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खालिस्तान समर्थक सिमरनजीत की जीत पंजाब के लिए क्यों खतरनाक?

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पंजाब की संगरूर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में सिमरनजीत सिंह मान ने जीत दर्ज की है। वैसे तो किसी उपचुनाव में जीत-हार के सियासी मायने निकाले जाते हैं लेकिन पंजाब के इस उपचुनाव के नतीजे को एक अलग चश्मे से देखने की जरूरत है। ऐसा इसलिए क्योंकि पंजाब में हाल के दिनों में खालिस्तान समर्थक आवाजें सुनाई देने लगी हैं। ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर इस साल भी खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे। वहीं पंजाब से सटे हिमाचल प्रदेश में विधानसभा की दीवार पर खालिस्तान के झंडे लगा दिए गए। सिमरनजीत सिंह मान की जीत पर क्यों सावधान होने की जरूरत है और क्यों उनकी शख्सियत विवादों में रही है, आइए जानते हैं।

कट्टर खालिस्तान समर्थक की छवि फिर बेनकाब
80 के दशक में पंजाब में उग्रवाद की शुरुआत हुई। 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान स्वर्ण मंदिर में अकाल तख्त पर कब्जा किए बैठे जरनैल सिंह भिंडरावाले को ढेर कर दिया गया। खालिस्तानी आतंकियों ने हरमंदिर साहिब में ठिकाना बनाया हुआ था। उस वक्त कहा जा रहा था कि अगर हालात काबू में नहीं किए गए तो पंजाब देश के हाथ से निकल सकता है। लेकिन इंदिरा गांधी के निर्देश पर हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार की वजह से देश एक बड़ी मुश्किल से बाहर निकल आया। जिस भिंडरावाले को पंजाब में उग्रवाद का जनक माना जाता है, उसी भिंडरावाले के सिमरनजीत सिंह मान कट्टर समर्थक हैं। इसे संगरूर लोकसभा सीट पर हुई उनकी जीत के बाद दिए गए बयान से समझा जा सकता है। सिमरनजीत सिंह मान ने अपनी चुनावी जीत को भिंडरावाले से जोड़ा और एक उग्रवादी का ढिंढोरा पीटते हुए कहा, ‘शहीद संत जरनैल सिंह भिंडरावाले ने शांतिपूर्ण संघर्ष के जरिए जीने का जो रास्ता बताया था, यह उसी की जीत है। यह हमारे पार्टी कार्यकर्ताओं और संत भिंडरावाले के तालीम की जीत है।’

भिंडरावाले को हथियारों की सप्लाई की बात मानी थी
सिमरनजीत सिंह मान सियासत में आने से पहले भारतीय पुलिस सेवा में थे। पंजाब कैडर के 1967 बैच के आईपीएस रहते हुए मान ने लुधियाना, फिरोजपुर और फरीदकोट जैसे जिलों में कमान संभाली। विजिलेंस ब्यूरो के डेप्युटी डायरेक्टर और पंजाब आर्म्ड पुलिस के कमांडेंट की भी जिम्मेदारी निभाई। लेकिन जरनैल सिंह भिंडरावाले के प्रभाव में आने के साथ ही मान का पुलिस फोर्स से मोहभंग हुआ। इसी दौरान जून 1984 में जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके आतंकी साथियों का ऑपरेशन ब्लू स्टार में सफाया हो गया। स्वर्ण मंदिर के अंदर सेना भेजने के विरोध में मान ने आईपीएस की नौकरी छोड़ी और सियासत में कूद पड़े। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सिमरनजीत सिंह मान ने खुद यह बात मानी थी कि 80 के दशक में उन्होंने जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके समर्थक उग्रवादियों को हथियारों की सप्लाई की थी। उस वक्त सिमरनजीत सिंह मान फरीदकोट के एसएसपी थे। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि उग्रवादी विचारधारा का समर्थक अगर मुख्यधारा की राजनीति में सक्रिय होते हुए सांसद बन जाता है तो उसके क्या खतरे हैं।

