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दो सबसे दौलतमंद शख्‍सीयतें मुकेश अंबानी और गौतम अडानी क्‍यों आ गए हैं आमने-सामने?

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एशिया की दो सबसे दौलतमंद शख्‍सीयतें। मुकेश अंबानी और गौतम अडानी । ऊपर से दोनों में कई बातें एक जैसी दिखती हैं। दोनों गुजराती हैं। मीडिया से दूर रहते हैं। जिस सेक्‍टर में उतरते हैं, बादशाहत कायम कर लेते हैं। हालांकि, कई बातों में गौतम और मुकेश बिल्‍कुल अलग हैं। 65 साल के अंबानी को पिता से कारोबारी विरासत मिली है। इसके उलट 60 साल के अडानी सेल्‍फमेड बिजनेसमैन हैं। अब तक दोनों के कारोबार काफी अलग-अलग थे। दशकों तक अडानी का फोकस बंदरगाह, कोल माइनिंग और शिपिंग जैसे क्षेत्रों में रहा है। दूसरी तरफ अंबानी का कारोबारी साम्राज्‍य तेल और पेट्रोलियम में फैला था। हालांकि, बीते कुछ सालों में तस्‍वीर बदल गई है। ये एक-दूसरे के सामने आ गए हैं। दोनों कई क्षेत्रों में एक-दूसरे को टक्‍कर देने के लिए कमर कसते दिख रहे हैं। अडानी के पांवों की दस्‍तक अंबानी के किले में पड़ गई है। इससे रिलायंस इंडस्‍ट्रीज के मुखिया सतर्क हो गए हैं। वह किसी के लिए इतनी आसानी से मैदान छोड़ने को तैयार नहीं हैं।

कुछ महीने पहले गौतम अडानी ने एशिया के सबसे दौलतमंद शख्‍स के तौर पर मुकेश को पीछे छोड़ दिया था। ब्‍लूमबर्ग बिलियनर्स इंडेक्‍स के आंकड़ों की मानें तो दुनिया में किसी भी और के मुकाबले इस साल अडानी की दौलत में सबसे ज्‍यादा इजाफा हुआ है। हाल में अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज एक विदेशी दूरसंचार कंपनी खरीदने पर विचार कर रही थी। तभी एक खबर आई जिसने चौंका दिया। खबर यह थी कि गौतम अडानी भारत में 5G एयरवेव की पहली बड़ी बिक्री में बोली लगाने की प्‍लानिंग कर रहे हैं।

अंबानी खेमा अडानी से है सतर्क
अंबानी की रिलायंस जियो इन्फोकॉम भारत के मोबाइल मार्केट में टॉप प्‍लेयर है। इसके उलट अडानी ग्रुप के पास वायरलेस दूरसंचार सेवाएं प्रदान करने का लाइसेंस भी नहीं है। लेकिन, बताया जाता है कि सिर्फ इतनी खबरभर से मुकेश का खेमा अलर्ट हो गया। अंबानी ने आखिरकार विदेशी फर्म के लिए बोली नहीं लगाई। इसके पीछे वजह थी कि अगर अडानी ने कोई चुनौती पेश की तो रुपये-पैसे झोंकने में कमी नहीं आए।

दो दशक से ज्‍यादा समय तक दोनों धुरंधरों ने अपने-अपने सेक्‍टरों में शांति से विस्तार किया। लेकिन, अब एशिया के दोनों सबसे दौलतमंद तेजी से एक ही जमीन पर आगे बढ़ने लगे हैं। अडानी खासतौर से अपने फोकस को पारंपरिक क्षेत्रों से अलग हटाकर अन्‍य सेक्‍टरों में बढ़ा रहे हैं। इससे दोनों की टक्‍कर के लिए मंच तैयार हो रहा है। यह जंग ई-कॉमर्स से लेकर डेटा स्ट्रीमिंग और स्टोरेज तक दिख सकती है। एक्‍सपर्ट्स कहते हैं कि दोनों भारतीय परिवार समान रूप से आगे बढ़ने के लिए प्‍यासे हैं। इसका मतलब है कि वे निश्चित तौर पर एक-दूसरे के साथ दौड़ लगाने वाले हैं।

कई सेक्‍टरों में अडानी के फैल रहे हैं पांव
दोनों अरबपति ग्रीन एनर्जी सेगमेंट में कदम रख चुके हैं। इस सेक्‍टर में इन दोनों ने अलग-अलग 70 अरब डॉलर से ज्‍यादा का निवेश करने का वादा किया है। यह क्षेत्र मोदी सरकार की प्राथमिकताओं से बहुत ज्‍यादा जुड़ा हुआ है। अडानी ने डिजिटल सर्विसेज, खेल, खुदरा, पेट्रोकेमिकल्स और मीडिया में भी गहरी रुचि का संकेत देना शुरू कर दिया है। अंबानी की रिलायंस या तो इन क्षेत्रों में पहले से ही हावी है या उनके लिए बड़ी योजनाएं हैं।

टेलीकॉम सेक्‍टर में अगर अडानी बड़े पैमाने पर उपभोक्ताओं को टारगेट करती है तो प्रतिस्पर्धा के शुरुआती चरण में कीमतों में गिरावट आ सकती है। लेकिन, दोनों कंपनियां एकाधिकार हासिल कर लेती हैं तो फिर इनमें मजबूती आएगी। भारत के वायरलेस स्पेस में अभी तीन निजी कंपनियों का वर्चस्व है। जब अंबानी ने 2016 में टेलीकॉम सेक्‍टर में एंट्री की थी तो उन्होंने मुफ्त कॉल और बहुत सस्ते डेटा की पेशकश की थी। इससे हाहाकार मच गया था। इस तूफान में कई कंपनियों ने तो बोरिया-बिस्‍तर समेट लिया था। हालांकि, जमने के बाद कीमतें फिर बढ़ना शुरू हुई हैं।

दशकों से अलग-अलग रहे हैं क्षेत्र
दशकों से अडानी का व्यवसाय बंदरगाहों, कोयला खनन और शिपिंग जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित था। इनमें सेक्‍टरों से अंबानी ने दूरी रखी। उनका फोकस पेट्रोलियम सेक्‍टर में रहा। इस सेक्‍टर में कंपनी ने भारी निवेश किया। हालांकि, एक साल में नाटकीय रूप से बदलाव हुआ है। बताया जाता है कि मार्च में अडानी ग्रुप सऊदी अरब में संभावित पार्टनरों की खोज में था। ब्‍लूमबर्ग न्‍यूज के अनुसार, वह अरामको में खरीदारी की संभावना तलाश रही थी। इससे कुछ महीने पहले रिलायंस ने अपनी एनर्जी यूनिट में अरामको को 20 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की योजना को रद्द कर दिया था। यह योजना दो साल से पाइपलाइन में थी।

ऐसा नहीं है कि अडानी की सभी डील रिलायंस के साथ ओवरलैप होती हैं। अडानी ग्रुप विलय और अधिग्रहण के सौदे करने में तेजी से आगे बढ़ गया है। वहीं, दुनियाभर में फैली अनिश्चिताओं को देखते हुए अंबानी विदेश में भारी खर्च करने को लेकर सतर्क हैं। अडानी समूह ने जुलाई में 1.2 अरब डॉलर में इजरायल में हाइफा बंदरगाह का अधिग्रहण किया था। मई में उसने होल्सिम की भारतीय सीमेंट इकाइयों को 10.5 अरब डॉलर में खरीदा था।

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