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एलन मस्क के भारतीय बाजार में एंट्री से टेलिकॉम बाज़ार किंग रिलायंस को डर क्यों? 

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मौजूदा भारतीय टेलिकॉम बाज़ार में जियो इन्फोकॉम, भारतीय मोबाइल और इंटरनेट बाजार का किंग है। लेकिन किंग को भारत सरकार के सेटेलाइट कम्युनिकेशन (सेटकॉम स्पेक्ट्रम) में विदेशी प्लेयर्स के लिए दरवाजे खोलने की खबर से भारत ही नहीं एशिया के दिग्गज, रिलायंस ग्रुप के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं।

सैटकॉम स्पेक्ट्रम के आवंटन को लेकर रिलायंस के सर्वेसर्वा, मुकेश अंबानी ने 10 अक्टूबर को टेलिकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (ट्राई) की ओर से आवंटित किये जाने का विरोध करते हुए नीलामी की प्रक्रिया के तहत आवंटन का सवाल उठाया था।

यह खींचतान अब प्राइवेट प्लेयर्स, एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक और भारत सरकार से होते-होते बाजार में सनसनी मचाने लगा है।

यह खबर भले ही आम भारतीय की निगाह में महत्वपूर्ण न दिखे, लेकिन इस एक केस स्टडी से भारतीय एकाधिकार और क्रोनी पूंजी के चरित्र और वैश्विक दिग्गज पूंजीपतियों की भारतीय बाज़ार में अपने लिए लूट का हिस्सेदारी के केंद्र में तो आप और हम 140 करोड़ भारतीय ही हैं, इसलिए इसे समझना हमारे लिए ही सबसे ज्यादा जरुरी है।

पिछले कुछ दिनों से ये गहमागहमी, दरअसल कल तब सार्वजनिक रूप से सामने आई, जब पीएम नरेंद्र मोदी दिल्ली में 8वें इंडिया मोबाइल कांग्रेस के उद्घाटन के लिए पधारे थे, और इस समारोह के दौरान उन्होंने ग्लोबल डिजिटल टेक फ्रेमवर्क निर्मित किये जाने का आह्वान किया।

लेकिन इसी मंच पर अन्य वक्ताओं में भारती एयरटेल के प्रमुख, सुनील मित्तल और जियो इन्फोकॉम के चेयरमैन, आकाश अंबानी भी मौजूद थे, जिन्होंने भारतीय टेलिकॉम सेक्टर में सेटकॉम स्पेक्ट्रम के आवंटन की सरकारी नीति के खिलाफ अपनी आवाज मुखरता से व्यक्त कर भारतीय उद्योग जगत की नींद उड़ा दी। 

अब सरकार और ट्राई के लिए सांप-छुछुंदर वाली स्थिति बन चुकी है। सेटकॉम स्पेक्ट्रम के बारे में ट्राई की नीति अभी तक यही रही है कि इसके लिए नीलामी की निविदा आमंत्रित करने के बजाय आवंटन किया जा सकता है, जिसे लेकर एलन मस्क लगता है आश्वस्त थे कि उनकी कंपनी स्टारलिंक को भारत में एंट्री मिलने वाली है, लेकिन भारतीय बाजार के दोनों दिग्गजों की आपत्ति के बाद यह मामला विवादास्पद बन गया है।

हालांकि, कल दूरसंचार मंत्री, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बड़ी बहादुरी के साथ अपनी नीति का बचाव करते हुए कहा है कि अधिनियम में स्पष्ट किया गया था कि सैटकॉम स्पेक्ट्रम का आवंटन प्रशासनिक रूप से किया जाएगा। उन्होंने आगे कहा, “लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि स्पेक्ट्रम बिना किसी लागत के आएगा।

वह लागत क्या होगी और उसका फॉर्मूला क्या होगा, यह केवल ट्राई द्वारा तय किया जाएगा। इसके अलावा, दुनिया भर में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का आवंटन प्रशासनिक रूप से किया जाता है। इसलिए, भारत कुछ अलग नहीं कर रहा है, जो हम नीलामी करके करेंगे।”

