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फडणवीस और एकनाथ शिंदे के बीच इतनी टेंशन क्यों?

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 महाराष्ट्र की राजनीति में महायुति सरकार में दरार के संकेत लगातार मिल रहे हैं। सीटों, विभागों और योजनाओं पर लगातार मतभेद और टकराव सामने आ रहे हैं। एकाथ शिंदे की नाराजगी खुलकर सामने आई है और सरकार में एक के बाद एक कई मुद्दों पर असहमति बनी हुई है।

गंगाधर ढोबले
महाराष्ट्र की राजनीति में फिर उथलपुथल है। BJP, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार वाली एनसीपी की सत्तारूढ़ महायुति में दरार के स्पष्ट संकेत हैं। पिछले साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव हुए थे। उसके बाद से मतभेद और टकराव के कई घटनाक्रम हुए।

महायुति में अब तक जो कुछ हुआ, उस पर एक नजर डालते हैं :

  • चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे को लेकर पेच फंसा।
  • चुनाव बाद मुख्यमंत्री के चयन को लेकर BJP-शिंदे में अनबन। शिंदे मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ना चाहते थे और BJP देवेंद्र फडणवीस के नाम पर अड़ी थी। आखिर में BJP हाईकमान के हस्तक्षेप के बाद शिंदे डिप्टी सीएम बनने को राजी हुए।
  • शिंदे अगर राजी न होते तो भी BJP के पास प्लान B था। शिंदे के साथी उदय सामंत सीएम फडणवीस के करीबी माने जाते हैं। उनके साथ 20 विधायक BJP के पाले में आने को तैयार थे। शिंदे सेना के 57 विधायक हैं। उनमें से 20 अलग होते, तो दलबदल कानून लागू नहीं होता। उदय सामंत डिप्टी सीएम बनते। शायद इसकी भनक शिंदे को लग गई और वह उपमुख्यमंत्री बनने को राजी हो गए।
  • मंत्रिमंडल में विभागों के बंटवारे पर खींचतान चलती रही। शिंदे गृह मंत्रालय चाहते थे, लेकिन कोई सीएम गृह विभाग दूसरे को नहीं देता। फिर राजस्व और शहर विकास विभाग की मांग की गई। BJP राजस्व विभाग देने को तैयार न थी। अंत में शिंदे ने मन मसोस कर शहर विकास विभाग स्वीकार कर लिया।
  • फिर जिलों के गार्जियन मंत्रियों की नियुक्ति को लेकर विवाद शुरू हुआ। फडणवीस ने नासिक में अपनी पार्टी के गिरीश महाजन और रायगढ़ में अजित की पार्टी की अदिति तटकरे को नियुक्त किया। शिंदे गुट के विरोध पर 24 घंटे में यह निर्णय स्थगित करना पड़ा। दोनों जिले पूर्व में शिंदे गुट के पास ही थे। यह मामला अब तक नहीं सुलझा है।
  • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) के पुनर्गठन में एकनाथ शिंदे का नाम नहीं था। बाद में नियमों में बदलाव कर शिंदे को शामिल किया गया।
  • महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम के अध्यक्ष अमूमन परिवहन मंत्री होते हैं। परिवहन मंत्रालय शिंदे सेना के प्रताप सरनाईक के पास है। उनके बजाय अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय सेठी को अध्यक्ष बना दिया गया। विवाद अभी सुलझा नहीं है।
  • अपने कार्यकाल के दौरान की कुछ लोकप्रिय योजनाओं पर पुनर्विचार की पेशकश से भी शिंदे नाराज हैं। इनमें लाड़ली बहना और त्योहारों के समय गरीबों को मुफ्त दी जाने वाली राशन किट योजना ‘आनंदाचा शिघा’ भी शामिल है। इन योजनाओं ने महायुति को जिताने में अहम भूमिका निभाई। फिलहाल इन योजनाओं को बंद नहीं किया जाएगा, लेकिन नियमों में कड़ाई बरते जाने से कई समूह इनसे बाहर हो जाएंगे।
  • शिंदे अपनी पार्टी का विस्तार राज्य के बाहर करना चाहते हैं। इससे भी BJP और अजित दादा के कान खड़े हो गए। शायद इसी वजह से अजित पवार को दिल्ली विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाने को कहा गया होगा। हालांकि उनके सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।
  • शिंदे के 20 विधायकों की सुरक्षा फडणवीस ने घटा दी। कहने के लिए BJP और अजित पवार के कुछ विधायकों की सुरक्षा भी घटाई गई है, लेकिन उनकी संख्या शिंदे के विधायकों की तुलना में बहुत कम है।
  • शिंदे की नाराजगी

इस घटनाक्रम पर गौर करें तो शिंदे-BJP टकराव की परतें खुलती नजर आएंगी। शिंदे को यह महसूस होना स्वाभाविक है कि उन्हें घेरा जा रहा है और उनकी उपेक्षा व अनदेखी की जा रही है। शिंदे ने अपनी नाराजगी छिपा भी नहीं रखी है। एक-दो बार वह मंत्रिमंडल की बैठक में नहीं गए। BJP या अजित पवार की बैठकों का उन्होंने बहिष्कार किया। उसी विषय पर अपनी स्वतंत्र बैठक बुलाई। मुख्यमंत्री सहायता निधि की तरह ही अपना स्वतंत्र सहायता फंड भी बना लिया है। ऐसा लगता है कि शिंदे को हाशिए पर लाने के लिए BJP और अजित पवार एक हो गए हैं।

2029 का चुनाव अकेले अपने दम पर जीतने की रणनीति का पहला टारगेट शिंदे ही लगते हैं। शिंदे को उनके गृह जिले ठाणे में घेरा जा रहा है। यह मोर्चा BJP के मंत्री गणेश नाईक संभाल रहे हैं। उन्होंने जिले में शत-प्रतिशत BJP का नारा दिया है। विदर्भ में भी शिंदे की BJP नाकाबंदी कर रही है। रामटेक से शिंदे सेना के मंत्री आशीष जायसवाल जीते हैं। उनके कट्टर विरोधी मल्लिकार्जुन रेड्डी को BJP ने अपना लिया है।

BJP से चुनौती

कोंकण इलाके में भी शिंदे का टकराव BJP से होगा। वहां उद्धव ठाकरे की शिवसेना के पैर उखड़ गए हैं। उद्धव की पार्टी के पास विनायक राउत, वैभव नाईक और भास्कर जाधव जैसे गिने-चुने नेता बचे हैं। इनका भी कोई भरोसा नहीं। वैसे भी ज्यादातर शिवसैनिक शिंदे के साथ दिखाई देते हैं। इसलिए शिंदे को कोंकण में उद्धव से नहीं, BJP से चुनौती मिलेगी। अन्य अंचलों में भी कमोबेश यही स्थिति है।

विकल्प नहीं

ये सारी बातें साफ कह रही हैं महायुति में सब ठीक नहीं है। यह दरार अवसर आते ही और चौड़ी होगी, लेकिन अभी वह समय नहीं आया है। सरकार को कोई खतरा नहीं है। शिंदे के पास भी अपनी नाराजगी जताने के अलावा अभी दूसरा कोई विकल्प नहीं है।

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