राणा सांगा का पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था. वह मेवाड़ के शासक थे. भारतीय इतिहास में राणा सांगा का बड़ा नाम है. अब जानिए बाबर और राणा सांगा को लेकर इतिहास में क्या दर्ज है?हिंदू संगठन और राजपूत-क्षत्रिय समाज के लोग सपा सांसद के बयान पर भड़के हुए हैं. राजस्थान से लेकर हरियाणा, उत्तर प्रदेश समेत कई प्रदेशों की सियासत गरमाई हुई है. समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने रामजी लाल सुमन द्वारा राणा सांगा को लेकर दिए गए बयान का समर्थन कर दिया है. दूसरी तरफ भाजपा इस मामले को लेकर सपा पर हमलावर है और इसे हिंदुओं का अपमान बता रही है.
ऐसे में सवाल ये है कि आखिर इस मामले को लेकर इतिहास क्या कहता है? इतिहास में राणा सांगा और बाबर को लेकर क्या दर्ज है? इसके लिए सबसे पहले हमने गूगल पर उपलब्ध जानकारी की सहायता ली. सबसे पहले हमें National Council of Educational Research and Training यानी NCERT की क्लास-11 की इतिहास की किताब Medieval India By Satish Chandra मिली. ये ओल्ड NCRT की किताब थी. इसमें भी बाबर और राणा सांगा का जिक्र किया गया था.
ओल्ड NCERT में क्या लिखा गया है?
ओल्ड NCERT की क्लास-11 की किताब Medieval India By Satish Chandra के चैप्टर Struggle For Empire in North India के पेज नंबर-127 में लिखा गया है कि दौलत खान लोधी ने बाबर को बुलाया था. उसने उस दौरान दिल्ली पर शासन कर रहे इब्राहीम लोधी को हटाने के लिए बाबर को बुलाया था. आगे लिखा हुआ है, ‘ शायद इस दौरान राणा सांगा ने भी बाबर को भारत आने के लिए प्रस्ताव भेजा था.’ बता दें कि यहां भी ‘शायद’ लिखा हुआ है.
आप ओल्ड एनसीआरटी की ये पीडीएफ पढ़ सकते हैं
साल 1526 ई में पानीपत के पहले युद्ध में बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराया था. इसके बाद भारत में मुगल साम्राज्य की नींव पड़ी थी. हालांकि, पानीपत की पहली लड़ाई के काफी पहले ही बाबर ने भारत की यात्रा शुरू कर दी थी, क्योंकि तैमूर लंग और चंगेज खान के वंशज बाबर को अपनी मातृभूमि फरगाना से खदेड़ दिया गया था.
हालांकि, वह अपने साम्राज्य का सपना देख रहा था. इसलिए काबुल के बीहड़ों में दो दशक से ज्यादा समय बिताया. फिर भी फरगाना और समरकंद में स्थित अपनी पैतृक भूमि वापस नहीं पा सका तो भारत की समृद्धि ने उसे आकर्षित कर लिया और यहां शासन का सपना लेकर आया और सफल भी रहा.

राणा सांगा का पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था. उदयपुर में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राणा सांगा जन्म 12 अप्रैल 1482 को हुआ था. वह राणा रायमल के सबसे छोटे बेटे थे. साल 1509 ईस्वी में पिता महाराणा रायमल के निधन के बाद महाराणा सांगा मेवाड़ के शासक बने थे. उन्हें मेवाड़ के महाराणाओं में सबसे प्रतापी योद्धा माना जाता है. बाबर ने जब पानीपत की लड़ाई जीती, तभी से उसका सामना महाराणा सांगा से होने लगा था. इब्राहिम लोदी को हराने के बाद बाबर पूरे भारत पर अपना कब्जा जमाना चाहता था पर राणा सांगा को हराए बिना ऐसा कतई संभव नहीं था.
पानीपत की लड़ाई के बाद अफगानों ने ली थी शरण
दूसरी ओर, पानीपत के युद्ध के बाद अफगान नेता भागकर महाराणा सांगा की शरण में पहुंचे. ऐसे में राजपूतों और अफगानों का मोर्चा बाबर के लिए डर का कारण बन गया. महाराणा सांगा ने फरवरी 1527 में हुई लड़ाई में बयाना पर जीत भी हासिल कर ली थी. यह बाबर के खिलाफ महाराणा सांगा की एक महत्वपूर्ण जीत थी. वहीं, राजपूतों की वीरता की कहानियां सुन बाबर के सैनिकों का मनोबल भी टूटने लगा था.