लेकिन 24 घंटे भी पूरे नहीं हुए और आज इस खींचतान के बीच ट्राई के चेयरमैन अनिल कुमार लाहोटी का बयान आ गया है कि परामर्श प्रक्रिया अभी चल रही है और दूरसंचार नियामक कोई भी विचार-विमर्श करने से पहले सभी इनपुट पर विचार करेगा।

बता दें कि नियामक की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब स्टारलिंक के सीईओ एलन मस्क और भारतीय दिग्गज सैटेलाइट स्पेक्ट्रम को लेकर बड़े गतिरोध में उलझे हुए हैं। 

मंगलवार सुबह इंडिया मोबाइल कांग्रेस में बोलते हुए भारती एयरटेल के चेयरमैन सुनील भारती मित्तल ने तर्क रखा कि शहरी ग्राहकों को सेवा देने की इच्छुक सैटेलाइट कंपनियों को टेलीकॉम ऑपरेटरों के समान नियामक ढांचे के तहत काम करना चाहिए, जबकि अन्य कंपनियां प्रशासनिक रूप से स्पेक्ट्रम ले सकती हैं।

उन्होंने आगे कहा है, “दुनिया भर की टेलिकॉम कंपनियां यूनिवर्सल सर्विसेज ऑब्लिगेशन फंड (यूएसओएफ) कार्यक्रम के जरिए सैटेलाइट सेवाओं को देश के सबसे दूरदराज के हिस्सों में ले जाएंगी और सीधे उन तक पहुंच बनाएंगी।

हमें खुद को और उन सैटेलाइट कंपनियों को शहरी क्षेत्रों में आकर इलीट खुदरा ग्राहकों को सेवा देने की महत्वाकांक्षा है, उन्हें बाकी सभी की तरह दूरसंचार लाइसेंस लेने की जरूरत है, उन्हें भी उन्हीं शर्तों से बंधे रहना होगा।” 

बता दें कि पिछले हफ्ते तक भारती एयरटेल की सेटेलाइट स्पेक्ट्रम को लेकर आधिकारिक नीति वही थी जो भारत सरकार की है। लेकिन, इस बीच जियो और भारती एयरटेल में कुछ तो खिचड़ी पकी है, जिसके बाद दोनों दिग्गज एक सुर में अपनी आवाज उठाकर मौजूदा मोदी सरकार के लिए दुविधा की स्थिति खड़ी कर दी है। 

दूसरी तरफ, स्टारलिंक, स्पेस एक्स और टेस्ला जैसी सबसे उन्नत कंपनियों के मालिक, और दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क भी लगता है भारतीय टेलिकॉम सेक्टर में अपनी घुसपैठ बनाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है।

ट्विटर पर अपने मालिकाने के बाद से एलन मस्क की भूमिका और कारगुजारियों को दुनिया देख रही है।

अमेरिकी चुनावों में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खुले समर्थन और डेमोक्रेटिक उम्मीदवार, कमला हैरिस के खिलाफ घटिया टिप्पणियां तो काफी तुच्छ बात है, मस्क ने यूरोप सहित उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में श्वेत वर्चस्ववादी मानसिकता के साथ जो प्रचार अभियान चला रखा है, वो हैरत में डालने वाला है।

सोशल मीडिया X का मालिक होने के साथ-साथ अपने व्यावसायिक हितों के लिए एलन मस्क ने जो सेवाएं हासिल की हुई हैं, उसके आधार पर वह भारत जैसे देशों की नीतियों में हो रही हर गतिविधियों को मानो चंद पलों में ही हासिल कर लेने की क्षमता रखता है।

जैसे, X पर अपने 21 करोड़ फॉलोवर्स के साथ, उसके लिए काम करने वाले कई ऐसे हैंडल भी हैं, जो उसके पक्ष में माहौल बनाते हैं। उन्हीं में से एक ने इंडिया पर उसके बिजनेस को फोकस करते हुए जब भारतीय उद्योगपति मुकेश अंबानी के मस्क की भारतीय टेलिकॉम बाजार में एंट्री से डर जाने की हवा बनाई तो एलन मस्क की टिप्पणी पर गौर करें,

