डॉ. नेहा
बढ़ती उम्र के साथ महिलाओं में कई तरह के स्वास्थ्य जोखिमों का खतरा बढ़ जाता है। वहीं रिप्रोडक्टिव एज में महिलाएं, सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज सहित अन्य फर्टिलिटी संबंधी बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। ऐसे में परेशानी को शुरुआती स्टेज में पकड़ने के लिए एक उचित अंतराल पर बॉडी चेक अप यानि कि कुछ जरूरी जांच करवाते रहना चाहिए।
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में महिलाएं अक्सर अपने स्वास्थ्य को नज़रअंदाज कर देती हैं, लेकिन यह बेहद ज़रूरी है कि वे अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें। महिलाओं में पैप स्मीयर जैसे टेस्ट औऱ नियमित चेक-अप आवश्यक हैं। नियमित चेक-अप से कई गंभीर बीमारियों को शुरुआती चरण में ही पकड़ा जा सकता है। खासतौर पर सर्वाइकल कैंसर, जो महिलाओं में बहुत आम होता जा रहा है। पैप स्मीयर टेस्ट से इसका समय पर पता लगाया जा सकता है।
यह टेस्ट सर्विक्स की कोशिकाओं में किसी भी असामान्य बदलाव को पहचानने में मदद करता है। अगर समय रहते इन बदलावों का इलाज शुरू हो जाए, तो कैंसर को पूरी तरह से रोका जा सकता है।
30 से 65 वर्ष की आयु के लोगों के लिए हर 3 साल में पैप टेस्ट या हर 5 साल में सिर्फ़ HPV टेस्ट जरुरी हैं। अपने डॉक्टर से परामर्श करें कि आपके लिए कौन सा परीक्षण सबसे अच्छा है।
अगर आपके टेस्ट के नतीजे असामान्य हैं, या आपको सर्वाइकल कैंसर का ज़्यादा जोखिम है, तो आपको दिशा-निर्देशों के अनुसार ज़्यादा बार स्क्रीनिंग की ज़रूरत हो सकती है। ख़ास तौर पर अगर आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर है, या कभी पहले असामान्य सर्वाइकल सेल्स के लिए आपका इलाज किया गया है।
*जरूरी है “नियमित चेक अप :*
नियमित चेक-अप से हार्मोनल असंतुलन, पीसीओडी, यूटेराइन फाइब्रॉयड्स और अन्य स्त्री रोग संबंधी समस्याओं का पता लगाया जा सकता है। महिलाओं को साल में कम से कम एक बार अपने स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलना चाहिए।
नियमित चेक-अप से न केवल बीमारियों का पता चलता है, बल्कि महिलाओं को अपनी प्रजनन क्षमता और हार्मोनल स्वास्थ्य के बारे में भी सही जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है।
21 साल की उम्र के बाद हर महिला को पैप स्मीयर टेस्ट जरूर करवाना चाहिए, और अगर रिपोर्ट सामान्य है तो इसे हर तीन साल में दोहराना चाहिए। महिलाओं के लिए आवश्यक है कि वो अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही न बरतें और स्वास्थ्य के प्रति आवश्यक कदम उठाएं।
समय पर की गई छोटी-छोटी सावधानियां भविष्य में बड़ी समस्याओं को रोक सकती हैं। इसलिए, नियमित स्त्री रोग चेक-अप औऱ पैप स्मीयर जैसे टेस्ट को अपनी प्राथमिकता बनाएं।
*1. स्तन परीक्षण :*
20 वर्ष की आयु से हर महिला को स्तन परीक्षण करवाने की सलाह दी जाती हैं। 1 से 3 वर्ष में एक बार स्तन परीक्षण करवाने रहें। इससे आपको शुरुआत में ही समस्या का पता लग जाता है, जिससे आपकी समस्या का इलाज आसान हो जाता है।
*2. मैमोग्राफी :*
40 से 49 वर्ष की आयु की महिलाओं को अपने डॉक्टर के साथ मैमोग्राम के लाभ और जोखिमों पर चर्चा करनी चाहिए। 50 वर्ष की आयु तक, सभी महिलाओं को हर 1 से 2 वर्ष में मैमोग्राम करवाना चाहिए।
*3. बोन डेंसिटी टेस्टिंग :*
यह परीक्षण 65 वर्ष या उससे अधिक आयु की सभी महिलाओं, या 65 वर्ष से कम आयु की मेनोपॉज के बाद की महिलाओं के लिए अनुशंसित है, जिन्हें हड्डी के फ्रैक्चर का जोखिम होता है।
*4. थायरॉइड फंक्शनिंग टेस्ट :*
महिलाओं में थायरॉइड डिसऑर्डर से प्रभावित होने की संभावना अधिक होती है, इसलिए नियमित निगरानी महत्वपूर्ण है। एक उचित अंतराल पर थायरॉइड का जांच करवाते रहना बहुत जरूरी है।
*5. क्लैमाइडिया और गोनोरिया टेस्ट :*
यदि इन्हें अनट्रीटेड छोड़ दिया जाए, तो ये एसटीआई, पैल्विक सूजन रोग, इनफर्टिलिटी और पुराने दर्द जैसी गंभीर जटिलताओं को जन्म दे सकते हैं। 25 वर्ष से कम आयु की सेक्सुअली एक्टिव महिलाओं के लिए ईयरली टेस्ट की सिफारिश की जाती है। 25 वर्ष और उससे अधिक आयु की महिलाओं को भी परीक्षण से लाभ हो सकता है।
*6. एचआईवी टेस्ट :*
इस टेस्ट को जीवनकाल में कम से कम एक बार जरूर करवाएं। अगर आप एक से अधिक का सेक्स लेती हैं तो, हर साल कराएं.
इसी तरह, सिफलिस, ट्राइकोमोनास, हर्पीज सिम्प्लेक्स वायरस और हेपेटाइटिस जैसे अन्य एसटीआई के लिए स्क्रीनिंग रिस्क फैक्टर पर निर्भर होने चाहिए।