अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

क्या अजित-शिंदे की बगावत BJP को फायदा पहुंचाएगी?

Share

उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा 48 लोकसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में रविवार को बड़ा सियासी दांव चला गया। देश के सबसे चतुर नेताओं में से एक शरद पवार को भतीजे अजित पवार ने आखिरकार गच्चा दे ही दिया।

भतीजे का दावा है कि वो अब एनसीपी को भी छीन लेंगे, ठीक वैसे ही जैसे शिंदे ने उद्धव से तीर कमान वाली शिवसेना झपट ली। मगर यह तो तस्वीर का एक पहलू है। दूसरा पहलू बीजेपी के पाले में है।

भास्कर एक्सप्लेनर में तीन पॉलिटिकल एक्सपर्ट- महाराष्ट्र की राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार रवि किरण देशमुख, वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई और दिव्य मराठी के राज्य संपादक प्रणव गोलवेलकर के जरिये बताएंगे कि कैसे बीजेपी ने महाराष्ट्र की सियासी जमीन को खंड-खंड कर 6 टुकड़ों बांट दिया और खुद सबसे बड़ा हिस्से लेने की तैयारी में है…

पहले ही दिखने लगा था कि अजित पवार बगावत करेंगे…

  • पिछले साल 10-11 सितंबर को दिल्ली में एनसीपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी। शरद पवार को पार्टी का अध्यक्ष चुना गया था। 11 सितंबर को बैठक के बीच शरद पवार के सामने से ही अजित पवार उठकर चले गए थे। उनकी नाराजगी सबके सामने आ गई।
  • इस साल 21 अप्रैल को मुंबई में एनसीपी की एक बड़ी बैठक में अजित पवार शामिल नहीं हुए। जब खबरें चलने लगीं कि अजित पवार पार्टी के सीनियर नेताओं से नाराज चल रहे हैं, तो अजित ने सफाई दी थी कि उनका पहले ही दूसरे कार्यक्रम में जाने का प्लान था।
  • अप्रैल महीने में ही अजित पवार ने मराठी अखबार सकाल को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि पीएम मोदी के करिश्मे के कारण ही बीजेपी 2014 और 2019 में सत्ता में आई। पीएम ने देश का भरोसा जीता है, अपने भाषणों के जरिए उन्होंने लोगों को प्रभावित किया है।
  • 10 जून 2023 की दोपहर शरद पवार ने पार्टी के 25वें स्थापना दिवस पर चौंकाने वाला ऐलान किया। उन्होंने अपनी बेटी और सांसद सुप्रिया सुले और पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल को एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। ये फैसला अजित की बगावत का आखिरी कील साबित हुआ। इसके बाद से ही अजित का बगावत करना लगभग तय माना जा रहा था।

अजित पवार के टूटकर बीजेपी के साथ जाने को पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स कैसे देखते हैं, 9 पॉइंट्स में जानिए…

1. लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी अगर-मगर की स्थिति में नहीं रहना चाहती

बीजेपी लोकसभा चुनाव को लेकर अगर-मगर की स्थिति में नहीं रहना चाहती है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार और पश्चिम बंगाल में बीजेपी को अपनी राजनीतिक स्थिति डावांडोल नजर आ रही है। महाराष्ट्र में 2019 के लोकसभा चुनाव में NDA ने 42 सीटें जीती थीं। पवार बगावत नहीं करते तो इन सीटों में कमी तय मानी जा रही थी।

वहीं बिहार में 40 में 39 सीटें NDA को मिली थीं। वहां पर नए गठबंधन के सामने NDA के लिए 39 सीटें लाना आसान नहीं है। पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने 18 सीटें जीती थीं। यहां पर अगर लेफ्ट, कांग्रेस और तृणमूल साथ आ गए तो बीजेपी को सिंगल डिजिट से आगे बढ़ने में भी दिक्कत होगी।

