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माहवारी छुट्टी देने को हमारी सरकार क्यों तैयार नही है ?

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एड. आराधना भार्गव
महिलाओ को पुरूष के बराबर वेतन मिले तथा काम के घण्टे निर्धारित करने हेतु महिलाओं ने संघर्ष किया, अनेक कुर्बानी के बाद महिलाओं ने सफलता हासिल किया और विश्व को महिला दिवस मनाने पर मजबूर किया। महिला दिवस महिलाओं के संघर्ष को सलाम करने, सम्मान देने एवं उनके संघर्ष को याद करने का दिन है। आज महिलाओं के सामने नई चुनौतियाँ है जिसके लिये संघर्ष भी हमें करना पड़ेगा। गांव, शहर या मेट्रोपोलिटिन शहर सभी जगह महिलाऐं काम करते दिखाई देंगी। लड़ाकू विमान चलना, कलेक्टर, पुलिस अधिक्षक, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, खिलाड़ी हर जगह पर महिलाओं ने अपना परचम लहराया है।
देश और दुनिया में इस समय पीरियड्स लीव की मांग जोरों पर उठ रही है। 1992 में बिहार में लालू प्रसाद जी की सरकार थी कामकाजी महिलाओं ने 32 दिन की हड़ताल किया, उसके पश्चात् सरकारी क्षेत्रों में मेंस्टुअल छुट्टी की व्यवस्था की गई। निजी क्षेत्र में मुम्बई की डिजिटल मीडिया कम्पनी कल्चर मंशीन ने 2017 में एक दिन की पीरियड्स लीव शुरू की। देश में माहवारी छुट्टी लागू करने को लेकर बड़ी बहस छिड़ी हुई है। माँ, बहन, बेटी सभी के घरों में है और सभी लोग माहवारी के दिनों में होने वाले शरीरिक कष्ट और पीड़ा से अवगत है, कुछ महिलाओं को तो यह पीड़ा असहनीय होती है, उसके पश्चात् भी माहवारी छुट्टी जैसे विषयों पर महिला सशक्तीकरण की बातें करने वालों का एक बड़ा तबका भी भारत में ऐसी छुट्टी का विरोध कर रहा है। भारत में पहली बार अरूणाचल प्रदेश के कांग्रेसी सांसद निनाॅन्ग एरिंग ने पीरियड्स लीव के लिए मेन्स्टुएशन बेनिफिट बिल, 2017 का प्रस्ताव रखा है। इस बिल में कहा गया है कि सरकारी और प्राईवेट सेक्टर में नौकरी करने वाली महिलाओं को दो दिन ‘पेड पीरियड लीव’ दी जाए। बिल अभी समिति के पास क्यों पड़ा है ? जब विधायकों और सांसदों को अपने वेतन और भत्ते बढ़ाने होते है तो आम सहमति से ऐसे बिल कब पास हो जाते हैं देश को पता भी नही चलता, किन्तु महिलाओं से संबंधित कोई भी बिल पारित करने को लोकसभा और विधान सभा क्यों तैयार नही होती ?
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार 32,748 में से 14 फीसदी महिलाओं ने पीरियड्स में अवकाश लिया। 80 फीसदी ने छुट्टी का सही कारण छिपाया। 68 फीसदी ने कहा कि वे इस दौरान कार्य में लचीला विकल्प चाहती हैं। 21 फीसदी महिलाओं ने इच्छा ना होते हुए भी इस पीरियड्स में बिना इच्छा के काम करने की बात कही। पूरी दुनियाँ में 2014 से हर साल 28 मई को मेन्स्टुअल हाइजीन-डे मनाया जाता है। चीन, रूस, ब्रिटेन, ताईवान, जाम्बिया और ईटली सहित कुछ देशों में महिलाओं को पेड मेन्स्टुअल लीव दी जाती है। इंडोनेशिया में कम्पनीयाँ इस दौरान महिलाओं से कम काम लेती है। जापान में 1947 से महिलाओं के लिए यह व्यवस्था लागू है ‘फिर भारत में क्यों नही’ ?
उत्तर प्रदेश, दिल्ली, केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा आदि राज्यों के संगठन पीरियड्स लीव की मांग कर रहे है। हमारे देश में महिलाओं के अधिकार को लेकर अदालत की शरण लेनी पड़ती है न्यायालय के आदेश होने के पश्चात् भी सरकारें न्यायालय के आदेश की भी कोई परवाह नही करती। नवम्बर 2020 में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिका पर केन्द्र और दिल्ली सरकार को निर्णय का आदेश दिया था लेकिन मुझे दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि दिल्ली सरकार ने भी इस आदेश की अवहेलना की। महिला पत्रकार बरखा दत्त और दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल इस बिल की आवश्यकता नही समझती, माकपा नेता वृंदा करात इसे महिलाओं के अधिकार का अंग मानती हैं और वे चाहती है कि वे मेन्स्टुएशन बेनिफिट बिल 2017, पूर्ण बहुमत के साथ पारित किया जाए। किसान संघर्ष समिति देश के सभी प्रगतिशील लोगों से यह आग्रह करती है कि इस बिल को परित कराने में अपनी अहम भूमिका निभाऐं ताकि देश भर में माहवारी छुट्टी नियम लागू कराया जा सकें। 60 प्रतिशत से अधिक एशियाई देश महिलाओं को माहवारी छुट्टी दे सकते है तो ’भारत में क्यों नहीं’ ? क्या इस नियम को लागू करवाने के लिए फिर से महिलाओं को 32 दिन की हड्ताल के बाद 1992 में महिलाओं को पीरियड्स लीव अधिकार मिला था, उसी तरह फिर से सड़क पर उतरकार हड़ताल कर कानून प्राप्त करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा ?

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