भारत में साइबर अपराध तेजी से बढ़ रहा है। 2023 में 11 लाख घटनाएं सामने आई हैं। लोगों को डिजिटल गिरफ्तारी के नाम पर ठगा जा रहा है। साइबर अपराधी वीडियो कॉल के जरिए डराते हैं और पैसे ऐंठते हैं। सरकार ने चेतावनी दी है और साइबर अपराध रिपोर्ट करने के लिए हेल्पलाइन नंबर 1930 और पोर्टल दिया है।
दिल्ली के एक 50 वर्षीय पत्रकार ने ऑनलाइन ठगी में 1.86 करोड़ रुपये गंवा दिए। उधर नोएडा में एक रिटायर्ड सरकारी अधिकारी को 1.19 करोड़ रुपये का चूना लगाया गया। वहीं अहमदाबाद की एक 27 वर्षीय महिला को साइबर अपराधियों की ओर से 5 लाख रुपये ऐंठने से पहले वेबकैम पर कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया गया। इन सभी मामलों में एक बात समान है – पीड़ितों को ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ के तहत रखा गया था।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में साइबर अपराधों में जबरदस्त बढ़ोती देखी गई है। 2017 में 3,466 मामले, 2018 में 3,353, 2019 में 6,229, 2020 में 10,395, 2021 में 14,007 और 2022 में 17,470 मामले दर्ज किए गए। फरवरी में, तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने लोकसभा को एक लिखित उत्तर में बताया कि 2023 में वित्तीय साइबर धोखाधड़ी की 1,12,82,65 शिकायतें मिली थीं।
साइबर अपराध का खतरा पिछले कुछ सालों में बढ़ा है, खासकर इंटरनेट यूजर्स की बढ़ती संख्या के साथ। सूचना और प्रसारण सचिव संजय जाजू ने हाल ही में कहा है कि 90 करोड़ से अधिक इंटरनेट यूजर्स के साथ, भारत ने डिजिटल इंडिया पहल के तहत असाधारण डिजिटल विकास देखा है।लेकिन इस प्रगति के साथ साइबर धोखाधड़ी की चुनौतियां भी आई हैं, 2023 में ऐसी 11 लाख घटनाएं सामने आई हैं।
डिजिटल गिरफ्तारी क्या है?
डिजिटल गिरफ्तारी में स्कैमर ऑडियो या वीडियो कॉल के दौरान लोगों को डराने के लिए कानून प्रवर्तन अधिकारियों का रूप धारण करते हैं और गिरफ्तारी के झूठे बहाने से उन्हें उनके घर में कैद करके पैसे ऐंठते हैं। मार्च 2024 में, गृह मंत्रालय (MHA) ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर लोगों को पुलिस अधिकारियों, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), नारकोटिक्स विभाग, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), प्रवर्तन निदेशालय और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के नाम पर फर्जी कॉल करने वाले ब्लैकमेलर्स के प्रति सतर्क किया था।
कैसे डराते हैं?
इन धोखाधड़ी करने वालों का तरीका आमतौर पर पीड़ितों से संपर्क करना और दावा करना होता है कि पीड़ित ने या तो नशीले पदार्थ, नकली पासपोर्ट, या अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं जैसे अवैध सामानों वाला एक पार्सल भेजा है या प्राप्त करने वाला है। कुछ मामलों में, वे आरोप लगाते हैं कि पीड़ित का कोई करीबी रिश्तेदार या दोस्त किसी अपराध या दुर्घटना में शामिल रहा है और अब हिरासत में है। तथाकथित मामले को सुलझाने के लिए धोखाधड़ी करने वाले पैसे की मांग करते हैं। कुछ मामलों में, पीड़ितों को एक ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ से गुजरने के लिए बरगलाया जाता है, उन्हें स्काइप या अन्य वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से लगातार निगरानी में रखा जाता है, जब तक कि अपराधियों की मांगें पूरी नहीं हो जातीं।
पुलिस थानों जैसे स्टूडियो का इस्तेमाल
ये धोखाधड़ी करने वाले पुलिस थानों और सरकारी कार्यालयों जैसे स्टूडियो का इस्तेमाल करते हैं और असली दिखने के लिए वर्दी पहनते हैं। ऐसे अपराधियों के हाथों देशभर में कई पीड़ितों ने बड़ी रकम गंवाई है। MHA ने कहा था कि यह एक संगठित ऑनलाइन आर्थिक अपराध है और इसे सीमा पार अपराध सिंडिकेट की ओर से संचालित करने की जानकारी मिली है। हालांकि, कुछ अधिकारियों का कहना है कि ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ जैसी कोई चीज नहीं है, फिर भी शिक्षित व्यक्ति भी इन धोखाधड़ी करने वालों के झांसे में आ रहे हैं। भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C), जो साइबर अपराध से संबंधित मुद्दों से निपटने पर ध्यान केंद्रित करता है, ने यह भी एक एडवाइजरी जारी की है जिसमें कहा गया है कि CBI, पुलिस या ED किसी को भी वीडियो कॉल पर गिरफ्तार नहीं करते हैं।
तरीका क्या है?
साइबर सुरक्षा एक्पर्ट जतिन जैन ने न्यूज18 को दिए इंटरव्यू में बताया कि अपराधी लोगों के मन का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में, धोखाधड़ी करने वाले माता-पिता से पैसे ऐंठने के लिए बच्चों को एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल करते हैं, यह कहकर कि उनके बच्चे को ड्रग्स के साथ पकड़ा गया है। जैन ने बताया कि ‘ये अपराधी अब इंसानी मन का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। पहले, उनका तरीका पीड़ितों को यह बताना होता था कि उनके पार्सल में ड्रग्स मिले हैं। सामाजिक प्रतिष्ठा और कानूनी परिणामों के डर से पीड़ित पैसे दे देते हैं। अपराधी लोगों से जुर्माना देने या वकील करने के लिए भी कहते हैं। एक बार जब आप भुगतान कर देते हैं, तो वे जान जाते हैं कि पीड़ित अब कहानी पर विश्वास करते हैं। फिर पीड़ितों को कैमरे के सामने बैठने के लिए कहा जाता है जब तक कि वे पूरी राशि जमा नहीं कर देते।’
साइबर अपराध से कैसे बचें?
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ अनुज अग्रवाल ने साइबर अपराधों में वृद्धि के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों को दोषी ठहराते हुए कहा कि सरकार को इस खतरे को रोकने के लिए और कदम उठाने चाहिए। अग्रवाल ने कहा, ‘अपराधी लंबे समय से वित्तीय धोखाधड़ी करते रहे हैं। यह कानून प्रवर्तन की विफलता है जिसके कारण ये अपराधी अब निडर हो गए हैं। सरकार की ओर से ऐसे अपराधों को रोकने के लिए उठाए गए कदम केवल कागजों पर ही हैं।’ अग्रवाल ने सुझाव दिया कि साइबर अपराध के मामलों से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय समन्वय एजेंसी की स्थापना के लिए एक कानून बनाया जाना चाहिए, जिसके पास कानून और व्यवस्था का अधिकार हो।
साइबर अपराधों की रिपोर्ट कैसे करें?
ऐसे फ्रॉड कॉल आने पर व्यक्ति को तुरंत साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 पर घटना की सूचना देनी चाहिए। ऑनलाइन बदमाशी और पीछा करने से लेकर वित्तीय धोखाधड़ी तक, कोई भी साइबर अपराध MHA के राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (www.cybercrime.gov.in) पर रिपोर्ट किया जा सकता है। मदद के लिए अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन से भी संपर्क कर सकते हैं।