जेनेटिकली मोडिफाइड यानी जीएम बीजों का शुरू से ही विरोध होता आ रहा है, पद्मश्री सुभाष पालेकर इस लेख में बता रहे हैं वो किसानों को ये बीज इस्तेमाल करने से क्यों रोकते आ रहे हैं? बाजार से कोई भी बीज क्यों खरीदना है? जब बाजार से बीज ही खरीदना नहीं है माने खाद दवा भी खरीदना नहीं है। हमारे जन आन्दोलन का नारा है, गाँव का पैसा गाँव में रहेगा, वह गाँव के बाहर नहीं जाएगा, लेकिन बाहर जा पैसा गाँव में आयेगा। ग्राम स्वावलंबन, ग्रामीण अर्थ व्यवस्था की आत्मनिर्भरता माने हमारे भारत देश की आत्मनिर्भरता।
मैंने कभी भी जानुक रूपांतरित यानी जेनेटिकली मोडिफाइड बीज (Genetically Modified Seed) जैसे बीटी कपास, मक्का, सरसों के बीजों का समर्थन नहीं किया, हमारा सुभाष पालेकर कृषि जन आन्दोलन उसके विरोध में सदा रहा है और रहेगा। क्योंकि, यह जानुक अभियांत्रिकी (Genetical Engineering) तकनीक ईश्वर निर्मित व्यवस्था द्वारा स्वयं उत्परिवर्तन (Self Mutation) क्रिया से स्वयं में समयानुसार अनुकूल बदलाव लाकर वंश को आगे बढ़ाने की कोशिश करना, इस ईश्वर द्वारा गठित व्यवस्था को नकारने का पाप यह जानुक अभियांत्रिकी genetical engineering तकनीक कर रहा है। ईश्वर के विरोध में बगावत करके घोर अज्ञान और तथाकथित वैज्ञानिक नास्तिकता फैला रहा है। इसलिए हमारा विरोध है।
साथ में जानुक रूपांतरित बीजों को जानुक अभियांत्रिकी के द्वारा इस तरह गठित किया गया है कि बिना रसायनिक खाद उच्चतम मात्रा में डाले और अधिकतम मात्रा में कीटनाशी दवाओं का बिना उपयोग किए, फफूंदनाशी दवाओं का बिना उपयोग किए और अधिकतम मात्रा में खरपतवार नाशी दवाओं का बिना उपयोग किए बीटी कपास फसल बढ़ेंगी ही नहीं और उत्पादन देंगी ही नहीं।
अधिक उत्पादन के लालच में किसानो को बीटी कपास बीजों को बोने के लिए जबरन बाध्य किया गया और साथ-साथ देशी बीजों को समाप्त करने का षडयंत्र भी उसी समय शुरू किया। इसलिए सुभाष पालेकर कृषि जन आन्दोलन का उसे घोर विरोध है।
लेकिन, जब तक देशी बीज या चयनित बीज (Straight Line Selected Seed) किसानों को उपलब्ध नहीं होंगे और जब तक बीटी कपास से ज्यादा उत्पादन जो कृषि तकनीक देशी बीज के माध्यम से या चयनित बीज के माध्यम से देते है ऐसी तकनीक जबतक किसानों को उपलब्ध नहीं होंगा, तब तक किसान बीटी कपास लगाना नहीं छोड़ेंगे। यह निश्चित है।

बीटी जेनेटिकली मोडिफाइड (Genetically Modified) बीजों का विरोध करने वाली संस्थाएं या गैर सरकारी संगठन ABHI तक ऐसे देशी बीज और न्यूनतम लागत का कृषि तकनीक कपास उत्पादक किसानों को देने में सफल नहीं हुए है।
वे बाते तो बड़ी लंबी लंबी करते है, निरंतर राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में सहभाग लेते रहते है, प्रसार माध्यमों में बड़े-बड़े विश्लेषणात्मक लेख लिखते रहते है, बड़ी अच्छी समीक्षा भी करते रहते है। लेकिन उन्होंने अभी तक किसानों के समस्याओं का तृण मूल स्तर पर जाकर अभ्यास नहीं किया, समस्याओं के मूल जड़ों को नहीं खोज निकाला, और उन गंभीर मूलभूत समस्याओं का सही शाश्वत समाधान किसानों को और सरकारों को नहीं दिया। उनके पास कोई सत्य समाधान और विकल्प नहीं है।
हमने सुभाष पालेकर कृषि में सीधे चयन पद्धति से चयनित बीज खुद तैयार करने का प्रशिक्षण किसानों को दिया है, ताकि वे अपना स्वयं विकसित चयनित बीज खुद तैयार करें और उन्हें बाजार से बीज खरीदना न पड़ें। वे स्वयं को बीज स्वावलंबी बनाए। जिससे वे हरित क्रांति के विनाशकारी विध्वंसक शोषणकारी विदेशी चक्रव्यूह को भेद कर उसमें से सुरक्षित बाहर निकल आए।
जिन कपास उत्पादक किसानों को, वे जो चाहते है ऐसे देशी बीज या चयनित बीज किसी भी कीमत पर उपलब्ध नहीं हो रहे हैं, लेकिन किसी कारण वश वे कपास लगाना छोड़ना नहीं चाहते हैं और कोई सक्षम विकल्प न मिलने से मजबूर बनकर वे किसी भी स्थिति में बीटी कपास लगाने के लिए जबरन मजबूर हुए हैं, उनके पास अन्य कोई सक्षम विकल्प नहीं हैं, उन्हें हमने इस आपातकाल में संकर हो या बीटी कपास के फसल को जीवामृत घन जीवामृत आच्छादन वाफ़सा और जैव विविधता इन सुभाष पालेकर कृषि जन आन्दोलन के पांच सिद्धांतों का उपयोग करने की अनुमति दी है।
