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क्‍यों है खास कुल्‍लू का दशहरा

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गीतिका दुबे

दशहरे का त्‍योहार दुनिया भर में रावण के दहन के तौर पर विख्यात है। लेकिन कुल्‍लू के दशहरे में न तो रावण जलाया जाता है और न ही उसक बुराइयों के बारे में बात की जाती है। यहां दशहरे पर अनोखे रंगारंग मेले का आयोजन किया जाता है। इस साल इसका आयोजन 24 अक्‍टूबर से लेकर अगले 7 दिन तक होगा। मान्‍यता है कि यहां के दशहरे के आयोजन को देखने खुद देवी देवता देवलोक से पृथ्‍वी पर आते हैं। आइए इस बारे में आपको विस्‍तृत जानकारी देते हैं।

देश भर में जब दशहरे का समापन हो जाता है तब कुल्‍लू में शुरू होता है एक अनोखा दशहरा। मजे की बात है इस दशहरे में न ही रावण का दहन होता है और न ही उससे जुड़ी कहानियां लोगों को बताई जाती है। यहां पर दशहरा एक प्रकार का रंगारंग आयोजन है जो दशमी तिथि से शुरू होकर अगले 7 दिन तक चलता है। इसे देखने स्‍वयं देवतागण धरती पर आते हैं। यहां के स्‍थानीय लोग ढोल नगाड़ों की धुन पर नाचते हुए उनके रथों को खींचते हैं और इस दिलचस्‍प नजारे को पूरी दुनिया देखती है। दशहरे के इस आयोजन को हिमाचल प्रदेश की संस्‍कृति और आस्‍था से जोड़कर देखा जाता है। आइए जानते हैं इस बारे में और रोचक जानकारियां।

कुल्‍लू के दशहरे का इतिहास

कुल्‍लू के दशहरे का भव्‍य आयोजन धौलपुर मैदान में होता है और यह उगते चंद्रमा के दसवें दिन से आरंभ होकर 7 दिनों तक चलता है। माना जाता है कि इस दशहरे की शुरुआज 16वीं शताब्‍दी से हुई थी और सबसे पहले 1662 में यह‍ दशहरा मनाया गया था। इस दशहरे के पहले दिन दशहरे के देवी और मनाली की हिडिंबा कुल्लू आती हैं। इस दौरान राजघराने के सभी सदस्य देवी-देवताओं के आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं।

यहां के सबसे बड़े देवता हैं रघुनाथजी

कहा जाता है कि 1650 के दौरान कुल्लू के राजा जगत सिंह को भयंकर बीमारी हो गई थी। ऐसे में एक बाबा पयहारी ने उन्हें बताया कि अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान रघुनाथ की मूर्ति लाकर उसके चरणामृत से ही इलाज होगा। कई संघर्षों के बाद रघुनाथ जी की मूर्ति को कुल्लू में स्थापित किया गया और राजा जगत सिंह ने यहां के सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, जिन्होंने भगवान रघुनाथजी को सबसे बड़ा देवता मान लिया। तभी से देव मिलन का प्रतीक दशहरा उत्सव आरंभ हुआ और यह आयोजन तब से हर साल यहां होता है

इस साल यह उत्‍सव होगा और भी खास

हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने इस आयोजन को अंतराराष्‍ट्रीय स्‍त पर पहचाने दिलाने के लिए पूरी जान लगा दी है। इस मेले में इस साल विभिन्न राज्यों के सांस्कृतिक दलों के साथ-साथ रूस, इस्राइल, रोमानिया, कजाकिस्तान, क्रोएशिया, वियतनाम, ताइवान, थाईलैंड, पनामा, ईरान, मालदीव, मलेशिया, कीनिया, दक्षिण सूडान, जाम्बिया, घाना और इथियोपिया सहित 19 देशों के कलाकर इस उत्‍सव में हिस्‍सा लेने के लिए शामिल होंगे। उत्सव में 25 अक्‍टूबर को सांस्कृतिक परेड और 30 अक्‍टूबर को कुल्लू कार्निवल होगा।

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