तीन फीट की तलवार संसद में ले जाने पर अड़े थे
सिमरनजीत सिंह मान तीसरी बार सांसद बने हैं। 1989 में जब वीपी सिंह की सरकार थी, उस वक्त सिमरनजीत सिंह मान ने तरनतारन सीट से लोकसभा का चुनाव जीता था। जेल में रहते हुए ही मान ने विजय हासिल की थी। इसी दौरान मान को जब संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए जाना पड़ा तो उन्होंने कहा कि तीन फुट लंबी कृपाण (तलवार) लेकर ही वह संसद में घुसेंगे। इसको लेकर काफी लंबा विवाद चला लेकिन उन्हें तलवार लेकर लोकसभा में घुसने की इजाजत नहीं मिली। यही नहीं जब इच्छा पूरी नहीं हुई तो संसद की किसी भी बैठक में शामिल हुए बगैर मान ने अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। अब एक बार फिर वह सांसद बने हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वह एक बार फिर उसी जिद पर अड़ सकते हैं, जो उन्होंने चार दशक पहले की थी।

किन लोगों के साहस की बात कर रहे हैं सिमरनजीत?
दीप सिद्धू और सिद्धू मूसेवाला का जिक्र करते हुए सिमरनजीत सिंह ने कहा, ‘इस चुनाव में हमने कांग्रेस, अकाली दल और आम आदमी पार्टी जैसे दलों की कमर तोड़ दी है। इस जीत का असर दुनिया की राजनीति पर पड़ेगा। लंबे अरसे के बाद हमारी पार्टी जीती है। लोगों का साहस ऊंचा है और वे चुप नहीं बैठेंगे।’ अब सवाल इस बात का है कि सिमरनजीत सिंह जिन लोगों की बात कर रहे हैं, वे लोग कौन हैं? क्या सिमरनजीत खालिस्तान समर्थकों की बात कर रहे हैं। जैसा उनका अतीत रहा है, उसको देखते हुए साफ है कि वह कहीं न कहीं पंजाब को उन बातों की याद दिलाना चाहते हैं, जिसको पीछे छोड़कर यह राज्य बहुत आगे बढ़ चुका है। क्या वह अलगाववादी आवाजों की वकालत करने के लिए संसद पहुंच रहे हैं। सवाल यह भी है कि अगर मान संसद में ऐसी आवाजों को लेकर मुखर हुए तो मुश्किल आ सकती है।

पंजाब और हिमाचल के ये मामले चिंता का सबब
कश्मीर में आतंकवाद के जरिए भारत को निशाना बनाने वाले पाकिस्तान की मंशा पंजाब के अमन-चैन में खलल डालने की है। 370 हटने के बाद पाकिस्तान लगातार भारत के खिलाफ साजिशों में जुटा है। खासकर अंतरराष्ट्रीय फ्रंट पर वह खालिस्तान जैसे मुद्दे उठाकर फायदा उठाने की फिराक में है। खालिस्तान की मांग करने वाले उग्रवादियों को फंडिंग, हथियार और अन्य गोला-बारूद मुहैया कराने में पाकिस्तान की साजिशें लगातार सामने आ रही हैं। करनाल में बब्बर खालसा के पकड़े गए चार आतंकियों का पाक में बैठे हरविंदर रिंदा से कनेक्शन सामने आया। वहीं तरनतारन में पकड़ी गई चार किलो आरडीएक्स में भी रिंदा की साजिश सामने आई। पटियाला में इसी साल 30 अप्रैल को दो समुदायों के बीच झड़प हुई। खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने खालिस्तान स्थापना दिवस मनाने का ऐलान किया था और शिवसेना बाल ठाकरे नामक स्थानीय हिंदू संगठन ने इसका विरोध किया था। इस रैली के दौरान कुछ लोगों ने खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए और फिर बवाल बढ़ गया। वहीं इसी साल मई के शुरुआती दिनों में हिमाचल विधानसभा की दीवार पर खालिस्तान के झंडे लगा दिए गए। जाहिर है सरहदी राज्य पंजाब में सिमरनजीत सिंह मान की जीत सामान्य घटना नहीं है और सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क और चौकन्ना रहने की जरूरत है।

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