हरे राम मिश्र
पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस द्वारा जून 2022 में उद्धव ठाकरे की सरकार को गिराकर शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में महायुति सरकार का गठन करवाया गया। इस गठबंधन का हिस्सा एनसीपी नेता अजीत पवार भी बने।
महायुति गठबंधन की इस सरकार ने महाराष्ट्र विधानसभा के शेष कार्यकाल को न केवल पूरा किया बल्कि नियत समय पर विधानसभा चुनाव में भी उतरा और अप्रत्याशित जीत हासिल की। उत्तर महाराष्ट्र की 47 विधानसभा सीटों में इस गठबंधन को 35 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान, मैंने उत्तर महाराष्ट्र के धुले, नासिक, जलगांव, नंदुरबार और उसके आस-पास के क्षेत्रों में लम्बा समय बिताया। इस दौरान मैंने वहां के लोगों, स्थानीय नेताओं से चुनाव के संदर्भ में कई मुलाकातें कीं।
एकनाथ शिंदे सरकार की उपलब्धियों, उद्धव ठाकरे के काम काज पर आम लोगों जैसे किसानों, युवाओं, मजदूरों से लम्बी चर्चाएं हुईं।
गौरतलब है कि उत्तर महाराष्ट्र को भाजपा और संघ परिवार का एक मजबूत गढ़ माना जाता है। जलगांव लोकसभा क्षेत्र से 1992 से लगातार आज तक भाजपा का ही लोकसभा सदस्य है। क्षेत्र का बहुसंख्यक पिछड़ा समुदाय, जिसमें ज्यादातर कुर्मी पाटील हैं और अपने को मराठा क्षत्रिय मानते हैं, भाजपा को वैचारिक और राजनैतिक समर्थन देते हैं।
दलित, जो खुद को जय भीम समुदाय कहलाना पसंद करता है, डा. आम्बेडकर का अनुयाई है और कांग्रेस का परंपरागत मतदाता है. वहीं आदिवासी, जिसमें भील और पारधी प्रमुख हैं- एकलव्य से लेकर, शिवाजी महाराज और महात्मा बुद्ध से लेकर डा. आम्बेडकर तक- सबको अपना नायक मानता है।
हालांकि नरेंद्र मोदी के उभार के बाद, दलित और आदिवासी दोनों समुदाय भाजपा और हिंदुत्व के प्रति एक समर्थक दृष्टिकोण रखने लगे हैं। इसके लिए राज्य में विचार की जगह पहचान आधारित राजनीति का उभार और तक़रीबन समस्त राजनैतिक दलों द्वारा इसे वैधता दिया जाना जिम्मेदार है।
मैंने जलगांव के आदिवासी बहुल गांवों में एकलव्य मंदिर देखे हैं, जिसमें क्रम से एकलव्य, शिवाजी, बाबा साहब और बुद्ध की प्रतिमाएं या बड़े फ्रेम में उनके फोटोग्राफ़ लगे हुए हैं।
विधानसभा चुनाव में ग्राउंड रिसर्च के दौरान जब आम लोगों से मेरी मुलाकात होती थी, तब पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके काम काज पर भी चर्चा होती थी।
इसके साथ ही शरद पवार को लेकर आम लोग क्या सोचते हैं- इसपर भी बातचीत होती थी। सवाल यह भी होता था कि उद्धव ठाकरे सरकार को जिस तरीके से सत्ता से हटाया गया उसे लेकर इस क्षेत्र के आम लोग क्या सोचते हैं?
