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मणिपुर के धधकते सवालों और जार जार बहते आंसुओं पर ख़ामोशी क्यों?

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सुसंस्कृति परिहार

मणिपुर में जिस तरह आगजनी और गोलीबारी धड़ल्ले से चल रही है इसके पीछे है वो चिंगारी जिसे यहां सितम्बर में एक कानून बनाकर प्रज्ज्वलित किया गया ।इसके लिए डबल इंजन की सरकार ही पूरी तरह जिम्मेदार है इसलिए वह इस गंभीर और जलते माहौल में भी उस राज्य में राष्ट्रपति शासन नहीं लगा रही है अब तो बौखलाई जनता आक्रोशित हो भाजपा कार्यालय और केन्द्रीय राज्यमंत्री के घर पर भी आग लगा रही है। हालात बदतर हैं सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं हज़ारों घायल हैं,गांंव के गांव जला दिए गए हैं तथा तकरीबन 50-60हजार शरणार्थी कैम्पों में पहुंच गए हैं पलायन बराबर जारी है।

यहां घरु युद्ध जैसे हालात हैं।तीन मई से प्रारंभ इस युद्ध को रोकने सबसे पहले अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी मेरी काम ने प्रधानमंत्री जी से मणिपुर बचाने की गुहार लगाई थी। लेकिन राजा जी कर्नाटक चुनाव में बिज़ी थे।बाद में जब मणिपुर जलने लगा तो खामोश हो गए।अब विदेश प्रवास हो रहा है । मणिपुर जलता है तो जलने दो।

पूर्वांचल सेवन सिस्टर्स के रूप में गठित हुआ उम्मीद थी सब मिलजुलकर रहेंगे किन्तु राज्य निर्माण से पूर्व पहाड़ी जनजाति और घाटी के बीच राज्यों के निर्माण में  कहीं बड़ी चूक हो गई।जो लोग नागालैण्ड मणिपुर गए होंगे उन्हें ज्ञात होगा कि नागालैण्ड के हिस्से में धनलक्ष्मी नदी का निचला मैदानी भाग दीमापुर शामिल किया गया है लेकिन नागा जहां से पहाड़ शुरू होता है वहां पर अपना गेट बनाए हुए हैं वहां से अपनी सीमा मानते हैं उनकी मैदान या घाटी में कोई दिलचस्पी नहीं।

नागालैण्ड के अंतिम छोर माओ स्टाप है वहां से  मणिपुर की सीमा शुरू हो जाती है आश्चर्य तो तब होता है जब मणिपुर जाने वाली बस को नागालैण्ड के कोहिमा या अन्य स्टाप पर रुकने की अनुमति नहीं है।माओ से आगे जब बढ़ते हैं तो मणिपुर का यह तमाम इलाका सेनापति जिले तक में नागाओं का आधिपत्य और संस्कृति नज़र आती है और जब मणिपुर नदी की घाटी में बसे इम्फाल जो यहां की राजधानी है आती है तो वहां मैंतेई लोग बहुतायत से नज़र आते हैं जिन्होंने पुरातन जीवधर्म के साथ वैष्णव और सनातन धर्म को अपना लिया है। इम्फाल का गोविंद मंदिर बहुत प्रसिद्ध है।जबकि घाटी के उत्तर-पूर्व में म्यांमार और मेघालय से आए कूकी पूरी पर्वत श्रृंखला में रहते हैं जो म्यांमार तक चली गई है। नागा और कूकी जीव धर्म के साथ ईसाई धर्म के अनुयाई हैं। कोहिमा में प्रत्येक रविवार नागा परिवार  चर्च जाते हैं और तमाम कारोबार बंद रखते हैं इस दिन वहां से आवागमन भी नहीं हो सकता।