खानवा का युद्ध बना मुगल साम्राज्य की स्थापना का कारण
यब 16 मार्च 1527 की बात है. सुबह-सुबह भरतपुर के खानवा में महाराणा सांगा और बाबर की सेना में युद्ध शुरू हो गया. पहली लड़ाई तो राजपूतों ने जीत ली, लेकिन तभी अचानक एक तीर राणा सांगा की आंख में लग गया. इससे उनको युद्ध भूमि से दूर होना पड़ा. इसके कारण राजपूत इस युद्ध में हार गए. यही हार भारत में मुगलों के साम्राज्य की स्थापना का कारण बना. यही नहीं, बाबर से हुए युद्ध का बदला लेने के लिए उसका साथ दे रहे सरदारों ने राणा सांगा को जहर दे दिया. इससे 30 जनवरी 1528 को उनका निधन हो गया.
बाबर ने खुद राणा सांगा से मांगी थी मदद
कई बार कहा जाता है कि बाबर के भारत की ओर आने का कारण मेवाड़ के महाराणा का निमंत्रण था. असल में यह पत्र खुद बाबर ने राणा सांगा को भेजा था. दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी को हराने के लिए उसने खुद महाराणा को निमंत्रण भेजा था, क्योंकि राणा सांगा इब्राहिम लोदी को 18 बार हरा चुके थे.
मीडिया रिपोर्ट्स में इतिहासकार जीएन शर्मा व गौरीशंकर हीराचंद ओझा के हवाले से बताया गया है कि बाबर ने राणा सांगा को इब्राहिम लोदी के खिलाफ साझा प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा और दिल्ली के शासक के खिलाफ गठबंधन की आस में उसने खुद ही राणा सांगा से संपर्क किया था. यह भी माना जाता है कि शुरुआत में राणा सांगा इसके लिए तैयार भी दिख रहे थे पर मेवाड़ दरबार में संभवत: अपने सलाहकारों के विरोध के कारण राणा सांगा ने इस गठबंधन से अपने कदम खींच लिए थे. रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि राणा सांगा ने कभी भी बाबर को निमंत्रण नहीं भेजा था.
दिल्ली सल्तनत से जुड़े लोगों ने ही बाबर को आमंत्रित किया
ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि आखिर बाबर को निमंत्रण भेजा किसने था. इसका जवाब भी इतिहास में ही छिपा है. यह साल 1523 की बात है, जब दिल्ली सल्तनत के ही प्रमुख लोगों से बाबर को निमंत्रण मिला था. इनमें सुल्तान सिकंदर लोदी का भाई आलम खान लोदी, पंजाब का गवर्नर दौलत खान लोदी और इब्राहिम लोदी का चाचा अलाउद्दीन शामिल था.
इन लोगों ने इब्राहिम लोदी के दिल्ली पर शासन को चुनौती देने के उद्देश्य से बाबर की मदद मांगी थी. खासकर इब्राहिम लोदी के शासनकाल में पंजाब का गवर्नर रहा दौलत खान दिल्ली के सुल्तान को बाबर की मदद से कमजोर कर दिल्ली को अपने शासन का हिस्सा बनाना चाहता था.
इतिहासकारों की मानें तो बाबरनामा में राणा सांगा के एक निमंत्रण का उल्लेख जरूर किया गया है. हालांकि, इस निमंत्रण में पानीपत की लड़ाई के बाद का जिक्र है, जब खुद बाबर राजपूत राजा राणा सांगा के खिलाफ युद्ध की तैयारी कर रहा था.
आखिर इतिहास में राणा सांगा और बाबर को लेकर क्या दर्ज है? इस बार हमने ये सवाल मेवाड़ के इतिहास विशेषज्ञ और महाराणा प्रताप पर पीएचडी करने वाले प्रो. चंद्रशेखर से पूछे. जानिए उन्होंने क्या कहा?
