलोकी अस्पताल के पास, सेक्टर-11,प्रताप विहार गाजियाबाद,