जलगांव के अमलनेर तालुका स्थित मारवाड़ गांव निवासी उप सरपंच बीकन राव पाटील बातचीत में उद्धव ठाकरे सरकार को गिराए जाने को सही नहीं मानते। हालांकि वह भाजपा की राजनीति को पसंद करते हैं। वह कहते हैं, ‘हालांकि मैं खुद भाजपा की राजनीति को पसंद करता हूं।
और मोदी जी को समर्थन देता हूं, वोट देता हूं- लेकिन जिस तरह से उद्धव की सरकार को गिराया गया- वह गलत था। इसकी कोई जरूरत ही नहीं थी।’ वह कहते हैं कि इस गलती के बाद भाजपा की सबसे बड़ी गलती एकनाथ शिंदे सरकार में अजीत पवार को शामिल करके हुई।
जिसके भ्रष्टाचार को पानी पीकर भाजपा कोसती थी आज वही बराबर मंच पर खड़ा है। वह यह मानते थे कि देवेन्द्र फड़नवीस ने ऐसा करके भाजपा की हिंदुत्व राजनीति और राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ उसके संघर्ष को काफी नुकसान पहुंचाया है।
एकनाथ शिंदे सरकार ने युवाओं के लिए कितना काम किया- इस सवाल पर अमलनेर के ही गोवर्धन- बोरगांव ग्राम पंचायत के एक युवा हरशैल पाटील ने कहा, ‘इस सरकार ने हम युवाओं के लिए कुछ भी नहीं किया। दो साल में कोई भी भर्ती नहीं निकाल पाई।
युवा तैयारी किये हुए बैठे हैं लेकिन भर्ती का विज्ञापन ही नहीं आ रहा है। शिंदे सरकार आने के बाद आम युवाओं के भविष्य को चौपट करने के आलावा कोई काम नहीं हुआ है।’ उन्होंने माना कि उद्धव ठाकरे को जिस तरह से मुख्यमंत्री पद से हटाया गया वह ठीक नहीं था।
उन्होंने आगे कहा, ‘कोविड महामारी से निपटने में उद्धव ठाकरे ने काफी संवेदनशील तरीका अपनाया था। लेकिन उसके बाद उन्हें काम करने के लिए समय ही नहीं मिला कि वह आगे राज्य के लिए कुछ काम कर पाते।’
एकनाथ शिंदे की सरकार में किसानों को क्या हासिल हुआ, इसकी पड़ताल करने मैं किसान सुधीर पाटील से मिलने उनके गांव बोहरे पहुंचा। जब उनसे किसानों को लेकर एकनाथ शिंदे सरकार की उपलब्धियों पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, ‘इस सरकार में किसानों के लिए कुछ भी नहीं किया गया।
किसानों को जहां महंगी लागत से कोई राहत नहीं मिली वहीं तैयार फसल का ठीक से भाव तक नहीं मिला। शिंदे सरकार केवल अपनी जेब भरने के अलावा क्या कर रही थी? कृषि के उपकरण, खाद बीज, पेस्टिसाइड सबमें महंगाई अलग बढ़ती जा रही है। हम इस सरकार से बहुत हताश हैं।’
दिलीप पाटील अमलनेर के ब्रह्मणे गांव के निवासी और एक किसान हैं। उद्धव बनाम शिंदे के शासन की तुलना में वह कहते हैं, ‘उद्धव ठाकरे बढ़िया सरकार चला रहे थे। किसानों को उनकी फसलों का सही दाम भी मिल जा रहा था क्योंकि शरद पवार जैसा नेता उद्धव ठाकरे सरकार का हिस्सा था।
लेकिन, जिस तरह से उद्धव सरकार को गिराया गया उसने भाजपा को बेनकाब किया है। यह सरकार आने के बाद किसानों और आम लोगों के लिए कुछ नहीं हुआ।’ वह आगे कहते हैं कि अगर इस सरकार ने काम किया होता तो चुनाव के ठीक पहले इसे मध्य प्रदेश की तर्ज पर महिलाओं को नकदी देने की ‘मांझी लाडकी बहिन योजना’ क्यों लांच करना पड़ता?