 मूल दिक्कत विभाजक रेखा का गड़बड़ होना तो है ही इसीलिए मेघालय,मिजोरम, नागालैण्ड और मणिपुर जब तब अशांत हो जाते हैं। हालांकि मणिपुर में ही सबसे ज्यादा हिंदु हैं लेकिन यहां यह आग तब लगी जब कथित तौर पर हिंदुत्ववादी बी जे पी सरकार बनी जिसने त्रिपुरा की तरह इस क्षेत्र को भी अपनी जागीर समझा। उनकी मंशा मैंतेई अनुसूचित जाति को जनजाति का घोषित कर पहाड़ पर कब्ज़ा  करना है दूसरी शब्दों में कहें कूकी और नागा आदिवासी समुदाय की ज़मीन हथियाना है।जिसको नागा और कूकी किसी भी कीमत पर देने और छोड़ने तैयार नहीं है। इसी विषयक कानून बनाया गया और हाईकोर्ट ने भी अनुमति प्रदान की।पूर्ववत ही बताया जा चुका है कि नागा लोग पहाड़ की तलहटी में बसे दीमापुर को अपना नहीं मानते उनकी नज़र मणिपुर के सेनापति जिले तक है जो पहाड़ी भूमि है  और शेष  पूर्वी पहाड़ी पर कूकी जनजाति के कब्जे में है। जहां ज्यादा हमले हुए हैं। 

दूसरी सत्ता पर काबिज पार्टी की नाराज़गी का बड़ा कारण नागा और कूकी समुदाय का ईसाई धर्म को मानना है। इसलिए हमले सिर्फ कूकी नागा लोगों के घर पर ही नहीं हुए तकरीबन 200चर्च भी जलाए जाने की खबर भी है।यह इन क्षेत्रों में कभी नहीं हुआ।

राजधानी इम्फाल घाटी में होने के कारण कूकी लोग यहां भी रोज़गार के सिलसिले में रह रहे हैं बताया जाता है उनका बड़ा बुरा हाल किया गया इससे नाखुश कूकी नेताओं ने पड़ोसी देश से भी हथियार वगैरह प्राप्त किए और मैंतेई लोगों को भी काफी क्षति पहुंचाई है।बताया जा रहा है मैंतेई लोगों को सरकार ने हथियार पहुंचाए हैं जबकि कूकियों ने  हथियारों की बड़े पैमाने पर लूट की है फलस्वरूप राज्य में गृहयुद्ध जैसा माहौल निर्मित कर दिया गया है।

इस युद्ध के तकरीबन पचास दिन होने को आए लेकिन यह युद्ध बराबर चल रहा है मणिपुर में रहने वाले लोगों ने कभी किसी धर्म का अपमान नहीं किया।आज सत्ता में काबिज कथित हिंदुत्ववादी पार्टी ने दिप दिप करते मणिपुर को आग के हवाले कर दिया है।पहले इन सभी लोगों ने विशेष सशस्त्र बल के अत्याचार सहे । सैंकड़ों युवक मारे गए उनकी आवाज आज तक नहीं सुनी गई आज भी इंफाल में 16जून को सभी लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने एकत्रित होते हैं तमाम इंफाल उस दौरान गुलाबी रंग से ढंक जाता है।सारा कारोबार स्वेच्छा से बंद रखा जाता है।  इसके खिलाफ मणिपुर की कवियत्री इरोम चानू शर्मिला ने 16साल तक अन्न-जल त्याग का दुनिया का सबसे लंबा सत्याग्रह किया। अफ़सोसनाक कि विशेष सुरक्षा बल के कार्यालय को शहर से हटाकर दूर ले जाने के अलावा कुछ नहीं हो सका। उन्होंने चुनाव भी लड़ा जो वे हार गई उन्हें ना तो सरकार ने महत्व दिया ना मणिपुर वासियों ने ।मज़बूरीवश उन्होंने एक विदेशी युवक से जो उनका आंदोलन के दौरान मददगार था 2017में विवाह किया और मणिपुर छोड़ने  का मन बना लिया।

