अग्नि आलोक
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*दर्द कौन जानेगा पिंजरे के पंछी का?*

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शशिकांत गुप्ते

आज सुबह ही सीतारामजी का मेरे घर आगमन हुआ। उनके आते ही नमस्ते के साथ जलपान की औपचारिकता पूर्ण होने पर सीतारामजी ने चर्चा शुरू की।
सीतारामजी ने कहा सुबह की सैर करने जाता हूं, तो कुछ दानवीरों को देखकर भाव विभोर हो जाता हूं।
मैने कहा दानवीर मतलब वे निश्चित ही अति धार्मिक भी होंगे ही।
सीतारामजी ने कहा हां हो सकता है। ये दानवीर सड़क पर स्वच्छंदता से विचरण करने वाले श्वानों को दूध पिलाते हैं,बिस्कुट खिलाते हैं।
मंदिर के आगे जमा भिखारियों को दान में भीख देतें हैं।
सीतारामजी की बात सुनकर मुझे
शायर ज़ुबैर अली ताबिश रचित एक शेर का स्मरण हुआ।
ध्यान से पंछियो को देते हो दाना पानी
इतने अच्छे हो तो पिंजरे से रिहा कर दो ना

इस शेर में पिंजरे के व्यापक अर्थ को समझना जरूरी है।
सीतारामजी ने मुझे बीच में टोकते हुए कहा कि,व्यंग्य सांकेतिक भाषा में ही कहा जाता है।
मैने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए, सीतारामजी से कहा आपने, जिन दानवीरों को देखा वे प्रत्यक्ष रूप से दान करते हैं। लेकिन कुछ लोग मदद को भी दान समझते है। मदद में दिया जा रहा दान, इन दिनों रेवड़ियां कहलाता है।
सीतारामजी ने कहा रेवड़ियां तो तेरा तुझको अर्पण,क्या लागे मेरा मतलब हींग लगे ना फिटकरी रंग चौखा
मैने कहा किसका रंग चौखा होता है,यह तो अनुत्तरित प्रश्न है?
सीतारामजी ने विषयांतर करते हुए,जेब में से एक कागज़ निकाला और मुझे शायर राजेश रेड्डी रचित कुछ चुनिंदा अशआर पढ़ कर सुनाएं।
वह आफ़ताब लाने का देकर फरेब
हमसे हमारी रात के जुगुनू भी ले गया
तूने दरिया का किया था वादा
यूं न तस्वीर दिखा पानी की

मै ने शेर सुनकर सीतारामजी कहा सच में साहित्यकार सांकेतिक भाषा में सहजता से सरल भाषा में बहुत महत्वपूर्ण बात कह जाता है।
मैने भी शायर राजेश रेड्ड रचित निम्न शेर सुनाते हुए कहा,यह शेर भी आज मौंजू है।
देर तक हँसते रहे आलम पनाह
डर कर मसखरे रोने लगे

सीतारामजी शेर सुनकर,मुस्कुरा दिए,उसी समय उन्हे उनके मोबाइल पर संदेश आया,वे रवाना होने लगे,और हमने चर्चा को विराम दिया।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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