वह पूछते हैं, ‘महाराष्ट्र के खजाने में इसके लिए पैसा कहां से आएगा? जाहिर है इसकी भी वसूली आम आदमी जैसे किसानों की जेब से ही होगी।’ उन्होंने मुझे एक मराठी अख़बार की कटिंग दिखाई जिसके मुताबिक राज्य सरकार दस हजार करोड़ का कर्ज लेने इसलिए जा रही थी क्योंकि उसे राज्य सरकार के कर्मचारियों का बकाया अदा करना था।
भाजपा द्वारा उद्धव ठाकरे सरकार को हटाये जाने और एकनाथ शिंदे की ताजपोशी के सवाल पर जलगांव क्षेत्र में भाजपा के कई स्थानीय और जमीनी नेताओं से भी मेरी चर्चा हुई थी। इसकी जरूरत क्यों थी पर ज्यादातर ने ऑफ रिकॉर्ड बातचीत की थी।
इन नेताओं ने उद्धव सरकार को हटाये जाने के तरीके को भाजपा के लिए भविष्य में न केवल नुकसानदेह माना, बल्कि यह स्वीकार किया कि महायुति सरकार के गठन में अजीत पवार को शामिल करना भाजपा की एक ऐसी गलती है- जो भ्रष्टाचार से निपटने के सवाल पर उसकी प्रतिबद्धता को नकारती है।
इन नेताओं ने यह स्वीकार किया कि देवेन्द्र फडनवीस ने अमित शाह के निर्देश पर उद्धव ठाकरे सरकार को गिराने और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में महायुति सरकार के गठन की जो स्क्रिप्ट लिखी थी, उसे महाराष्ट्र के लोगों ने वैधता नहीं दी। भाजपा का कोई भी नेता यह बेहिचक स्वीकार नहीं कर सका कि हम इस तख्तापलट को आम जनता के बीच सही साबित कर देंगे।
महेश पाटील, अमलनेर में भाजपा के नेता और नगर परिषद् के पूर्व कॉरपोरेटर रहे हैं। उन्होंने इस तख्तापलट को जनता के बीच वैधता देने वाली कहानी की स्क्रिप्ट मुझे समझाई थी। उन्होंने कहा, ‘महायुति सरकार के गठन पर हम अपने संगठन के बूते जनता को यह समझाने में कामयाब हो जाते कि हिंदुत्व की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए हमने उद्धव ठाकरे से सत्ता छीनी थी।
यह इसलिए जरूरी था क्योंकि उद्धव ठाकरे कांग्रेस के ट्रैप में फंसकर महाराष्ट्र में हिंदुत्व को नुकसान पहुंचा रहे थे। वह तुष्टिकरण की राजनीति में उतर आये थे, इसलिए यह परिवर्तन जरूरी था।’
उनके मुताबिक इस बात को महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के एक हिस्से में स्वीकार भी कर लिया जाता। लेकिन, महायुति में अजीत पवार की एंट्री ने इस स्क्रिप्ट को चौपट कर दिया। अजीत पवार के महायुति में शामिल होने के बाद, हम आम जनता को यह बताने की हिम्मत ही नहीं कर पा रहे थे कि महायुति के गठन के पीछे अब क्या सोच थी।’
हम सरकार परिवर्तन को वैधता देने वाली बहस समाज में पैदा नहीं कर पाए। महेश पाटील स्पष्ट तौर पर यह मानते थे कि एकनाथ शिंदे सरकार में आम जनता के प्रति ऐसा कुछ नहीं हुआ जो भाजपा को लोगों के बीच तनकर खड़ा होने और वोट मांगने के लिए सहज कर सके।
अमलनेर के ही कामतवाड़ी गांव के सरपंच भगवान पाटील भाजपा के जलगांव जिले के किसान मोर्चा के जिला समन्वयक हैं। मैंने जब उनसे यह सवाल किया कि राज्य का यूथ काफी नाराज है। किसान भी दुखी है, तो उन्होंने स्वीकृति में हामी भरी और कहा कि ‘हां’ ऐसा है।
महायुति सरकार को इस नाराजगी का नुकसान उठाना पड़ेगा। ऐसी ही बातें, नासिक, धुले और उत्तर महाराष्ट्र के अन्य इलाकों से भी निकल रही थीं।
उत्तर महाराष्ट्र में आम लोगों, नौजवानों किसानों की महायुति सरकार से नाराजगी के व्यापक असर को अन्य क्षेत्रों में समझने की कोशिश में मैं पुणे शहर में तक़रीबन बीस दिन रहा और आम लोगों, टैक्सी ड्राईवर से भी इस सन्दर्भ में काफ़ी चर्चा हुई। इस चर्चा में शिंदे सरकार के मुकाबले उद्धव ठाकरे सरकार को लोगों ने ज्यादा सम्वेदनशील और जनता के लिए काम करने वाला माना था।
अब सवाल है कि जब जनता में महायुति सरकार के खिलाफ इतनी नाराजगी थी, तब इसने अप्रत्याशित तौर पर न केवल वापसी की, बल्कि भाजपा को पहले से ज्यादा समर्थन मिला। आखिर, ऐसा कैसे संभव हुआ?
