देश-दुनिया की राजनीति में भले ही सेंटर पॉइंट मोदी और भारत हो, मगर बिहार में तो नीतीश कुमार ऐसे फंसे हैं कि निकल ही नहीं रहे। लालू यादव और मोदी-शाह की जोड़ी भी जोर-आजमाइश कर चुकी है। अकेले नीतीश कुमार सबको ‘सियासी धूल’ चटा चुके हैं। अब नया शिगूफा है कि आरजेडी में जेडीयू का मर्जर होगा। हालांकि नीतीश कुमार समेत पूरी पार्टी इसे खारिज कर चुकी है। इस बात को बल इसलिए भी मिला कि नीतीश कुमार ने अपना सियासी उत्तराधिकारी के तौर पर तेजस्वी यादव को नॉमिनेट कर दिया है। पहले ये बातें उपरी स्तर पर होती थी, मगर मंगलवार को उन्होंने महागठबंधन की बैठक में और सार्वजनिक तौर पर कैमरे के सामने भी कन्फर्म किया। मगर क्या ये सब इतना आसान है? नीतीश की बात जेडीयू के नेता भी मानेंगे? आरजेडी के नेता कितने कंफर्ट होंगे? नीतीश के आने से आरजेडी को कितना फायदा होगा? ऐसे कई सवाल हैं।
RJD-JDU मर्जर प्लान में कितनी सच्चाई?
2005 से अब तक भारत की राजनीति 360 डिग्री पर घूम चुकी है, मगर बिहार की ‘नीतीश सूई’ टस से मस नहीं हुई। अब नीतीश कुमार ने लालू यादव के सामने ‘टारगेट 2025’ दिया है। मतलब कि अगर सबकुछ उनके (नीतीश) मन मुताबिक रहा तो अगला विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। साफ-साफ कहें तो अगर 2025 में महागठबंधन को बहुमत हासिल हुआ तो तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनेंगे। अगर इस बीच किसी ने ‘तंग’ किया तो नीतीश कुमार के पास ऑप्शन खुले हैं? ऐसी भी बात नहीं है। लालू यादव इतने कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। दिल्ली की बैठक में आरजेडी ने प्रस्ताव पारित कर पार्टी का नाम और चुनावी सिंबल बदलने का अधिकार तेजस्वी यादव दिया है। इस बात की चर्चा काफी जोरों पर रही कि जेडीयू का आरजेडी में विलय हो जाएगा। हालांकि नीतीश कुमार से लेकर ललन सिंह तक ने इसे खारिज किया। मगर जब नीतीश कुमार ने ही तेजस्वी को अपना उत्तराधिकारी मान लिया तो जेडीयू के नेताओं को ‘अनपच’ होना तय है।
JDU-RJD का मर्जर हुआ तो…क्या बदलेगा?
जैसा की बिहार बीजेपी का दावा है कि जेडीयू और आरजेडी का मर्जर 2023 में हो जाएगा। मतलब 2024 लोकसभा चुनाव से पहले इस प्रॉसेस को पूरा कर लिया जाएगा। शायद इसी को टारगेट कर लालू यादव ने आरजेडी में कुछ भी बदलने का अधिकार तेजस्वी यादव को पार्टी से आधिकारिक तौर पर दिला दिया है। अब नीतीश कुमार के एक-एक मूव का लालू और तेजस्वी यादव इंतजार कर रहे हैं। इसका पहला स्टेप ये है कि सभी को मेसेज दे दिया जाए कि तेजस्वी को नेता मान लें। इस काम को नीतीश कुमार ने पूरा कर दिया।
लालू यादव चाहते हैं कि 2025 का मुकाबला बीजेपी Vs आरजेडी हो। बीजेपी से जुड़े नेता भी यही चाह रहे हैं। बीच में नीतीश कुमार अटक गए हैं। दोनों ही बड़ी पार्टियां (बीजेपी और आरजेडी) इनसे निपट नहीं पा रहीं हैं। ऐसा कहा जाता है कि लालू यादव ने नीतीश कुमार को इसी शर्त पर सीएम की कुर्सी सौंपी है कि 2024 तक नीतीश कुमार दिल्ली की राजनीति में शिफ्ट हो जाएंगे। तेजस्वी को 2025 से पहले कमान सौंप दें। अगर दोनों ही पार्टियों का मर्जर हुआ को क्या इसका नाम ‘राष्ट्रीय जनता दल यूनाइडेट’ होगा। ये सिर्फ अनुमान है।
