संजीव मालवीय
136 सीटें लाकर कांगे्रस ने फिलहाल तो दक्षिण में भाजपा की घुसपैठ पर रोक लगा दी है। भाजपा की हार के पीछे कांग्रेस संगठन में कई तरह के नए प्रयोग सामने आए हैं। इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने कर्नाटक जीत में अपनी भूमिका निभाई है। भाजपा जहां सालभर पहले से मेहनत करके अपने बूथ के कार्यकर्ता को काम पर लगा देती है, वहीं कांग्रेस में तो जिसे टिकट मिलता है वह खुद ही अपना संगठन खड़ा करता है और जीतने में जी-जान लगा देता है, लेकिन कर्नाटक में ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस के हर गुट ने एक-दूसरे के साथ मिलकर काम किया और ऐसा कहीं सुनाई नहीं दिया, जिसमें लग रहा हो कि कांग्रेस अलग-अलग गुटों में बंटी हुई है।
ऐसा नहीं कि वहां रमैया और शिवकुमार में आपस में मुकाबला नहीं था, लेकिन उसे सामने न लाकर सबने एकजुट होकर चुनाव लड़ा। जातीय समीकरण हो या फिर नए चेहरों को टिकट देने की बात, कांग्रेस इसमें आगे रही। जो भी एक चुनाव के लिए होता है कांग्रेस ने किया, लेकिन कर्नाटक का जो फार्मूला कांग्रेस ने अपनाया है, उसने भाजपा को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। भाजपा इस बार बजरंग बली का आशीर्वाद नहीं मिल पाया और उनके नाम से खेला गया दांव उलटा पड़ गया। डबल इंजन की सरकार का दावा हवा हो गया और फिर आम जनता की बात करें तो भाजपा को महंगाई खा गईं। उसके पहले जो राजनीतिक उठापटक कर्नाटक में सरकार गिराने को लेकर की गई थी, उसका भी काफी-कुछ असर चुनाव में भाजपा की हार के रूप में नजर आया। मध्यप्रदेश जैसे राज्य में साल के अंत में होने वाले चुनाव में कांग्रेस को एक नई राह मिल गई है। फिलहाल तो कांग्रेस की यहां वही स्थिति है जो कभी कर्नाटक में थी, लेकिन कर्नाटक फार्मूला अब कांग्रेस को प्रदेश में अपनाना ही पड़ेगा और अभी से इसकी तैयारी में जुट जाना होगा। कल रात भोपाल में हुई कांग्रेस की कोर कमेटी की बैठक में इसकी झलक नजर आई है। कर्नाटक में हिजाब और बजरंग बली को छोड़ दिया जाए तो सारे मुद्दे यहां वे ही हैं, जो कर्नाटक में थे। कांग्रेस अगर इन मुद्दों को भुनाने में कामयाब हो गई तो 15 महीने सरकार में रहने के बाद उसे जिस तरह सत्ता से बेदखल किया गया था, उसे भुनाकर वह फिर से सत्ता वापसी कर सकती है। महंगाई की लाइन को पकड़ सकती है, क्योंकि अभी धर्म की राजनीति से बड़ी पेट की लड़ाई नजर आ रही है, जिससे आम आदमी जूझ रहा है। इन सब बातों को कांग्रेस अगर अपनी गुटीय राजनीति भूलकर आम लोगों के बीच ठीक तरह से ले जाने में कामयाब हो जाए तो प्रदेश में कांग्रेस का परचम लहराने से कोई नहीं रोक सकता? फिर भी प्रदेश की 230 सीटों की राह कांग्रेस के लिए आसान नहीं है और दक्षिण भारत से उलट मध्य भारत की राजनीति है।