“मैं फोन करके पूछूंगा कि क्या स्टारलिंक को भारत के लोगों को इंटरनेट सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति देना बहुत बड़ी समस्या नहीं होगी।”

सवाल उठता है कि एलन मस्क पूछेगा किससे? जाहिर है यह सवाल वह भारतीय नीति नियामकों से ही पूछने वाला है। दुनिया के राष्ट्राध्यक्ष उसके साथ मुलाक़ात कर अपनी फोटो खिंचवाते देखे जा सकते हैं।

भारत ने तो कई बार एलन मस्क को टेस्ला कार का उत्पादन भारत में करने की दावत तक दे रखी है, जिसे एलन मस्क ने यह कहते हुए टाल दिया था कि वह पहले भारत में टेस्ला के बाजार की संभावनाओं के बारे में आश्वस्त होना चाहता है।

जाहिर है, भारतीय प्रधानमंत्री को लगता होगा कि स्टारलिंक के भारतीय बाजार में आ जाने से एलन मस्क के लिए भारत का रास्ता खुल जाएगा। लेकिन उन्हें शायद घरेलू दिग्गजों की चिंताओं का ध्यान नहीं रहा। 

वैसे डेओलाइट ने भारतीय सेटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विस मार्केट के बाजार को 2030 तक मात्र 1.3 बिलियन डॉलर तक ही आंका है, लेकिन भारतीय उपभोक्ताओं का कोई भरोसा नहीं, वे ब्रांड (मस्क) के नामपर संभवतः जल्द ही भारी हाइप खड़ी कर दें, और महंगी सेवाओं के बावजूद गर्वित उपभोक्ता का टैग लगाकर एयरटेल और जियो के लुभावने बाजार की हिस्सेदारी को चौपट न कर दें? 

सोशल मीडिया पर एलन मस्क और अंबानी समर्थक, विरोधी लॉबी खड़ी होने लगी है। कईयों का मानना है कि भारतीय टेलिकॉम सेक्टर अभी भी पूरी दुनिया में सबसे किफायती दरों पर अपनी सेवाएं प्रदान करने के कारण, स्टार लिंक को प्रवेश देने की कोई वजह नहीं है।

कई राष्ट्रवादी मानते हैं कि स्टारलिंक अगर भारत आ गई तो उसका हाल भी पूर्व में अन्य अमेरिकी दिग्गजों की तरह होगा, उसे मुकेश अंबानी की असली शक्ति का अहसास हो जायेगा।

कुछ तो उल्टा सवाल कर रहे हैं कि स्टारलिंक को भारतीय बाजार में आने की इजाजत अगर दी जा रही है तो एयरटेल और जियो को अमेरिकी बाजार में एंट्री मिलनी चाहिए। हालांकि कुछ लोगों ने घरेलू बाजार में प्रतिस्पर्धा का स्वागत किया है।

पीएम मोदी, अभी तक आई-फोन, फॉक्सकाम और सैमसंग जैसे वैश्विक ब्रांड्स के प्लांट्स की भारत में उत्पदान, असेंबली को मेक इन इंडिया के नारे तले ‘विकसित भारत’ का झंडा बुलंद कर रहे थे, आज उसी नारे को एक और पायदान ऊपर ले जाकर स्टारलिंक के साथ अपने नाता जोड़ने का जो सौभाग्य ढूंढ रहे थे, उस पर उन्हीं के सबसे प्रिय कॉर्पोरेट समूह की ओर से सख्त एतराज ने बैलेंस और भारतीय राष्ट्रवादी उपभोक्ताओं की पोजीशन को गड़बड़ा कर रख दिया है।

लेकिन भारत और आम भारतीय का हित तो इन दोनों विकल्पों में नहीं है? यह सही है कि जियो के भारतीय बाजार में प्रवेश के साथ 4जी और जल्द ही 5जी स्पेक्ट्रम, फाइबर ऑप्टिक्स लाइन से बड़े पैमाने पर भारत को दूरसंचार में विकसित देशों की तरह विभिन्न सेवाओं में पहुंच बनाने में आसानी हुई है।

