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कोरोना पर मुंबई मॉडल के क्यों हुए सब मुरीद

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अभिमन्यु शितोले

पिछले हफ्ते बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक सुनवाई में कहा कि दिल्ली में कोरोना मरीजों के ऑक्सिजन मैनेजमेंट में मुंबई मॉडल अपनाया जाना चाहिए। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने सरकार से साफ लफ्जों में कहा कि ग्रेटर मुंबई नगर निगम के अनुभव से कुछ सीखें, वे सचमुच बड़ा काम कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने ऑक्सिजन मैनेजमेंट के जिस मुंबई मॉडल की तारीफ की है, वह कोई जटिल रॉकेट साइंस नहीं है। यह बिलकुल किसी गृहणी की तरह अपने घर का राशन मैनेजमेंट करने जैसा है। अप्रैल के दूसरे सप्ताह में जब कोरोना मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी, तो पूरे देश में ऑक्सिजन की खपत भी बढ़ी। मुंबई के नागरिक प्रशासन के लिए 16-17 अप्रैल का दिन बहुत ही चुनौती भरा था। उस दिन 7,786 नए मरीज आए थे। अचानक ऑक्सिजन की डिमांड बढ़ गई। मुंबई के 6 सरकारी अस्पतालों में ऑक्सिजन कम पड़ने लगी, जिससे 168 मरीजों की जान दांव पर लग गई।

इस मसले पर राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों और मुख्यमंत्री ने फैसला लिया कि 6 अस्पतालों में भर्ती मरीजों को तत्काल कार्डियक एंबुलेंस के जरिए जंबो कोविड केयर हॉस्पिटल में ट्रांसफर किया जाए। आनन-फानन में जहां-जहां कार्डियक एंबुलेंस मिली, सबको जमा किया गया और मरीजों को जंबो कोविड केयर अस्पताल पहुंचाया गया। सभी मरीजों की जान बचा ली गई इससे प्रशासन का हौसला बढ़ा। दोबारा ऐसी स्थिति ना आए इसके लिए टास्क फोर्स से सुझाव मांगे गए।

टास्क फोर्स ने सुझाया कि ऑक्सिजन की बचत के लिए हाई फ्लो नेजल कन्याल (एचएफएनसी) का प्रयोग तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाए, क्योंकि जब मरीज को ऑक्सिजन देने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है, तो 80 लीटर प्रति मिनट की दर से ऑक्सिजन की खपत होती है। इसकी जगह पर बीलेवल पॉजिटिव एयरवे प्रेशर मशीनों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया गया, जो कम दबाव के साथ ऑक्सिजन की खपत करते हैं। यानी सबसे पहले उपलब्ध ऑक्सिजन को संभाल-संभाल कर खर्च करने पर अमल शुरू हुआ। दूसरी तरफ ऑक्सिजन की सप्लाई को नियोजित करने के लिए छह वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम बनी, जिनका काम सिर्फ ऑक्सिजन की नियमित सप्लाई को सुचारू रखना था।

मुंबई के सिर्फ दो सरकारी अस्पतालों में ऑक्सिजन प्लांट लगे हैं, इसलिए बाकी अस्पतालों में ऑक्सिजन देने के लिए तुरंत लिक्विड मेडिकल ऑक्सिजन के टैंक बने, जिन्हें दिन भर में कम से कम एक बार भरने की व्यवस्था की गई। जब ऑक्सिजन का संकट बढ़ा तो तत्काल छह वाहनों को क्विक रिस्पॉन्स वीइकल के तौर पर रिजर्व कर दिया गया। उनका काम सिर्फ जरूरत पड़ने पर अस्पतालों को ऑक्सिजन सिलेंडर और ऑक्सिजन कंसंट्रेटर पहुंचाने का था। वॉर्ड लेवल पर टीम गठित की गई, जिनका काम किसी अस्पताल में रखी सरप्लस ऑक्सिजन को जरूरत वाले अस्पताल तक पहुंचाने का था। ऑक्सिजन का उत्पादन आमद और खपत का बारीकी से रिकॉर्ड बनाया गया। केंद्र से बात करके हल्दिया की जगह गुजरात से ऑक्सिजन मंगाई गई, जिससे समय और बचा।

महाराष्ट्र सरकार ने अपनी मदद के लिए महाराष्ट्र भर के चुनिंदा विशेषज्ञ डॉक्टरों और अनुभवी अफसरों की एक टास्क फोर्स बना रखी है। इस टास्क फोर्स में शामिल चिकित्सा विशेषज्ञों से मुख्यमंत्री खुद संपर्क में रहते हैं। टास्क फोर्स समय-समय पर मुख्यमंत्री को उचित सलाह देता है जो यह बताता है कि आने वाले समय में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और इन चुनौतियों से निपटने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए। मुख्यमंत्री टास्क फोर्स की सलाह को सुनते हैं, मंत्रिमंडल के अपने सहयोगियों के साथ विचार-विमर्श करते हैं, आर्थिक पक्ष की समीक्षा करते हैं और फिर फैसला लेते हैं।

लेकिन सबसे ज्यादा काम आए बड़े-बड़े मैदानों में वे अस्थायी फील्ड हॉस्पिटल, जो पिछली लहर में बने थे। दो से ढाई हजार बिस्तरों की क्षमता वाले इन अस्पतालों में ऑक्सिजन, आईसीयू और वेंटिलेटर भी हैं। इससे अस्पतालों पर कोरोना मरीजों का बोझ घटा और हेल्थ वर्करों की कमी के बावजूद एक ही जगह पर ढेरों लोगों का इलाज किया जा सका। मुंबई में लोगों को बेड की तलाश में उतनी मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ा, जितनी देश के कई हिस्सों में लोग कर रहे हैं।

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