इतिहास में राणा सांगा और बाबर
मेवाड़ के इतिहास के विशेषज्ञ और महाराणा प्रताप पर पीएचडी करने वाले प्रो. चंद्रशेखर ने इस मामले पर काफी कुछ जानकारी दी. उन्होंने बताया, आत्मकथा कभी कोई प्राइमरी सोर्स नहीं रहा है. उसे प्राइमरी सोर्स के लिए नहीं लिखा जाता. समकालीन इतिहास में बाबरनामा के अलावा किसी भी ऐतिहासिक दस्तावेज में कोई जिक्र नहीं है कि राणा सांगा ने बाबर को बुलाया था.
प्रोफेसर चंद्रशेखर ने आगे बताया, समकालीन इतिहास में मोहम्मद कासीम द्वारा लिखी गई तारीख ए फरिश्ता किताब हमें मिलती है. उसमें भी इस तरह का कोई रेफ़रेंस नहीं हैं. हुमायूंनामा, अबुल फजल की अकबरनामा यहां तक की हुमायूं के भाई मिर्जा हैदर की लिखी किताब में भी इसका कोई वर्णन नहीं है.
हिमायूं की बहन और बाबर की बेटी गुलबदन बेगम ने हुमायूंनामा लिखा है. इसमें बाबर की पूरी गाथा है और उसकी यात्राओं और युद्धों का पूर्ण वर्णन है. मगर इसमें भी राणा सांगा के प्रस्ताव का कोई जिक्र नहीं है.
‘बाबर ने खुद मदद मांगी थी’
प्रोफेसर चंद्रशेखर कहते हैं, मेवाड़ की सारी पांडुलिपि मौजूद हैं. उसमें लिखा है कि बाबर ने मेवाड़ को खुद प्रस्ताव दिया था और मेवाड़ से सहायता मांगी थी. बाबर ने अपना दूत मेवाड़ भेजा था. बाबर की तरफ से आए प्रस्ताव में लिखा गया था कि वह मेवाड़ से सहायता चाहता है.
प्रोफेसर चंद्रशेखर ने आगे बताते है, बाबर के प्रस्ताव पर मेवाड़ में राणा सांगा ने युद्ध परिषद की बैठक बुलाई. पांडुलिपि में ये भी दर्ज है कि मेवाड़ की युद्ध परिषद में कहा गया कि सांप को दुध पिलाना बेकार है. असलियत में प्रस्ताव तो बाबर की तरफ से राणा सांगा को दिया गया था. राणा सांगा की बाबर से कोई वार्तालाप कभी नहीं हुई.
प्रोफेसर चंद्रशेखर ने आगे बताया, जिस इब्राहीम लोधी को राणा सांगा ने खुद हरा दिया था, उसको हराने के लिए वो बाबर की सहायता क्यों मांगेगे? लोधी को सांगा ने कई बार हराया है. वह आगे कहते हैं, यहां ये भी ध्यान देने वाली बात है कि बाबर उस समय ऐसी कोई बड़ी ताकत नहीं था, जिससे मदद मांगी जाए. उसके पास कोई बड़ा साम्राज्य नहीं था. जबकि राणा सांगा बड़े साम्राज्य के मालिक थे.
‘बाबरनामा में कई विरोधाभास हैं’
प्रोफेसर चंद्रशेखर आगे बताते हैं, बाबरनामा में एक तरफ बाबर भारतीयों को लेकर काफी कुछ उल्टा सीधा लिखता है तो दूसरी तरफ ये भी कहता है कि उसके दुखों का अंत भारत में ही होगा. वह भारतीयों को गंदा कहता है, जबकि उस समय यहां बड़े-बड़े साम्राज्य मौजूद थे. बाबरनामा में कई विरोधाभास हैं.
‘बाबरनामा में राणा सांगा को काफिर कहा गया’
प्रोफेसर चंद्रशेखर कहते हैं, बाबरनामा में लिखा है कि बाबर जब राणा सांगा से सहायता प्राप्त नहीं कर सका तो उसने राणा सांगा को काफिर तक बोला. बाबर ने 5 बार हमला किया, जिसमें 4 में उसे हार मिली. 5वें हमले में वह विजयी हुआ. तथ्य तो ये है कि बाबर को मदद की दरकार थी. प्रस्ताव उसकी तरफ से भेजे गए थे. बाबर ने अपना दूत खुद मेवाड़ भेजा था.