लेकिन ये भी सच है कि आज से 5 वर्ष पहले दर्जनों मोबाइल ऑपरेटर्स की मौजूदगी में कस्टमर इज किंग वाली स्थिति बनी हुई थी। लेकिन आज स्थिति पूरी तरह से उलट है।

जियो और भारती एयरटेल का भारतीय टेलिकॉम सेक्टर पर लगभग पूर्ण कब्जा हो चुका है, और वे जब मन आता है अनाप-शनाप टैरिफ बढ़ाकर 100 करोड़ उपभोक्ताओं को हर माह बेदर्दी से लूट रहे हैं। 

इस लूट को संभव बनाने में भारत सरकार की सबसे बड़ी भूमिका है। सार्वजनिक क्षेत्र की स्वंय की वीएसएनएल को पिछले 10 वर्षों में 4जी के लिए तरसाकर तिल-तिल कर मार डालने के पीछे का उद्येश्य आज किसी से छिपा नहीं है।

वीएसएनएल ही वह एकमात्र ऑपरेटर था जो डिफेन्स क्षेत्र से लेकर भारत के दूरदराज के क्षेत्रों में उपभोक्ताओं को दूरसंचार और इंटरनेट की सुविधा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध था।

वीएसएससी सहित दर्जनों छोटे बड़े ऑपरेटर्स को खरीदकर आज एयरटेल और जियो ही आपस में एकजुट होकर अपने मुनाफे को लगातार बढ़ाते जाने के लिए खुल्ला छोड़ दिए गये हैं, और सरकार अब चाहे भी उनका कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं है।

लेकिन आज जब दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति, सेटेलाइट सर्विस के माध्यम से (जो जाहिर है, इनके मुकाबले में महंगी सेवाएं होंगी) इस कदर भयभीत हैं, मानो मोदी सरकार कोई अक्षम्य अपराध करने जा रही है? अरे यह पाप तो आपके फायदे के लिए भारत सरकार पहले ही देश की जनता के साथ कर चुकी है, जिसके चलते आप दोनों दिनरात फल-फूल रहे हो।

फिर आज जब अपनी बारी आई तो नकली देशप्रेम नजर आने लगा? ये देशप्रेम नहीं, मुनाफे में हिस्सेदारी छिनने का दुःख है। असली देशप्रेम तो वो होता यदि आज वीएसएनएल भी 5जी सेवाएं बेहद किफायती दर पर उपलब्ध कराते हुए, एयरटेल और जियो की तुलना में कई गुना भारतीयों को सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरी मुहैया कराता।

इन दसियों लाख सरकारी कर्मचारियों की खपत से सैकड़ों नए उद्योग धंधों की उत्पत्ति होती और उसमें भी लाखों लोगों को रोजगार हासिल होता। 

बहरहाल, ऊंट पहाड़ के नीचे है। अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव और मित्र इजराइल की चिंता में घुला जा रहा है। लेकिन, यदि डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति बनते हैं तो अपने सबसे बड़े दानदाता दोस्त, एलन मस्क जिसे वे अपने मंत्रिमंडल में स्थान देने का वादा तक कर चुके हैं, के एक इशारे पर भारत जैसे राष्ट्राध्यक्षों को तो वे एक इशारे पर नाचने के लिए मजबूर कर सकते हैं।

नरेंद्र मोदी से तो वैसे भी उनका पुराना याराना लगता है। मुसीबत मोदी जी के लिए ही है कि ट्रम्प की दोस्ती निभानी ठीक रहेगी या अंबानी/मित्तल जैसे मित्रों की, जिनके चलते ही गुरु लालकृष्ण अडवाणी की जगह उनके लिए राष्ट्रीय नेतृत्व की राह आसान हो पाई थी।

ऐसी कठिन चॉइस बेहद दुर्लभ महापुरुषों को ही नसीब होती है, जिन्हें जिधर मौका दिखा, चौका मारने से बाज नहीं आते, लेकिन बाद में वापसी का विकल्प नहीं होता।  

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