कर्नाटक में 25 सीटें जीती थीं, लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद कहा जा रहा है कि बीजेपी 14-15 तक में सिमट सकती है। यानी बीजेपी को इन राज्यों से 50-60 सीटों की जो कमी होगी उसे मध्यप्रदेश, राजस्थान, यूपी, हिमाचल, गुजरात और उत्तराखंड से पूरा करना संभव नहीं है। क्योंकि यहां पर बीजेपी पहले से ही 90% सीटें जीत चुकी है। यहां वह दोबारा 90% सीटें जीतती है, तो भी उसकी संख्या नहीं बढ़ेगी। इसलिए बीजेपी इस तरह की कवायद कर रही है।

2. विपक्ष को तोड़कर वोटर्स को भ्रमित करती है बीजेपी
बीजेपी का मानना है कि विपक्ष टूटता है तो इसका फायदा पार्टी को मिलता है। वहीं वोटर्स भी भ्रमित हो जाते हैं कि किसके साथ जाएं। बीजेपी को लगता है कि लोग विचारधारा से ज्यादा बड़े नेताओं से जुड़ते हैं। अजित पवार के साथ 35 से 40 विधायक बताए जा रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी के सामने से एनसीपी की चुनौती तकरीबन खत्म हो जाएगी और पार्टी की बड़ी जीत होगी।​​​​​​

3. बीजेपी के लिए बड़े मराठी चेहरे की कमी होगी पूरी

महाराष्ट्र में सबसे बड़ा और मजबूत वोट बैंक मराठा है। बीजेपी के पास प्रदेश में कोई स्ट्रॉन्ग मराठा चेहरा नहीं है। प्रदेश में पार्टी के सबसे बड़े नेता देवेंद्र फडणवीस ब्राह्मण हैं। अजित पवार एक मजबूत मराठा चेहरा हैं। मराठा समाज में उनकी वैल्यू एकनाथ शिंदे से भी ज्यादा है।

अभी तक बीजेपी की तरफ मराठा मतदाता का पूर्ण रूप से झुकाव नहीं दिखाई देता है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार का बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करने की एक बड़ी वजह भी यही है।

दरअसल शरद पवार अपने मराठा कोर वोट बैंक को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि उनके बीजेपी खेमे में जाने पर यह वोट उन्हें मिलेगा या नहीं। अजित पवार ने यह रिस्क लिया है। बीजेपी को शिंदे के बाद पवार का साथ मिलने से मराठाओं के बीच इनकी पकड़ काफी मजबूत हो जाएगी।

4. बीजेपी का टारगेट लोकसभा चुनाव, शरद पवार ने मौका दे दिया

बीजेपी का पहला टारगेट लोकसभा चुनाव है। अजित पवार पहले ही नाराज चल रहे थे। उस पर शरद पवार ने एक गलती कर दी। उन्होंने अपनी बेटी को पोस्ट देकर आगे कर दिया और अजित पवार को कोई पोस्ट नहीं दी।

यह रातोंरात नहीं हुआ है। अजित पवार पीएम मोदी की तारीफ कर रहे थे। डिग्री को लेकर उन्होंने मोदी के पक्ष में कहा कि डिग्री महत्वपूर्ण नहीं होती। वो लगातार बोल रहे थे कि डिप्टी सीएम बनना चाहते हैं।

5. सुप्रीम कोर्ट का फैसला अजित के लिए वरदान बना

अजित पवार ने शिंदे वाले मॉडल से ही एनसीपी को तोड़ा है। उन्होंने दावा किया है कि असली एनसीपी उनकी है और पार्टी का चुनाव चिह्न भी उनके पास है। राज्यपाल को पहले लेटर दिया और पार्टी का चीफ व्हिप नियुक्त कर दिया।

दरअसल, अजित के लिए शिवसेना वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला वरदान साबित हुआ है। शिवसेना टूटने वाले केस में सुप्रीम कोर्ट ने जो बाते गैर कानूनी बताई थीं, अजित उन खामियों को दूर करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। यही वजह है कि शरद पवार अभी तक किसी तरह की कानूनी लड़ाई या लीगल ऑप्शन की बात नहीं कर रहे हैं।

6. ईडी अकेली वजह नहीं, सुप्रिया कमजोर साबित हुईं

एनसीपी छोड़ने वाले नेताओं की संख्या 35 है। इनमें 3-4 नामों को छोड़ दें तो ज्यादातर पर करप्शन के आरोप नहीं हैं। इसलिए इस टूट के पीछे ईडी की कार्रवाई को वजह बताना पूरी तरह ठीक नहीं।

