अनामिका सिंह
वेदान्त दर्शन के तीन भागों श्रुति, स्मृति तथा न्याय मे से श्रुति के अन्तर्गत उपनिषदों की गणना की जाती हैं. उपनिषद् कामधेनु है तथा भगवद्गीता उपनिषद् रूपी कामधेनु का अमृतमय पथ्य हैं.
सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्।।
उपनिषद् ही वेदान्त दर्शन के आधारभूत प्रमाण हैं. आचार्य सदानन्द ने वेदान्तसार में लिखा है कि : “वेदान्तो नाम उपनिषद्प्रमाणं तदुपकारिणी शारीरिकसूत्रादीनि च”.
उपनिषदों को विश्व पटल पर बड़ी प्रसिद्धि मिली, जिसमें बादशाह शाहजहां के बेटे और औरंगजेब के भाई दारा शिकोह का हाथ रहा. दारा शिकोह 1640 में कश्मीर में एकेश्वरवाद से सम्बन्धित पुस्तक ढूंढने के लिए आते हैं. यहां उन्हें पहली बार उपनिषद् के विषय में ज्ञात होता है. उन्होंने जब उपनिषद् का अध्ययन किया तो उनकी आंखें खुली रह गईं, क्योंकि उसके अन्तर्गत लिखी बाते उन्हें मूल्यवान लगी. इसी से प्रभावित होकर उन्होंने इस ज्ञान की गंगा का विस्तार किया.
1654 में दारा ने बनारस के कुछ पंडितों को दिल्ली बुलाया और उपनिषदों का फारसी में अनुवाद का कार्य प्रारम्भ किया. दारा की इस रचना का नाम ‘सिर्रे अकबर’ (सिर्र-ए-अकबर) पड़ा. इस पुस्तक को लिखने के पीछे उनका भाव यह था कि उपनिषदों को मुसलमान भी पढ़ सकें. सिर्रे अकबर का अर्थ है ‘महान् रहस्य’ अर्थात् इसकी भूमिका में व्याख्या करते हुए लिखा है- ‘आयने तौहीद की सिर्रे पोशदानी अस्त’ अर्थात् अद्वैत के ऐसे रहस्य का पद्य जिन्हें गुप्त रखना जरूरी हैं.
दारा के अनुवाद करने के कुछ समय बाद ही औरंगजेब ने उनकी हत्या करा दी थी. इसलिए यह अनुवाद प्रकाशित नहीं हुआ. एम. जेन्टल को सिर्रे अकबर की लिपि भारत से मिली उन्होंने इस लिपि को फ्रांसिस बर्नियर को दे दिया और वह उसे अपने देश फ्रांस ले गया. फ्रांसिस बर्नियर ने यह पाण्डुलिपि आंकेतिल ड्यूपेरो को दे दी. इसका ड्यूपेरो ने अध्ययन किया और फ्रेन्च में इसका अनुवाद किया जो कभी प्रकाशित नहीं हो पाया. ड्यूपेरो ने ´सिर्रे अकबर’ का लेटिन भाषा में भी अनुवाद किया, जिसका दो खण्डों मे प्रकाशन हुआ उसका नाम ´औपनेखत्´ (‘The Oupnek’hat’) पड़ा.
1801-1802 ई. में उपनिषदों का यह सर्वप्रथम लैटिन भाषा में अनुवाद था. उपनिषद् की महिमा को प्रतिपादित करते हुए जर्मन दार्शनिक आर्थर शॉपेनहावर ने भी कहा है- ´सम्पूर्ण विश्व में उपनिषदों के समान कोई भी अध्ययन इतना लाभकारी एवं इतना उन्नतिदायी नहीं है. यह मेरे जीवन की सांत्वना रही है और यह मेरी मृत्यु की सांत्वना होगी’.
आर्थर शॉपेनहावर ने अंग्रेजी में कुछ यूं लिखा था…
In the whole world there is no study so beneficial and so elevating as that of the Upanishads. It has been the solace of my life and it will be the solace of my death.
दारा शिकोह द्वारा कराये गये अनुवाद से प्रारंभ यात्रा अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप और अमेरिका में भी चलती रही व प्रभावित करती रही है. ड्यूपेरों ने उपनिषदों पर फ्रांस में जो कार्य किया था, उसी को विस्तार अल्फ्रेड वेबर ने दिया. 1833 में भी बर्नोफ ने बृहदारण्यकोपनिषद् का देवनागरी लिपि से फेञ्च एवं लैटिन में अनुवाद कर उसे प्रकाशित कराया. बेरोन फर्डिनेन्ड एक्सटेन ने 1833 में कठोपनिषद् का फेञ्च में अनुवाद किया एवं 1833 में जर्मन पेलस्टीन ने ऐतरेय उपनिषद् का फेञ्च अनुवाद प्रकाशित कराया.
चार्ल्स डार्विन ने 1877 मे कौषीतकि उपनिषद् का फेञ्च में अनुवाद किया. एण्ड्रे फर्डिनेन्ड हेरोल्ड ने बृहदारण्यकोपनिषद् की माध्यन्दिन शाखा के अनुसार आलोचनात्मक संस्करण 1894 में प्रकाशित किया. 1733 में फादर कलमेट्टे पोन्स ने 168 पाण्डुलिपियों का संग्रह जर्मनी भेजा, जिसमें उपनिषद् थे और शास्त्रीय साहित्य एवं दार्शनिक पुस्तक थी. प्रारम्भिक रूप से जर्मन में कार्ल जोसेफ, हेरोनिमस बिन्डिसच और उनके पुत्र फ्रेडरिक नीटसे इन सबने मिलकर उपनिषदों पर कार्य किया.
उपनिषदों के माहात्म्य का प्रतिपादन इस तथ्य से सहज ही लगाया जा सकता है कि इनका अनुवाद देश-विदेश की विभिन्न भाषाओं में किया गया. मौखिक धरातल पर उपनिषदों के विकास का निरीक्षण करते समय सबसे पहला स्थान उनके दार्शनिक अध्ययन का है और उसके बाद हमारे ध्यान को आकृष्ट करने वाली कृतियां उसके अनुवाद है. इस प्रकार दाराशिकोह द्वारा उपनिषदों के अनुवाद के लिए किया गया महत्त्वपूर्ण प्रयास पूरे विश्व के लिए लाभकारी रहा हैं.
अनामिका सिंह, दिल्ली यूनिवर्सिटी के इन्द्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय में संस्कृत विभाग की छात्रा हैं. उनकी साहित्य-संस्कृति में दिलचस्पी है और इन विषयों पर लिखती हैं.