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‘नागरिकता’ से जुड़े कानून क्यों जरूरी….?

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ओमप्रकाश मेहता

इन दिनों भारतीय नागरिकता से जुड़े दो कानूनों ‘समान नागरिक संहिता’ (यूसीसी) और ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ (सीएए) को लेकर सरकार और नागरिकों के बीच अजीब सी हलचल है, इन्हीं के कारण सरकार और नागरिक एक-दूसरे को संशय भरी नजरों से देख रहे है, वैसे देश में उत्तराखण्ड पहला राज्य है जिसने सबसे पहले अपने प्रदेश में ‘समान नागरिक संहिता’ लागू करने का फैसला लिया और यह इस प्रदेश में निकट भविष्य में ही लागू भी हो जाएगी, इसका मसौदा तैयार होना शुरू हो गया है, प्रस्तावित कानून में आदिवासी समूहों को छोड़कर सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, सम्पत्ति के अधिकार, उत्तराधिकार आदि के समान नियम होगें, इस मसौदे में समानता द्वारा समरसता लाने का दावा किया गया है।


इसी के साथ ही नागरिकों से जुड़े एक और कानून सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) पर भी देश में गरमा-गरमी है। इस कानून को संसद ने आज से पांच साल पहले (2019) में मंजूरी दी थी, अब गृहमंत्री अमित शाह ने घोषणा की है कि इसे अगले एक महीनें में ही लागू कर दिया जाएगा, अर्थात् अगले लोकसभा चुनाव के पहले यह अमल में आ जाएगा, शाह की यह आशंका भी है कि इस कानून को लेकर मुस्लिम भाईयों को उकसाया जा रहा है और यह काम वह कांग्रेस कर रही है, जो स्वयं सबसे पहले देश में इस कानून को लागू करने जा रही थी।

शाह ने स्पष्ट किया कि यह कानून किसी की भी नागरिकता नहीं छीनेगी, बल्कि वंचितों को नागरिकता देगा। सवाल यह है कि अब जब केन्द्रीय गृह मंत्रालय नागरिकता संशोधन कानून के नियम तय करके उन्हें अधिसूचित करने जा रहा है तो फिर लोगों को उन कानूनों को लेकर भड़काने और अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना कहा तक उचित है? ये तत्व फिर से मुस्लिम समाज को भड़का कर उसे सड़क पर उतरने को मजबूर कर रहे है, इसी के साथ यह भी जरूरी है कि नागरिकता संशोधन कानून के नियम ऐसे बनाए जाएं जिससे बंगलादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से दिसम्बर 2014 के बाद भी भारत आए लोगों को राहत मिल सके। इस अंतिम तिथि में बदलाव की आवश्यकता इसलिए भी है, क्योंकि पिछले एक दशक में जहां अफगानिस्तान हिन्दुओं एवं सिक्खों से करीब-करीब खाली हो चुका है, वहीं बंगलादेश व पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की प्रताड़ना का सिलसिला और तेज हुआ है, वास्तव में इन तीनों देशों में अल्पसंख्यकों का कोई भविष्य नहीं रह गया है, उनके साथ देश छोड़कर भागने, मतांतरण या फिर मौत के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया है, ऐसे में भारत को अपनी उदारता का परिचय देकर उन्हें अपनाने को तत्पर होना चाहिए, क्योंकि हमारी संस्कृति, हमारा इतिहास यहीं करता आया है और हमारी उदारता के लिए हम पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।


अब यह तो हुई एक बात अब यदि हम हमारे देश के नागरिकों की कानूनी स्वतंत्रता की बात करें तो मौजूदा मोदी सरकार उसके लिए तत्पर और वचनबद्ध है, उसकी प्राथमिकता ही देश और नागरिक है, इसलिए इस दिशा में किसी को कोई संदेह या चिन्ता नहीं करनी चाहिए।

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