क्योंकि हमारा सुभाष पालेकर कृषि जन आन्दोलन मानवता वादी आध्यात्मिक सिद्धांतवादी वैद्य के भूमिका में है। कोई भी मानवतावादी वैद्य दवा देते समय ये नहीं देखता कि रोगी संत है या हैवान है,
रोगी राम है या रावण है, योगी है या भोगी है, देव है या दानव है, हिंदू है या मुसलमान है,भारतीय है या पाकिस्तानी है। उन वैद्य के सामने सिर्फ मानवता होती है और पीड़ा से कराह रहा रोग ग्रस्त रोगी होता है।
चाहे वह किसी भी जाति को हो, पंथ का हो या धर्म का हो या किसी भी विचारधारा का हो या किसी भी राजनीतिक पार्टी का हो, चाहे वह देशी बीज लगाने वाला हो या संकर बीज लगाने वाला हो या बी टी कपास बीजों को लगाने वाला हो, उसे बिना विलम्ब उचित दवा देना किसी भी वैद्य का धर्म होता है।

उसी तरह सुभाष पालेकर कृषि जन आन्दोलन में हमारा बीजामृत जीवामृत घन जीवामृत आच्छादन वाफ़सा और जैव विविधता ये पंच सिद्धांत हैं, उन पर सभी किसानों का सभी प्रकार के फसलों का , सभी प्रकार के बीजों का और सभी मानव का समान अधिकार है, चाहे वह कोई भी फसल हो, चाहे कोई भी देशी बीज की फसल हो या चयनित बीज की फसल हो, या उन्नत improved बीज की फसल हो या संकर बीज की फसल हो या जेनेटिक मोडीफाइड बीटी बीज की फसल हो।
हमारे सुभाष पालेकर कृषि जन आन्दोलन के सामने ये सभी किसान समस्या ग्रस्त पीड़ा ग्रस्त एक समान रोगी है, कोई भेद भाव नहीं है, हमारे लिए वे केवल समस्या ग्रस्त रोगी हैं और सबको बिना कोई भेदभाव दवा के रूप मे बीजमृत जीवामृत घन जीवामृत आच्छादन वाफ़सा और सह फसलों की जैव विविधता रूपी दवा देना हमारा मानवता का धर्म है, कर्तव्य है, सामाजिक दायित्व है, आध्यात्मिक दायित्व है और संवैधानिक दायित्व भी है। हम उसे पूरा कर रहे है। चाहे यह हमारी भूमिका किसी को पसंद हो या नहीं हो, इससे हमारे जन आन्दोलन को कोई लेना देना नहीं है। क्योंकि हम वैद्य है, और वैद्य का धर्म सेवा धर्म होता हैं, जिसका हम पूरी कर्तव्य तपतरता के साथ एक सामाजिक आध्यामिक दायित्व समझकर पालन कर रहे है।
हमारा सुभाष पालेकर कृषि जन आन्दोलन देशी बीजों को संकलित करने में लगा हुआ है, हमारे किसान स्वयं सीधे चयनित बीज विकास कार्य में लगे हुए है l हम ने इस सीधे चयन पद्धतिसे उन्नत बीजों का, संकर बीजों का और बीटी कपास के बीजों का रूपांतरण सीधे चयनित बीजों में ईश्वर निर्मित स्वयं उत्परिवर्तन क्रिया से करने का अभियान शुरू किया है। ताकि हमे पर्याप्त देशी या चयनित बीज उपलब्ध हो। यह रूपांतरण क्रिया माने रोज दस खून करने वाले डकैत वाल्य कोली का रूपांतरण महान ऋषि वाल्मीकि में करना है। ये संत और हैवान कहीं बाहर नहीं होते, बीजों के अंदर या हमारे मन के अंदर ही निवासी होते है। उन्नत बीजों का या संकर बीजों का या बी टी कपास बीजों का रूपांतरण देशी बीज में करना या चयनित बीज में करना माने बीजों के अंदर निवास करने वाले हैवान को सदा के लिए सुलाकर छिपे संत को जगाना और उसे निरंतर जागतेही रखना, उसके द्वारा लोगों को जगाते रखना है। यही काम हमारा सुभाष पालेकर कृषि जन आन्दोलन कर रहा है। यह हमारे लिए पर्याप्त है।
हमने सिद्ध किया है कि सुभाष पालेकर कृषि में अन्य अधिकतम लगत मूल्य होने वाले रासायनिक खेती के तुलना में और जैविक खेती दोनों के तुलना में और रासायनिक खेती में बोए या जैविक खेती में बोए बी टी कपास बीजों के तुलना में, न्यूनतम लागत मूल्य होने वाले सुभाष पालेकर कृषि में बोए देशी बीजों का,चयनित बीजों का, उन्नत बीजों का, संकर बीजों का और जानुक रूपांतरित बीजों का बिना खाद और बिना कोई कीटनाशी दवाओं का उपयोग किए उत्पादन अधिकतम मात्रा में मिलता है।
फिर बाजार से कोई भी बीज क्यों खरीदना है? जब बाजार से बीज ही खरीदना नहीं है माने खाद दवा भी खरीदना नहीं है। हमारे जन आन्दोलन का नारा है, गाँव का पैसा गाँव में रहेगा, वह गाँव के बाहर नहीं जाएगा, लेकिन बाहर जा पैसा गाँव में आयेगा। ग्राम स्वावलंबन, ग्रामीण अर्थ व्यवस्था की आत्मनिर्भरता माने हमारे भारत देश की आत्मनिर्भरता।
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