बहरहाल यह भी दिलचस्प है कि यहां पहाड़ी संस्कृति के मुताबिक मातृसत्तात्मक समाज है। महिलाओं के हाथ में पूरा बाजार है लेकिन इरोम के आंदोलन में प्रारंभ में महिलाएं साथ रहीं बुजुर्ग महिलाओं ने विशेष अधिकार प्राप्त सशस्त्र बल के बलात्कारियों के खिलाफ नग्न प्रदर्शन भी किया था।आज वही सशस्त्र बल मणिपुर वासियों को दहला रहा है।उनकी चुनी हुई सरकार द्वारा दमन चक्र जारी है। सरकार बन जाने के बाद कूकी की पहाड़ी ज़मीन हथियाने और कारपोरेट के हवाले करने की मंशा से मैंतेई को जनजाति का प्रमाण पत्र देना एक बड़ी भूल है। मैंतेई वैसे भी काफी उन्नत हैं सरकार उनकी है तमाम पदों पर मैंतेई काबिज है।छुट पुट जगहों पर कूकी पहुंच गए हैं किंतु उनका अपने संस्कार और पहाड़ से प्रेम बरकरार है वे जान दे देंगे पहाड़ नहीं देंगे।ठीक छत्तीसगढ़ के बस्तर के नक्सलवादियों की तरह वे अपने जल,जंगल और जमीन से बेपनाह मोहब्बत करते हैं।

पिछले कुछ वर्षों से मणिपुर घाटी पर्यटन नक्शे पर भी उभरी है।लोकतक झील को कश्मीर की डल झील की तरह आवास बनाकर नया स्वरूप दिया गया है। यहां से म्यांमार के मोरे बाज़ार से भारतीय बड़ी खरीदारी भी करते हैं। गोविंद मंदिर और वैष्णव मंदिर भी यहां नज़र आते हैं चर्च की भी संख्या भी यहां 500के आसपास है।मणिपुरी संगीत और नृत्य बेमिसाल हैं।इसकी पोशाक का कोई सानी नहीं। राज्य में स्वदेशी रूप से उत्पादित हस्तशिल्प उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला है। मणिपुरी बेड कवर, मोइरांगफी, रेशम और सूती साड़ी, स्कार्फ, शॉल आदि सभी अपनी शैली में अद्वितीय हैं और एक आकर्षक संग्रह के लिए बनाए गए हैं।मंजरी श्रीवास्तव. रतन थियाम रंगमंच की दुनिया के विश्वविख्यात रंगकर्मी हैं.इन्होंने इस क्षेत्र में एक बडी टीम तैयार की है रो प्रगतिशीत के साथ आगे बढ़ रहे हैं। इंदिरा गांधी आदिवासी विश्व विद्यालय अमरकंटक की एकमात्र शाखा यहां स्थापित हुई है जहां आदिवासी जन जातियों के विकास हेतु अध्ययन और शोध कार्य हो रहा है। मणिपुर विश्वविद्यालय के छात्र और अध्यापकों का अब तक प्रगतिशील चेतना विकसित करने में बड़ा योगदान रहा है। यहां प्रगतिशील लेखक संघ की भी मज़बूत इकाई मौजूद है।

निरंतर आगे बढ़ते मणिपुर को इस वक्त कूकी- मैंतेई को दो दलों में बांटकर उनके बीच जिस तरह दरार पैदा की गई है उसको पाटना आसान नहीं है। विकसित होते मणिपुर के तमाम जातीय संगठनों को एक जुटकर होकर अपने पहाड़,अपनी कौमों को बचाना होगा जिस पर सरकार की मेहरबानी से कारपोरेट की नज़र लगी हुई है।उम्मीद है सामाजिक कार्यकर्ता मुखर होंगे और मणिपुर में बहते आंसुओं और धधकते उन्माद को खत्म कराने आगे आएंगे।

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