प्रोफेसर चंद्रशेखर शर्मा कहते हैं कि कोई भी अपनी आत्मकथा में कुछ भी लिख सकता है. मगर उसे प्रमाणित समकालीन लिखा हुआ इतिहास करता है. हमारे पास कई प्रमाणिक समकालीन इतिहास के दस्तावेज हैं, जिसमें ‘राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था’ इसका कही कोई जिक्र नहीं है. जहां तक बात है बाबरनामा की तो वह तो ये लिखता है कि राणा सांगा काफिर हैं और उसे सजा मिलेगी.
प्रोफेसर चंद्रशेखर अपनी बात के समर्थन में समकालीन इतिहास की इस पुस्तकों का जिक्र करते हैं.
- 1- तारीख ऐ फरिश्ता
- 2- अबुल फजल की अकरबनामा
- 3 तारीख ए रशीदी (हुमायूं के भाई मिर्जा हैदर)
- 4-हुमायूं नामा (बाबर का पूरा इतिहास)
राणा सांगा ने बाबर को प्रस्ताव भेजा या बाबर ने राणा सांगा को प्रस्ताव भेजा, इसको लेकर इतिहासकारों में गहरे मतभेद हैं. इतिहासकारों में इसको लेकर कोई एकराय नहीं है. सवाल ये भी पैदा होता है कि जिस इब्राहीम लोधी को राणा सांगा ने खुद कई बार युद्धों में हराया था, वह क्यों उसे हराने के लिए बाबर की मदद लेंगे? इतिहासकारों का कहना है कि बाबरनामा के अलावा किसी भी समकालीन ऐतिहासिक दस्तावेज में इसका उल्लेख नहीं है. फिलहाल ये विवाद देश में छाया हुआ है.
जब इस दावे के बारे में GROK से सवाल पूछा गया तो उसने क्या कुछ कहा, आइए जानते हैं…
Grok ने कहा, राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बाबर को नहीं बुलाया था. यह एक आम मिथक है, जो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है. वास्तव में राणा सांगा, जो मेवाड़ के शक्तिशाली राजपूत शासक थे और बाबर , जो मध्य एशिया से आया एक तुर्क-मंगोल विजेता था, के बीच कोई औपचारिक गंठबंधन नहीं था.

बाबर ने 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराया
ग्रोक ने कहा, ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, बाबर ने 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराया था. यह जीत बाबर की अपनी सैन्य रणनीति और तोपखाने के बेहतर उपयोग का परिणाम थी. राणा सांगा का इस युद्ध में कोई प्रत्यक्ष योगदान नहीं था. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी की कमजोरी का फायदा उठाने की उम्मीद की होगी, क्योंकि वह दिल्ली सल्तनत के खिलाफ अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहते थे. हालांकि, यह कहना गलत होगा कि उन्होंने बाबर को आमंत्रित किया था.
राणा सांगा और बाबर के बीच संबंध शत्रुतापूर्ण
Grok ने कहा, पानीपत की लड़ाई के बाद राणा सांगा और बाबर के बीच संबंध शत्रुतापूर्ण हो गए. 1527 में खानवा की लड़ाई में बाबर ने राणा सांगा के नेतृत्व वाली राजपूत सेना को हराया. इससे स्पष्ट होता है कि दोनों के बीच सहयोग के बजाय प्रतिद्वंद्विता थी. इसलिए, यह कहना सही नहीं है कि राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बुलाया था. यही जवाब चैटजीपीटी ने भी दिया.
सपा सांसद ने क्या कहा? सपा सांसद ने कहा कि बीजेपी के नेता अक्सर दावा करते हैं कि मुसलमानों में बाबर का डीएनए है, लेकिन भारतीय मुसलमान बाबर को अपना आदर्श नहीं मानते. उन्होंने कहा कि राणा सांगा ने ही इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बाबर को आमंत्रित किया था. अगर आप दावा करते हैं कि मुसलमान बाबर के वंशज हैं, तो आप भी ‘गद्दार’ राणा सांगा के वंशज हैं. हम बाबर की आलोचना करते हैं, लेकिन राणा सांगा की नहीं करते.”
खानवा की लड़ाई: मुगलों से टकराव
राणा सांगा का सबसे बड़ा संघर्ष 1527 में बाबर के साथ खानवा की लड़ाई में हुआ. इससे पहले, 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने दिल्ली सल्तनत के शासक इब्राहिम लोदी को पराजित कर भारत में मुगल शासन की नींव रखी. लेकिन उत्तर भारत में राजपूत शक्ति को समाप्त करना बाबर के लिए एक बड़ी चुनौती थी.
