अग्नि आलोक
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*आखिर क्यों समाप्त होता जा रहा है दाम्पत्य से प्रेम और यौनसुख?*

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अदिति शर्मा (बोधगया)

विनष्ट होते परिवार-भाव, सामाजिक सरोकार और मनावीयता के आयाम का और बढ़ते तत्संबंधी अपराधों का मूल कारण है :

  • इंसान को यंत्र या भोग का सामान समझने की सोच का बढ़ना.
  • ‘कितने भी विपरीत लिंगी इंसान से यौनिक संबंध’ को प्रेम मानना.
  • वास्तविक आदर, सम्मान, सेवा, और कम्प्लीट सेक्ससुख से स्त्री का वँचित रहना.
    *पुरुष का अनवरत पौरुषहीन और दुराचारी होते जाना. प्रेम एक भावनात्मक और अद्वैत स्तरीय नैसर्गिक- अध्यात्मिक पहलू है और सम्भोग इसकी अनुभूति का सबसे सहज, सरल, सुलभ और स्थूल पहलू.
    तब सुपात्र से ऑंखें मिलती थी तो अंतरंग तरंगें एक- दूसरे को स्पर्श कर लेती थी. प्रेम में कोई शब्द बोलकर या चिट्ठी में लिखकर व्यक्त होता था तो अभिव्यक्ति करने वाले इंसान की दीर्घकालिक अनुपस्थित में भी उसकी मौज़ूदगी का अहसास कराता था. अगर हाथ या पैर की ऊँगली साथी के हाथ या पैर की ऊँगली से भी टच कर लेती थी तो एक सिहरन पैदा होती थी. वो स्पर्श लम्बे समय तक भूलता नहीं था. बॉडी से बॉडी के टचनेश की तो पूछो मत : किसी और लोक में पहुंचते थे दोनों.
    योनि-पेनिस के टचनेश तक आने पर वे दो रह ही नहीं जाते थे. एक जॉन-एक ज़िस्म बनते थे और मिलती थी अर्धनारीश्वर की अवस्था.
    अब कुछ फील नहीं होता. इंसान यंत्र बन गया है. इंसान पशु से भी बदतर बन गया है. तब लिंग साक्षात् शिवलिंग स्वीकार किया जाता था – आस्था, श्रदा, पूजा भाव से. योनि को मंदिर स्वीकार किया जाता था शक्ति-तृप्ति-मुक्ति की साधना के भाव से.
    अब योनि- लिंग सिर्फ वस्तु/सामान है. पुरुष कितनों की योनि में अपना यह सामान घुसेड़ता है. योनि ही नहीं, मुंह और गुदा में भी. हाथ के मूठ में, जानवर की योनि में, सेक्सडॉल में भी. इसी तरह स्त्री जाने कितनों का कचरा अपनी योनि में लेती है, मानो वह नाला हो. अन्य उपकरण भी उसमे घुसाती है. यह सूरतें सर्वनाशी हैं. यह सूरतें परिवारभक्षी सावित हो रही हैं. यह सूरतें समाजघाती सावित हो रही हैं. परिणामतः इंसान जंगली जानवर बनकर रह गया है और उसका समाज मनावीय जंगल.
    योनि और लिंग के वास्तविक स्वरूप को स्वीकारना होगा. घर वापसी करनी होगी. अगर जीवन को बचाना है तो इसके आलवा और कोई विकल्प नहीं है.
    योनि और लिंग क्या है : समझिए देववाणी में :
    🍃योनि~स्तोत्रम् :
    ॐभग-रूपा जगन्माता
    सृष्टि-स्थिति-लयान्विता।
    दशविद्या – स्वरूपात्मा
    योनिर्मां पातु सर्वदा।।

कोण-त्रय-युता देवि
स्तुति-निन्दा-विवर्जिता।
जगदानन्द-सम्भूता
योनिर्मां पातु सर्वदा ।।

कात्र्रिकी – कुन्तलं रूपं
योन्युपरि सुशोभितम्।
भुक्ति-मुक्ति-प्रदा योनि:
योनिर्मां पातु सर्वदा।।

वीर्यरूपा शैलपुत्री
मध्यस्थाने विराजिता।
ब्रह्म-विष्णु-शिव श्रेष्ठा
योनिर्मां पातु सर्वदा।।

योनिमध्ये महाकाली
छिद्ररूपा सुशोभना।
सुखदा मदनागारा
योनिर्मां पातु सर्वदा।।

काल्यादि-योगिनी-देवी
योनिकोणेषु संस्थिता।
मनोहरा दुःख लभ्या
योनिर्मां पातु सर्वदा।।

सदा शिवो मेरु-रूपो
योनिमध्ये वसेत् सदा।
केवल्यदा काममुक्ता
योनिर्मां पातु सर्वदा।।

सर्व-देव स्तुता योनि
सर्व-देव-प्रपूजिता।
सर्व-प्रसवकत्र्री त्वं
योनिर्मां पातु सर्वदा।।

सर्व-तीर्थ-मयी योनि:
सर्व-पाप प्रणाशिनी।
सर्वगेहे स्थिता योनि:
योनिर्मां पातु सर्वदा।।

मुक्तिदा धनदा देवी
सुखदा कीर्तिदा तथा।
आरोग्यदा वीर-रता
पञ्च-तत्व-युता सदा।।

योनिस्तोत्रमिदं प्रोत्त य:
पठेत् योनि-सन्निधौ।
शक्तिरूपा महादेवी तस्य
गेहे सदा स्थिता।।

*🍃लिंग~स्तोत्रम् :
ब्रह्म सुरारि अर्चित लिंगं
निर्मलभासित शोभित लिंगम्।
जन्मज दुःख विनाशक लिंगं
तत्-प्रणामामि सदाशिव लिंगम्॥

देवमुनि प्रवरार्चित लिंगं
कामदहन करुणाकर लिंगम्।
रावण दर्प विनाशन लिंगं
तत्-प्रणामामि सदाशिव लिंगम्॥

सर्व सुगंध सुलेपित
कारण लिंगं बुद्धि विवर्धन लिंगम्।
सिद्ध सुरासुर वंदित लिंगं
तत्-प्रणामामि सदाशिव लिंगम्॥

कनक महामणि भूषित लिंगं
फणिपति वेष्टित शोभित लिंगम्।
दक्ष सुयज्ञ विनाशन लिंगं
तत्-प्रणामामि सदाशिव लिंगम्॥

कुंकुम चंदन लेपित लिंगं
पंकज हार सुशोभित लिंगम्।
संचित पाप विनाशन लिंगं
तत्-प्रणामामि सदाशिव लिंगम्॥

देवगणार्चित सेवित लिंगं
भवै-भक्तिभिरेव च लिंगम्।
दिनकर कोटि महादेव लिंगं
तत्-प्रणामामि सदाशिव लिंगम्॥

अष्टदलोपरिवेष्टित लिंगं
सर्वसमुद्भव कारण लिंगम्।
अष्टाद्रिद्र विनाशन लिंगं
तत्-प्रणामामि सदाशिव लिंगम्॥
(चेतना विकास मिशन).

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