भारत में आज विश्व का सबसे बड़ा ‘कोरोना टीकाकरण’ का अभियान शुरू हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अभियान को हरी झंडी दिखाई। देश में अब तक कोरोना से एक लाख 52 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। ऐसे में कोरोना की दवाओं को लेकर जारी अटकलों और सवालों के बीच इस वैक्सीनेशन अभियान को शुरू किया गया है।
प्रधानमंत्री द्वारा इस वैक्सीनेशन अभियान के आरंभ करने के तुरंत बाद सबसे पहले कांग्रेस ने इस पर सवाल उठाया। कांग्रेस ने कहा कि तीसरे चरण के उचित ट्रायल के बिना सरकार ने इस राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान कार्यक्रम को शुरू किया है।टीका लगने के बाद दुष्प्रभाव की स्थिति में एम्स, सफदरजंग, आरएमएल, लोकनायक, गंगाराम सहित सभी अस्पतालों में टीकाकरण केंद्र के पास तीन से पांच बेड, वेंटिलेटर व हार्ट की जांच के लिए जरूरी उपकरण की व्यवस्था की गई है। निजी अस्पतालों ने दुष्प्रभाव होने की स्थिति में तुरंत इलाज उपलब्ध कराने के लिए डाक्टरों की टीम गठित की है।राजधानी दिल्ली में 81 केंद्रों पर शनिवार से कोरोना के खिलाफ टीकाकरण का महाअभियान शुरू हो गया है। इस कड़ी में दिल्ली स्थित एम्स में कोरोना के टीकाकरण का कार्यक्रम शुरू किया गया। यहां पर सबसे पहले एक स्वास्थ्यकर्मी को पहला टीका लगाया गया। इस मौके पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया भी मौजूद रहे। यहां पर रणदीप गुलेरिया और नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने भी टीका लगवाया।
भारत में इस वक्त कोविड टीकाकरण के दो कंपनियों की दो दवाएं उपलब्ध हैं। ‘कोविशील्ड’ जिसे सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने तैयार किया है और दूसरा है ‘कोवैक्सीन’ जिसे भारत बायोटेक ने बनाया है। इन दोनों में से कोविशील्ड को ज्यादा असरदायक माना जा रहा है जबकि कोवैक्सीन को उसके मुकाबले कम असरदायक माना जा रहा है। किंतु केंद्र सरकार के अधीन आने वाले अस्पतालों में सरकार कोविशील्ड नहीं बल्कि कोवैक्सीन भेज रही है। और टीकाकरण के समय किसी को यह छूट भी नहीं कि वह अपने पसंद से कहे कि उसे कौन सा इंजेक्शन लगवाना है।
इस संदर्भ में हमने दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डॉक्टर निर्माल्य महापात्रा से फोन पर बात की तो उन्होंने बताया कि, “कोविशील्ड ज्यादा भरोसेमंद और असरकारक है, क्योंकि उसके ट्रायल ज्यादा हुए हैं जबकि कोवैक्सीन का केवल पहले और दूसरे चरण के ट्रायल हुए हैं। इसलिए आरएमएल के डॉक्टरों ने कोविशील्ड वैक्सीन की मांग की है। हम तभी इंजेक्शन लगवाएंगे जब कोविशील्ड दिया जायेगा।”
जब हमने उनसे कहा कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में कौन सा इंजेक्शन दिया जा रहा है तो इसके जवाब में डॉक्टर महापात्रा ने बताया कि वहां कोविशील्ड के इंजेक्शन दिए जा रहे हैं।
आरएमएल के डॉक्टरों ने कहा कि, उन्हें वैक्सीन’ पर भरोसा नहीं है क्योंकि उसका पूरा ट्रायल नहीं हुआ है। डॉक्टरों ने इसके बजाय सीरम इंस्टीट्यूट की कॉविशील्ड की मांग की है। डॉक्टरों ने कोवैक्सीन (COVAXIN) की जगह कोविशील्ड (Covishield) लगवाने की मांग की है।