नीतीश कुमार की पॉलिटिक्स कितनी भरोसेमंद है?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लालू यादव संघर्ष के दिनों के साथी रहे हैं। राजनीतिक तौर पर चाहे जितनी खटास दिखती हो मगर निजी तौर दोनों परिवारों के बीच काफी मधुर संबंध रहे हैं। बिहार में जब लालू यादव के सितारे गर्दिश में चल रहे थे, तब भी नीतीश कुमार ने कोई ऐसा काम नहीं किया जो लालू यादव के दिल को दुखानेवाला हो। कभी लालू को सीएम बनाने के लिए नीतीश ने एड़ी-चोटी का बल लगाया था। मगर राजनीति में महत्वाकांक्षा बढ़ी और अलग रास्ते पर नीतीश निकल पड़े। बिना लालू को हराए नीतीश की चाहत पूरी होनेवाली नहीं थी तो उन्होंने लालू से जमकर लड़ा। सत्ता से बेदखल कर दिए। 17 साल तक बिहार की राजनीति को अपने आसपास घूमाते रहे।
कभी भी नीतीश कुमार की राजनीति अकेले जमी नहीं। कोशिश कर चुके हैं। मगर किसी का साथ मिल जाए तो चमक उठते हैं। सबसे पहले उन्होंने बीजेपी को साधा। मगर दिल नहीं लगा पाए। 2014 में पुराने दोस्त लालू यादव के पास लौट आए। मन नहीं माना तो एक बार फिर बीजेपी के पास चले गए। भारतीय जनता पार्टी ने खुले हाथों से स्वागत किया। 2020 चुनाव साथ में (बीजेपी-जेडीयू) लड़े। मगर नीतीश कुमार को अपने पुराने दोस्त (लालू यादव) की एक बार फिर याद आने लगी। पलटी मारे और अगस्त में महागठबंधन की सरकार ने शपथ ली। 2025 तक अगर नीतीश का मन नहीं डोला तो ठीक, वरना…लालू यादव से बेहतर नीतीश कुमार को कौन समझेगा?
2025 बिहार चुनाव तक क्या-क्या हो सकता है?
गणित में दो जोड़ दो भले ही चार होता हो मगर राजनीति में ऐसा नहीं होता है। वैसे तो नीतीश कुमार ने महागठबंधन की बैठक में साफ-साफ कह दिया कि 2025 का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। आगे इन्हीं को सबकुछ देखना है। नीतीश कुमार ने अपना उत्तराधिकारी के तौर पर तेजस्वी के नाम की घोषणा कर दी। ये तो बिल्कुल आइडियल कंडिशन है।
पॉलिटिक्स में चीजे वैसी होती नहीं जैसी दिखती है। बोला कुछ और जाता है, सुना कुछ और जाता है और होता कुछ और है। नीतीश कुमार की बातों का मतलब ये भी हो सकता है कि 2025 तक इधर-उधर नहीं कीजिए वरना मैं फिर किसी भी फैसले के लिए स्वतंत्र हूं। इसके बाद की जिम्मेदारी मेरी नहीं होगी। नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू को 2025 तक संभाल कर रखना आरजेडी की मजबूरी है।
2025 तक नीतीश कुमार के साथ रहेंगे जेडीयू के नेता?
जनता दल यूनाइटेड का चेहरा नीतीश कुमार हैं। सेकेंड लेयर के नेताओं में नीतीश कुमार जैसी बात नहीं है। नीतीश कुमार ने ऐसा किसी को नहीं बनाया जो उनका उत्तराधिकारी बन सके। किसी भी संस्था को चलाने के लिए सेकेंड लेयर (उत्तराधिकारी) का होना बहुत जरूरी होता है। 17 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार को अपनी विरासत संभालने के लिए वहां जाना पड़ा, जिसके खिलाफ लड़कर वो खड़े हुए।
जेडीयू के ज्यादातर नेता वैसे ही हैं, जिन्होंने लालू यादव के खिलाफ राजनीति की। एंटी लालू वोट की बदौलत सांसद और विधायक बने। लालू विरोध ही उनकी पहचान है। ऐसे नेताओं के लिए आइटेंटीटी क्राइसिस वाली स्थिति हो जाएगी। जिसके खिलाफ राजनीतिक करियर की शुरुआत किए, अब उसी पार्टी का झंडा ढोना पड़ेगा। मौजूदा जेडीयू नेताओं के लिए ये सबसे बड़ा धर्मसंकट है। उससे बड़ा धर्मसंकट ये कि मतदाताओं को कैसे समझाएंगे कि वोट दीजिए। ऐसे नेताओं के लिए सबसे मुफीद जगह बीजेपी होगी। भारतीय जनता पार्टी ने खुले बांहों से स्वागत का एलान भी कर दिया है।