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क्या बीजेपी से छिटकेंगे अति पिछड़े वोटर

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बृजेश शुक्ल

लखनऊ के पास काकोरी के टिकरिया गांव में क्षेत्र समिति के सदस्य राम प्रसाद मौर्य कहते हैं कि वह बीजेपी को नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण कमल को वोट देते हैं। बीजेपी को वोट देने के पीछे न स्वामी प्रसाद मौर्य हैं और ना ही कोई अन्य नेता। उधर, स्वामी प्रसाद मौर्य कहते हैं कि उन्होंने 2017 में बीएसपी का साथ छोड़ा तो मायावती 19 सीटों पर सिमट गईं और अब बीजेपी से अलग हुए हैं तो वह भी सत्ता से बाहर हो जाएगी। वास्तव में उत्तर प्रदेश की लड़ाई अब अति पिछड़ों के वोट पर सिमट गई है। 2014 के लोकसभा चुनाव, 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में अति पिछड़ों का समर्थन बीजेपी के लिए संजीवनी साबित हुआ था। लेकिन इस बार विपक्ष, विशेषकर समाजवादी पार्टी को लगता है कि अति पिछड़ा वोट उसके पाले में आ सकता है। इसके लिए वह अति पिछड़ों के कई नेताओं को अपनी ओर करने के लिए पूरा जोर लगा रही है। स्वामी प्रसाद मौर्य का बीजेपी छोड़ना और अखिलेश यादव से मिलना इसी रणनीति का हिस्सा है।

दिक्कत वाले दो साल

वैसे, इसमें कोई शक नहीं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में अति पिछड़ा वर्ग ही निर्णायक साबित होगा। योगी आदित्यनाथ सरकार के पांच वर्ष पूरे होने वाले हैं और इस दौरान कोरोना महामारी ने आम लोगों के सामने गंभीर संकट पैदा किया। इस दौरान बहुत से लोगों का रोजगार गया। बड़ी संख्या में पलायन हुआ। किसान आंदोलन हुआ। आवारा पशु किसानों के सामने संकट बने रहे। विपक्ष का मानना है कि इन सब वजहों से लोग योगी सरकार से नाराज हैं और इस चुनाव में प्रधानमंत्री द्वारा योगी के पक्ष में शुरू किया गया चुनावी अभियान भी बीजेपी को बचा नहीं पाएगा।

समाजवादी पार्टी पहले से ही अति पिछड़ों के बीच लोकप्रिय रही है, लेकिन 2014 में अति पिछड़ा मतदाता नरेंद्र मोदी के साथ ऐसा जुड़ा कि चुनाव-दर-चुनाव उन्हीं के लिए वोट करता रहा। विपक्षी दलों को लगता है कि इस बार सत्ता विरोधी रुझान का असर पड़ा है और अति पिछड़े वर्ग के लोग भी योगी सरकार को हराने में लगेंगे। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव वे सारे प्रयास कर रहे हैं, जिससे अति पिछड़े वोट को अपनी झोली में डाल सकें। उन्नाव जिले के नवाबगंज के रहने वाले संतराम सचान कहते हैं, ‘पिछली बार मैंने बीजेपी को वोट दिया था। इस बार साइकिल के साथ जाऊंगा।’ क्या वास्तव में गांव में भी ऐसा बदलाव हो रहा है या सिर्फ कुछ लोग बदल रहे हैं? इस पर उनका जवाब है, ‘बहुत से लोग अभी भी मोदी के साथ हैं। लेकिन उनका अपना मत है और हमारा अपना।’

इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले 2 वर्षों में लोगों की परेशानियां बढ़ी हैं और अति पिछड़े वर्ग में एसपी ने भी सेंधमारी की है। लेकिन जमीन एक और कथा चल रही है। केंद्र और राज्य सरकार की कई योजनाओं ने तमाम समीकरण बदल डाले हैं। कानपुर जिले के महाराजपुर के श्री राम कुशवाहा कहते हैं कि नेताओं के अपने स्वार्थ हैं और आम आदमी के अपने हित। वह बताते हैं कि नेता नगरी के पास पैसे की कमी नहीं है। उनकी लड़ाई टिकट और सत्ता के के लिए है और वह अपने ढंग से निर्णय लेते हैं। जबकि गांव में बैठा हुआ गरीब इस बात पर निर्णय ले रहा है कि सरकार से उसे क्या मिल रहा है, क्या नहीं मिल रहा। यदि मिल भी रहा है तो क्या वह उसके लिए पर्याप्त है?

केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाई गई तमाम योजनाओं का लाभ वैसे तो पूरे समाज को हुआ है, लेकिन सर्वाधिक लाभ अति पिछड़ों और दलितों को हुआ। इसका असर भी दिख रहा है। लखनऊ के ही सहादतगंज मोहल्ले के रहने वाले राजेश कश्यप कहते हैं कि इस सरकार ने जो मदद की है, कोई कर नहीं सकता। इसलिए वह फिर से एक बार इसी सरकार को लाना चाहते हैं। क्या होगा इस चुनाव में? सीतापुर के अटरिया के लल्लन प्रजापति इस सवाल का सीधे जवाब नहीं देते कि इन चुनावों में क्या होगा, लेकिन बताते हैं कि श्रमिक कार्ड बना था और खाते में एक हजार रुपये आया है। मोदी और योगी कुछ सहायता कर तो रहे हैं। अनाज मिल रहा है। पहले तो सारा अनाज कोटेदार ठेकेदार ही हड़प जाते थे। पिछली बार उनका वोट समाजवादी पार्टी को गया था, लेकिन इस बार वह अपने वोट में बदलाव की बात करते हैं।

यह एक सचाई है कि बीजेपी ने मतदाताओं का एक ऐसा वर्ग तैयार कर दिया है, जो ज्यादा बोलता नहीं है लेकिन वोट देता है। कमोबेश इसी तरह का मतदाता पहले बहुजन समाज पार्टी के पास हुआ करता था। उसी की बदौलत वह चुनाव परिणाम आने पर राजनीतिक विश्लेषकों को आश्चर्य में डाल देती थी।

योजनाओं का लाभ

बहरहाल, जमीनी हकीकत की पड़ताल करने के बाद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि समाजवादी पार्टी अति पिछड़े वोटों को अपनी ओर करने का भरपूर प्रयास कर रही है और इसमें कुछ हद तक सफल भी हुई है, लेकिन कोई बहुत बड़ी सेंध अब तक नहीं लगा पाई है। बीजेपी का कुछ वोट कटा है, लेकिन केंद्र और राज्य की लोकलुभावन योजनाओं ने बहुत गहरा असर छोड़ा है और बहुत से ऐसे मतदाता बीजेपी के साथ जुड़ गए हैं, जो पहले विपक्षी दलों से जुड़े हुए थे। लखनऊ में ही मजदूरी करने वाली सुनीता लोधी भी इन्हीं योजनाओं की बात करती हैं। बीजेपी जानती है कि अति पिछड़े वर्ग का समर्थन यदि खिसका तो सत्ता उसके हाथ से खिसक जाएगी। विपक्षी दल, विशेषकर समाजवादी पार्टी इस वर्ग पर गहरी नजर जमाए हुए है। अति पिछड़े वोटों के लिए राजनीतिक दाव-पेच तीखे होते जा रहे हैं। विपक्षी दलों के लिए यह लड़ाई आसान नहीं है।

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