इतनी बड़ी संख्या में नेताओं के एनसीपी छोड़ने का मतलब है कि सुप्रिया सुले अपने पिता या चाचा जैसी मजबूत नेता नहीं हैं। प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे नेता शरद के वफादार रहे हैं, लेकिन वे सुप्रिया सुले के सामने लाइन में खड़े नहीं रहना चाहते।

7. पांच करोड़ सदस्यों वाले कोऑपरेटिव ढांचे पर कब्जे की कोशिश
महाराष्ट्र में सहकारिता यानी कोऑपरेटिव का सियासत में बहुत महत्व है। चीनी मिल हों या स्पिनिंग मिल या सहकारी बैंक। महाराष्ट्र में इस समय करीब 2.3 लाख कोऑपरेटिव सोसाइटी और उनके 5 करोड़ से ज्यादा सदस्य हैं।
इस पूरे ढांचे पर फिलहाल एनसीपी की मजबूत पकड़ है। इस मामले में शरद पवार के बाद अजित पवार का नंबर आता है। बीजेपी अजित के जरिए इस ढांचे और उससे जुड़े वोटरों पर काबिज होना चाहती है।

8. वोटर्स को जोड़ने में खरे नहीं उतरे एकनाथ शिंदे
एकनाथ शिंदे बीजेपी की उम्मीद से काफी कम शिवसेना के वोटर तोड़ पाए हैं। बीजेपी पिछले एक साल के दौरान महाराष्ट्र में हुए तकरीबन सभी उपचुनाव में हार गई। विधानपरिषद के दो चुनाव में बीजेपी बुरी तरह हारी। विधानसभा में भी कसवापेट, पुणे, कोल्हापुर जैसी सीटों पर बीजेपी को उम्मीद के हिसाब से वोट नहीं मिले।

पार्टी को लगता है कि अकेले शिंदे के बूते महाराष्ट्र में पैर जमाना मुमकिन नहीं। इसलिए वह बार-बार ऐसे प्रयोग कर रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और यूनाइटेड शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा और उसे 48 में 42 सीट मिली थीं। बीजेपी अभी की स्थिति में महाराष्ट्र में अपने आप को कमजोर पा रही थी। इसकी वजह है कि MVA 60% वोटों को प्रभावित कर सकता था।

9. उद्धव कमजोर, शरद बूढ़े, फायदा बीजेपी को मिलेगा

महाराष्ट्र में अभी कुछ लोगों में उद्धव ठाकरे को लेकर सहानुभूति है, लेकिन शिवसेना उद्धव गुट के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है। उद्धव कमजोर हो गए हैं। कुछ लोग पवार की सेक्युलर इमेज की वजह से उनके साथ हैं, पर वे 80 की उम्र पार कर चुके हैं। अभी जिन 35 नेताओं ने पार्टी छोड़ी है, उनका भी मजबूत सियासी वजूद है।

दूसरी तरफ प्रदेश में तमाम ऐसी घटनाएं हो रही हैं जो वोटों का ध्रुवीकरण करेंगी। उस पर यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा भी रहेगा। कुल मिलाकर इससे बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा।

अब आंकड़ों से समझते हैं कि महाराष्ट्र की सियासी पार्टियों को तोड़कर बीजेपी को कैसे फायदा होगा…

मई में महाराष्ट्र के प्रमुख मीडिया हाउस सकाल टाइम्स ने विधानसभा चुनाव को लेकर एक सर्वे किया। मौजूदा सियासी गणित को समझने के लिए ये सर्वे की सबसे लेटेस्ट इनसाइट है।

सकाल टाइम्स के सर्वे से साफ दिख रहा है कि 2019 के मुकाबले बीजेपी के वोट शेयर में 8.05% का इजाफा हो रहा है। वहीं उद्धव की शिवसेना का वोट शेयर 16.41% से गिरकर 12.5% हो रहा है। यानी शिवसेना में टूट के बाद 5% वोट बीजेपी के पाले में एकनाथ शिंदे ले आएंगे। अगर हम इसी मॉडल को एनसीपी पर लागू कर दें तो बीजेपी को कम से कम 10% वोट का फायदा होगा।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें