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कौन जीतेगा हिंदुत्व या लोकतंत्र  और संविधान ?

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#देश के भविष्य की निर्णायक तारीख 4 जून 2024

 #क्या आसान होगा सत्ता का परिवर्तन ?

 हरनाम सिंह

                 भारतीय गणतंत्र का 18 वां संसदीय चुनाव देश के भविष्य के लिए निर्णायक साबित होने वाला हैं। एक तरफ येन-केन प्रकरेण सत्ता पर बने रहने के लिए हर तरह के पैंतरे के साथ चुनाव लड़ रही भारतीय जनता पार्टी है, दूसरी और कमोबेश बिखरा हुआ इंडिया गठबंधन है जो सर्वधर्म समभाव के साथ संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर एकजुट है। अगर भाजपा को तीसरी बार चुनाव जीतने का अवसर मिला तो क्या होगा ? इस पर कई तरह की आशंकाएं अनेकों बार व्यक्त की जा चुकी है। एक सवाल  यह भी है कि क्या श्री मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद पर आसीन हो सकेंगे ? यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि अगर भाजपा और उसके सहयोगी दल संख्या बल में पीछे रह गए तो क्या सत्ता परिवर्तन आसान होगा ? आज के समय में ये प्रश्न महत्वपूर्ण बने हुए है।

                विगत 10 वर्षों में ब्रेनवाश किए हुए मोदी समर्थक आसानी से अपने कथित भगवान की पराजय को पचा पाएंगे ? क्या भारत में भी वही दृश्य दोहराया जाएगा जो पिछले अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में मोदी जी के परम मित्र ट्रंप के समर्थकों द्वारा अपने  नेता की पराजय पर  हुड़दंग किया गया था। (उन्होंने कैपिटल हिल में घुसकर तोड़फोड़ की थी) पूछा जा रहा है कि क्या भारत में भी अंध भक्त समर्थकों की भीड़ का इस्तेमाल अराजकता फैलाने के लिए होगा ?

                चुनावी प्रचार में स्वयं श्री मोदी और भाजपा के अन्य नेताओं  द्वारा  400 पार की बात कही  जा रही है, लेकिन हर तरह के हथकंडे अपनाने के बाद भी अगर उन्हें सत्ता नहीं मिली अथवा बहुमत से कुछ सीटें कम आई तब कौन बीजेपी को सहयोग करेगा ? किसके साथ कैसे सौदेबाजी होगी ? इन सब बातों पर भाजपा संगठन में अंतर मंथन चल रहा है। इन दिनों सोशल मीडिया पर एक सरकारी खुफिया जांच एजेंसी की रिपोर्ट के हवाले से बताया जा रहा है की पूरा भाजपा परिवार एनडीए 190 सीटों पर सिमट रहा है। ऐसे में अगर इंडिया का गठबंधन सत्तारूढ़ हुआ तो क्या नई सरकार में नरेंद्र मोदी नेता प्रतिपक्ष की भूमिका स्वीकार करेंगे ? 

 #क्या तीसरा अवसर मिलेगा श्री मोदी को ?

             राजनीति और राजनयन में जितना दृश्य सामने दिखाई देता है उससे अधिक गतिविधियां पर्दे के पीछे होती है। जेल से जमानत पर रिहा होते ही इंडिया गठबंधन के प्रमुख घटक आप पार्टी के अरविंद केजरीवाल का यह कहना कि मोदी जी अपने लिए नहीं अमित शाह के लिए वोट मांग रहे हैं। और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी को अपने पद से हटा दिया जाएगा। उनका यह भाषण मात्र चुनावी प्रचार नहीं है, यह उनका सोचा समझा बयान है। भाजपा के अंतर खेमे में 75 वर्ष की आयु के नाम पर हाशिए पर धकेले गए कई  नेताओं की तरह ही श्री नरेंद्र मोदी पर भी आयु के 75 वर्ष पूरे होते ही मार्ग दर्शक मंडल में जाने का दबाव डाला जाएगा ? जैसा जबरन श्री लाल कृष्ण आडवाणी एवं मुरली मनोहर जोशी आदि पर डाला गया था।

              मोदी राज में कई क्षेत्रिय नेता जिनका अवमुल्यन किया गया वसुंधरा राजे सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान आदि अवसर की प्रतीक्षा में हैं। अगर श्री मोदी को पद छोड़ना पड़ा तो कई दावेदार खुलकर सामने आने में संकोच नहीं करेंगे। हालांकि श्री मोदी की पहली पसंद तो जोड़ीदार अमित शाह ही होंगे। लेकिन पार्टी में उनकी स्वीकार्यता कितनी होगी कह पाना मुश्किल है। अरविंद केजरीवाल योगी आदित्यनाथ को हटाए जाने की बात इसलिए कर रहे हैं कि भाजपा में मोदी के बाद श्री योगी को विकल्प न बताया जा सके। इसलिए समय आते ही योगी के पर कतरना जरूरी है।

 #गडकरी प्रबल दावेदार

               वर्षों से मोदी के विकल्प के रूप में नितिन गडकरी का नाम लिया जाता रहा है। उनकी स्वच्छ छवि बताई जाती है जिसके चलते गैर भाजपा दलों में भी उनके प्रशंसक हैं। भाजपा को बहुमत मिले अथवा न मिले दोनों  परिस्थितियों में नितिन गडकरी भाजपा की राजनीति के केंद्र में आ सकते हैं। इसके कई संकेत मिले हैं। वाराणसी में जब नामांकन पत्र प्रस्तुत करने के लिए श्री नरेंद्र मोदी पहुंचे तो उनके साथ अमित शाह, राजनाथ सिंह सहित अनेक केंद्रीय मंत्री, भाजपा शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्री, एनडीए में शामिल दलों के नेता पहुंचे थे। नहीं थे तो नितिन गडकरी नही थे।

 #ममता बन सकती है प्रधानमंत्री

                दूसरी ओर हाल ही में तृणमूल कांग्रेस के नेता ममता बनर्जी ने बयान जारी कर स्पष्ट कर दिया कि वह इंडिया गठबंधन की सरकार को बाहर से समर्थन देगी। लेकिन गठबंधन में शामिल दूसरे दल ऐसा कभी नहीं चाहेंगे की सरकार समर्थन की बैसाखियों पर टिकी रहे और किसी सौदेबाजी की शिकार बने। वरिष्ठ नेता अतीत के अनुभव से सबक सीख चुके हैं। इसलिए बेहतर स्थिति यही होगी कि प्रधानमंत्री पद ही ममता बनर्जी को सौंप दिया जाए।

              दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, झारखंड के हेमंत सोरेन ही नहीं महाराष्ट्र के शरद पंवार भी ममता को पसंद करते हैं। उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। वर्तमान में इंडिया गठबंधन में सबसे कमजोर पार्टी कांग्रेस ही है। पुरी, सूरत और इंदौर में कांग्रेस प्रत्याशियों की हरकतों से संगठन की साख और विश्वसनीयता घटी है। बड़े पैमाने पर कांग्रेस जन भाजपा में शामिल हुए हैं। कांग्रेस में वह नैतिक बल भी नहीं होगा कि वह अपने लिए प्रधानमंत्री पद की दावेदारी करे।

             चुनाव आयोग का खुला पक्षपात, ईवीएम की संदिग्ध विश्वसनीयता, मतदान प्रतिशत में इरादतन अधूरे आंकड़े जारी करने की परिस्थितियों के बीच चुनाव में मतदाताओं और लोकतंत्र की जीत हो, यही कामना की जा सकती है।

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