बयाना में राजपूत सेना ने बाबर की टुकड़ी को हराकर शुरुआती बढ़त हासिल की, लेकिन खानवा के निर्णायक युद्ध में बाबर की तैमूरी सेना और उसकी युद्ध रणनीति ने राणा सांगा की सेना को परास्त कर दिया. यह युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, क्योंकि इसके बाद मुगलों का प्रभाव पूरे उत्तर भारत में बढ़ने लगा.
क्या राणा सांगा ने बाबर को दिया था निमंत्रण?
सपा सांसद रामजी लाल सुमन के हालिया बयान ने इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया कि क्या राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था. ऐतिहासिक तथ्यों की बात करें तो इस विषय पर अलग-अलग राय मिलती हैं. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बाबर ने खुद ही राणा सांगा से संपर्क किया था, जबकि कुछ का दावा है कि राणा सांगा ने बाबर को आमंत्रित किया था ताकि वे मिलकर इब्राहिम लोदी को हरा सकें.
बाबरनामा में उल्लेख है कि राणा सांगा ने बाबर को निमंत्रण भेजा था, लेकिन यह संदर्भ पानीपत की लड़ाई के बाद का है, जब बाबर ने खुद को दिल्ली का शासक घोषित कर दिया था. इस कारण यह कहना मुश्किल है कि बाबर को भारत बुलाने में राणा सांगा की कोई भूमिका थी या नहीं.
राणा सांगा की सैन्य शक्ति और विजयी अभियान
राणा सांगा की सैन्य शक्ति अद्वितीय थी. उनके अधीन अस्सी हजार घुड़सवारों की सेना थी, जिसमें सात राजा, नौ राव और 104 सरदार शामिल थे. उनकी सेना ने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे ग्वालियर, अजमेर, सीकरी, कालपी, चंदेरी, बूंदी, गागरौन और रामपुरा तक अपना प्रभुत्व स्थापित किया.
उन्होंने मालवा और गुजरात की संयुक्त सेनाओं को कई बार पराजित किया. गागरोन, हटोली और धौलपुर की लड़ाइयों में उन्होंने अपने पराक्रम का परिचय दिया और अपनी भूमि का विस्तार किया. दिल्ली सल्तनत को चुनौती देने की उनकी महत्वाकांक्षा ही खानवा के युद्ध का कारण बनी.
खानवा युद्ध के बाद की स्थिति
खानवा की लड़ाई के दौरान राणा सांगा गंभीर रूप से घायल हो गए. बाबर की सेना ने तोपों और बंदूकों का इस्तेमाल किया, जो भारतीय युद्ध नीति के लिए एक नया अनुभव था. बाबर की ‘गज़ी’ की उपाधि और युद्ध में बारूद के व्यापक इस्तेमाल ने राजपूत सेना को भारी नुकसान पहुंचाया. इस हार के बाद भी राणा सांगा ने हार नहीं मानी और फिर से युद्ध के लिए सेना एकत्र करने लगे.
लेकिन उनके ही सरदारों ने उनके इस निर्णय का विरोध किया. कुछ इतिहासकारों के अनुसार, उनके कुछ सहयोगियों ने उन्हें जहर दे दिया, जिससे उनकी 30 जनवरी 1528 को मृत्यु हो गई. राणा सांगा की मृत्यु के साथ ही उत्तरी भारत में मुगलों का प्रभुत्व स्थापित हो गया.
इतिहास में राणा सांगा का स्थान
राणा सांगा को उनकी वीरता और त्याग के लिए हमेशा याद किया जाता है. उन्होंने अपने जीवन में अनेकों बाधाओं का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी. उनकी सेना और रणनीतिक कुशलता ने राजपूत शक्ति को बुलंद किया.
हालांकि, खानवा की हार के बाद राजपूत शक्ति कमजोर पड़ गई, लेकिन उनकी बहादुरी ने उन्हें अमर बना दिया. आज भी राजस्थान और भारत में उन्हें एक महान योद्धा के रूप में सम्मानित किया जाता है. उनकी कहानी हर भारतीय के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है.
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