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नहीं छिपेगा,लाख छिपाओ, असली – नकली चेहरा?

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शशिकांत गुप्ते

सीतारामजी इनदिनों वर्तमान राजनीति की समीक्षा लिख रहें हैं। देश – काल और परिस्थिति के नियमानुसार सामाजिक,
राजनैतिक,धार्मिक,आर्थिक,
और सांस्कृतिक क्षेत्र में बदलाव होता है। परिवर्तन संसार का नियम है।
वर्तमान राजनीति में विपक्ष को आत्म विश्लेषण करने की आवश्यकता है।
एक दशक पूर्व जब विपक्ष सत्ता में था। तात्कालिक सत्ता एकदम नादान थी। तात्कालिक सत्ता पर तात्कालिक विपक्ष जैसे ही आरोप लगाता था,सत्ता तुरंत जांच करवा देती थी। आरोपियों को जेल भी भेज देती थी।
आज वैसा नहीं है।
आज विपक्ष की आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज इस कहावत को चरितार्थ कर रही है।
तात्कालिक सत्ता, विरोधियों को रिक्त गैस सिलेंडर उठाकर नाचने देती थी। तात्कालिक सत्ता ने कभी भी आंदोलनकारियों के रास्ते में नुकीले कील नहीं गाढ़े?
आरोपियों के घरों पर बुलडोजर नहीं चलाए? बुलडोजर जैसे इमारतों को तहस-नहस (Destroyed) मतलब तबाह करने वाले यंत्र को संस्कृति नहीं कहा?
एक दशक पूर्व “गरल” काल चल रहा था।
अब अमृतकाल चल रहा है। अमृतकाल में जघन्य अपराधियों को जेल से रिहा कर उन्हें पुष्पहार अर्पित कर बाकायदा मुंह मीठा कर संस्कारित कहा जाता है। विपक्ष ने सत्ता में होते हुए कभी ऐसा साहसिक कार्य किया?
आज एक ओर विकास का ढिंढोरा पीटा जा रहा है,दूसरी ओर देश पर कर्ज की रकम दिन-दूनी और रात चौगुनी गति से बढ़ रही है। यह प्रगति की नई परिभाषा गढ़ी गई है।
विपक्ष जब सत्ता में था जब उसने देश के अस्सी करोड़ लोगों को कभी मुफ्त राशन बांटा?
आज “गर्व” के साथ अस्सी करोड़ देशवासियों को मुफ्त अनाज बांटा जा रहा है।
यही तो अमृतकाल की उपलब्धि है।
आज विपक्ष सिर्फ और सिर्फ महंगाई,बेरोजगारी,भुखमरी और किसानों की समस्याएं पर ही अटका हुआ है।
विपक्ष को मंदिरों के परिसर विशालकाय Corridor में तब्दील होते,दिखाई नहीं दे रहें हैं।
पूरे देश में हर शहर,नगर गांव में ऐसे Corridor निर्मित होंगे तब भिखारियों को मुफ्त भीख मिलेगी। भिखारी,भीख में, भोजन और दक्षिण प्राप्त कर तृप्त होंगे और वे दानवीरों को आशीर्वाद देंगे।
विपक्ष ऐसे पुण्य का कार्य कभी कर सकता है?
अंत में साहिर लुधियानवी रचित निम्न पंक्तियों का स्मरण होता है।
नाज़-ओ-अंदाज़ से कहते हैं कि जीना होगा
ज़हर भी देते हैं तो कहते हैं कि पीना होगा
जब मैं पीता हूँ तो कहतें है कि मरता भी नहीं,
जब मैं मरता हूँ तो कहते हैं कि जीना होगा

कथित अमृत काल में आमजन की ये वस्तुस्थिति है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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