आरएमएल के रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन (RDA) ने अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक को पत्र लिखकर कहा, “हमारे अस्पताल में भारत बायोटेक द्वारा निर्मित कोवैक्सीन को सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड से ज्यादा तरजीह दी जा रही है। हम आपके ध्यान में लाना चाहते हैं कि रेजिडेंट डॉक्टर कोवैक्सीन के मामले में संशय में हैं क्योंकि इसका पूरा ट्रायल नहीं हुआ है और हो सकता है कि बड़ी संख्या में टीकाकरण के लिए नहीं पहुंचे, जिससे वैक्सीनेशन अभियान विफल होगा।”बता दें कि कोविशील्ड वैक्सीन ट्रायल के सभी चरणों को पूरा कर चुकी है वहीं भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल से गुजर रही है।भारत बायोटेक की कोवैक्सीन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), सफदरजंग और राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) सहित छह केंद्र संचालित अस्पतालों में आवंटित किया गया है।
इस बीच खबर है कि, भारत बायोटेक द्वारा निर्मित कोवैक्सीन को देने से पहले लाभार्थी से उसकी रजामंदी हासिल की जा रही है। जिसके तहत उसको एक फार्म पर हस्ताक्षर करने पड़ रहे हैं जिसमें लिखा हुआ है कि वैक्सीन को “सरकार द्वारा क्लीनिकल ट्रायल मोड की इजाजत दी गयी है।”फार्म में लिखा गया है कि “कोवैक्सीन की क्लीनिकल क्षमता अभी स्थापित होना बाकी है। और इसकी अभी भी तीसरे फेज के क्लीनिकल ट्रायल के लिए अध्ययन चल रहा है। इसलिए यहां यह बताना बहुत जरूरी हो जाता है कि वैक्सीन लेने का मतलब यह नहीं होगा कि कोविड-19 से संबंधित दूसरी एहतियातों का पालन छोड़ दिया जाए। सेंट्रल लाइसेंसिंग अथारिटी ने कोवैक्सीन की बिक्री या फिर वितरण को सार्वजनिक हित में आपात स्थितियों में बहुत ज्यादा एहतियात के साथ क्लीनिकल ट्रायल मोड में सीमित इस्तेमाल की इजाजत दी है।”दिल्ली सरकार ने आज 81 सौ लोगों को कोरोना का इंजेक्शन लगाने का दावा किया। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने लोक नारायण जयप्रकाश हॉस्पिटल का दौरा किया और कहा कि, किसी तरह की अफवाह और डर में आने की जरूरत नहीं है। एक्सपर्ट्स का कहना है वैक्सीन बिलकुल सुरक्षित है।
भारत बायोटेक की दवा कोवैक्सीन के ट्रायल में मध्य प्रदेश में 42 वर्षीय एक मजदूर की मौत हो चुकी है। भोपाल के पीपुल्स मेडिकल कॉलेज में 12 दिसंबर को कोवैक्सीन का ट्रायल वैक्सीन लगवाने वाले 42 वर्षीय वॉलंटियर दीपक मरावी की 21 दिसंबर को मौत हो गई थी। दीपक ने कोरोना वैक्सीन ट्रायल में हिस्सा लिया था। पहले डोज के बाद ही तबियत खराब हो गई और अस्पताल पहुंचने से पहले दीपक की मौत हो गई। दीपक अपने घर में मृत मिले थे। दिसंबर 22 को उनके शव का पोस्टमार्टम कराया गया, जिसकी प्रारंभिक रिपोर्ट में शव में जहर मिलने की पुष्टि हुई थी।
किंतु दीपक की मौत के बाद भारत बायोटेक ने अपनी सफाई में कहा था कि ट्रायल के दौरान सभी नियमों का पालन किया गया था और टीकाकरण के बाद 8 दिन तक उनका ध्यान रखा गया था और निरीक्षण किया गया था। वहीं मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने भी कंपनी की बातों को एक दिन की जांच में सही साबित कर दिया था। सरकार ने 9 तारीख को जांच कमेटी गठित की, और उसी दिन जांच में कंपनी और दवा को क्लीन चिट दे दी गयी।
(पत्रकार नित्यानंद गायेन की रिपोर्ट।)