जहां तक मैंने देखा और महसूस किया महायुति गठबंधन इस बात से वाकिफ़ था कि उसकी हालत ठीक नहीं है और इसलिए उसने अपने अंतिम वोटर को बूथ तक लाने में कोई कोताही नहीं बरती।
अपनी सियासी लाइन पर बहुत आक्रामक चुनावी अभियान चलाया। अंतिम समय में महायुति का हिस्सा जितने भी दल थे- इस बात पर एकमत थे कि आपसी अन्तर्विरोध की कोई भी खबर बाहर नहीं जानी चाहिए, ताकि एकजुट दिखा जा सके।
चूंकि, महायुति सरकार अपने कार्यकाल में कुछ भी उल्लेखनीय नहीं कर पाई थी लिहाज़ा उसे मध्यप्रदेश के प्रयोग को यहां दोहराना पड़ा। इस प्रयोग को लेकर भाजपा को भरोसा था कि महिलाओं को नकदी देने की ‘मांझी लाडकी बहिन योजना’ का व्यापक प्रचार उसे इस विषम परिस्थिति से उबार सकता है।
इस योजना में प्रति विधानसभा लगभग साठ हजार लाभार्थी तैयार किये गए थे और उनकी शत प्रतिशत वोटिंग की पूरी कोशिश की गई। इसके साथ ही इस डर का प्रचार भी किया गया कि यह योजना सरकार की वापसी पर ही जारी रहेगी, अन्यथा विपक्षी दल इसे बंद कर देंगे।
दलित, आदिवासी, और गरीब मुस्लिम महिलाओं ने- जिन्हें योजना का लाभ मिल रहा था उन्होंने महायुति सरकार को एकतरफ़ा वोट किया। इस समर्थन से महायुति गठबंधन को काफी फायदा हुआ। इसके साथ ही संघ परिवार ने जमीन पर सिर्फ महायुति गठबंधन के लिए काम किया और यह सन्देश घर-घर पहुंचाया कि इस चुनाव में हार मतलब मोदी का कमजोर होना, और ऐसा नहीं होने देना है।
यही नहीं, महायुति ने अपना सीट बंटवारा काफी पहिले ही सुलझा लिया था, जिससे प्रत्याशियों को पर्याप्त समय मिला और वह विधानसभा चुनाव में विधानसभा में ठीक से काम कर सके।
बात यही नहीं रुकी। ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नैरेटिव को भी संघ परिवार द्वारा घर-घर पहुंचाया गया, इससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ। इसने भी भाजपा को उन मुद्दों को नेपथ्य में धकेलने में मदद की जिनपर महायुति सरकार को घेरा जा रहा था।
विपक्ष ने इस नैरेटिव के खिलाफ संविधान पर छाये खतरे, उसकी रक्षा, जातिगत जनगणना नैरेटिव जरूर रखा, लेकिन यह नैरेटिव जनता के बीच बहुत अपील नहीं कर पाया। भाजपा ने अपने मजबूत संगठन क्षमता से जहां हारी हुई बाजी को पलट दिया वहीं विपक्ष के पास कमजोर संगठन के कारण अपना नैरेटिव भी जमीन तक नहीं पहंचाया जा सका।
यही नहीं, लोकसभा चुनाव में मिली सफलता से विपक्ष कुछ बेपरवाह हो गया था। यहां यही बहस जारी थी कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? महा विकास अघाड़ी लम्बे समय तक टिकट बंटवारे में ही उलझा रहा। उसके पास महायुति के खिलाफ़ कोई ठोस रोडमैप ही नहीं था।
आम जनता के गुस्से को वोट में कैसे कन्वर्ट करना है, इसपर कोई रणनीति नहीं थी। कांग्रेस आत्ममुग्धता का भयानक शिकार थी। कांग्रेस और उद्धव ठाकरे के लोगों को भी लगता था कि उन्हें जबरिया हटाये जाने से जनता से मिली सहानुभूति का चुनावी फायदा होगा।
सबसे बड़ी बात थी कि इस सरकार के खिलाफ़ शरद पवार किसानों को कोई स्पष्ट सन्देश देने में चूक गए कि उन्हें क्या करना है और कहां जाना है। जबकि किसानों में शरद पवार का सम्मान और स्वीकार्यता है।
भाजपा ने शरद पवार पर कोई चुनावी हमला नहीं किया। इससे यह सन्देश गया कि चाहे जो हो जाये- भाजपा की ही सरकार बनेगी क्योंकि शरद पवार भी महायुति शामिल हो सकते हैं। कुल मिलाकर भाजपा ने अपनी कैडर क्षमता के दम पर यह चुनाव जीता और साबित किया कि मॉस पॉलिटिक्स पर कैडर पॉलिटिक्स भारी पड़ती है।
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