सुधा सिंह
रामायण के सारे चरित्रों के बारे में लगभग सभी लोग जानते हैं. सबको पता है कि भगवान राम के 3 भाई थे, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न लेकिन बहुत कम लोग जानते हों…लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि भगवान राम की एक बहन भी थी जिनका नाम शांता था. रामायण में भी शांता का बहुत कम जिक्र है. शांता इन चारों भाइयों की बड़ीइन चारों भाइयों की बड़ी बहन थीं.

दुनिया भर में तीन सौ से ज्यादा रामायण प्रचलित हैं।इन सभी रामायणों की कथाओं में लेखकों की व्यक्तिगत आस्थाओं और रुचियों के अनुरूप थोड़ी-बहुत भिन्नताएं हैं। इनके अलावा जाने कितनी लोककथाएं भी हैं राम के बारे में।
उत्तर भारत में हम रामचरित मानस के आधार पर ही राम-कथा को जानते-मानते हैं। देश की कुछ लोककथाओं में राम की एक बहन के संकेत मिलते हैं। मानस में राम की कोई बहन भी थी, इसका कोई उल्लेख नहीं है।

बाल्मीकि रामायण में दशरथ की एक पुत्री शांता का उल्लेख आया है :
अङ्ग राजेन सख्यम् च तस्य राज्ञो भविष्यति। कन्या च अस्य महाभागा शांता नाम भविष्यति।
शांता के जीवन की कुछ घटनाओं की जानकारी कुछ लोककथाओं और दक्षिण भारत की कुछ रामाकथाओं से ज़रूर मिलती है।
दक्षिण और उत्तर भारत की कुछ लोककथाओं के अनुसार दशरथ और कौशल्या की पुत्री शांता, राम सहित चारों भाइयों से बहुत बड़ी थीं। दुर्भाग्य से वह उस युग की रूढ़ियों, अंधविश्वासों का शिकार हो गई। शांता जब पैदा हुई, तब अयोध्या में भीषण अकाल पड़ा।
चिंतित दशरथ को पुरोहितों ने कहा कि उनकी अभागी पुत्री ही इस भीषण अकाल का कारण है। उसका त्याग किए बिना प्रजा का कल्याण संभव नहीं। दशरथ ने पुरोहितों की बात मानकर शांता को अपने एक निःसंतान मित्र और साढ़ू रोमपाद को दान कर दिया। रोमपाद तब अंग के राजा हुआ करते थे।
उनकी पत्नी वर्षिणी, कौशल्या की बहन थी। रोमपाद के आपदाग्रस्त राज्य में एक बार श्रृंगी ऋषि ने एक सफल यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के सकारात्मक परिणाम से हर्षित रोमपाद ने अपनी पालित पुत्री शांता का ब्याह श्रृंगी ऋषि से कर दिया।
इधर अयोध्या में दशरथ और उनकी तीनों रानियों को अरसे तक कोई अन्य संतान नहीं हुई। उनकी चिंता यह थी कि पुत्र नहीं होने की स्थिति में उनके विशाल साम्राज्य का उत्तराधिकारी कौन होगा।
कुलगुरू वशिष्ठ ने उन्हें सलाह दी कि आप अपने दामाद ऋंगी ऋषि की देखरेख में ऋषियों से एक पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं। दशरथ ने यज्ञ में देश के कई महान ऋषियों के साथ ऋंगी ऋषि को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए आमंत्रित किया। अयोध्या में पुनः अकाल पड़ जाने के भय से उन्होंने बेटी शांता को नहीं बुलाया।
पत्नी के बिना श्रृंगी ने उनका आमंत्रण अस्वीकार कर दिया। अंततः विवशता में दशरथ को अपनी बेटी शांता को भी बुलावा भेजना पड़ा। ऋंगी ऋषि के साथ शांता के अयोध्या पहुंचते ही राज्य में कई सालों बाद भरपूर वर्षा हुई।
यज्ञ के पूर्व वर्षा को यज्ञ की सफलता की पूर्व सूचना मानी गई।
पुत्रेष्टि यज्ञ की समाप्ति के बाद भावनाओं में डूबती-उतराती अकेली शांता जब दशरथ के सामने उपस्थित हुई तो दशरथ उन्हें पहचान नहीं सके। आश्चर्यचकित होकर उन्होंने पूछा – ‘देवी, आप कौन हैं ?
आपके पांव रखते ही अयोध्या में चारों ओर वसंत छा गया है।’ शांता ने अपना परिचय दिया तो पुत्री और माता-पिता की बरसों से सोई स्मृतियां भी जागीं और भावनाओं के कई बांध भी टूटे। यज्ञ के सफल आयोजन के कुछ दिनों बाद शांता ऋषि श्रृंग के साथ अपने आश्रम लौट गई।
इस घटना के बाद शांता की अपने माता-पिता, भाईयों और स्वजनों से भेंट का किसी ग्रंथ या लोककथा में कोई उल्लेख नहीं मिलता। कभी-कभी मन में यह सवाल अवश्य उठता है कि पुत्र-वियोग में प्राण त्यागने वाले दशरथ को कभी अपनी निर्वासित पुत्री की याद क्यों नहीं आई ?
कुछ वर्षों पहले के एक टेलीविजन सीरियल में राम की बहन शांता के साथ मिलन का एक प्रसंग दिखाया गया था। संभवतः कल्पना के आधार पर ही।
यह सोचकर आश्चर्य होता है कि राम के परिवार और उनके जीवन की छोटी से छोटी घटना का उल्लेख करने वाले आदिकवि बाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास से तपोवन के एकांत में बसी शांता की व्यथा अनदेखी और अनकही कैसे रह गई?