इस बात में कोई शक नहीं कि हम उन लोगों में से एक हैं जो 12 कुंभ होने के बाद 144 साल बाद आने वाले महाकुंभ का हिस्सा हैं। हर परिवार की तीसरी पीढ़ी को महाकुंभ देखने का मौका मिलता है। ईश्वर ने हमें यह मौका दिया, इसके लिए हमें उनका शुक्रिया करना चाहिए। लेकिन इस बीच में कई सवाल कुंभ की सड़कों पर घूमते हुए मन में आते हैं। इनमें से एक सवाल यह भी है कि 2025 से जन्म लेने वाले बच्चों को जनरेशन अल्फा के बाद अब जेन बीटा में गिना जाएगा, पर क्या कुंभ जैसी विरासत को संभालने के लिए वो तैयार होंगे। जिस तरह इस सवाल ने कुंभ की सड़कों पर सैकड़ों लोगों के बीच में जन्म लिया उसी तरह इसका उत्तर भी वहीं छिपा हुआ मिला। आइए यात्रा करते हैं एक ऐसे कुंभ की जो विरासत और तकनीक की एक मिसाल कायम कर रहा है।
पहला उदाहरण उस समय देखने को मिला जब कुंभ की सड़कों पर टहलते हुए आपकी नजर एक बोर्ड पर पड़ती है, जिसमें कुंभ को लेकर जानकारी थी। अगर आपको ठहरने में दिक्कत हो रही है और आपके पास मोबाइल है तो आपकी यह समस्या चंद मिनटों में खत्म हो सकती है। आपको बस मोबाइल की कुछ एप का इस्तेमाल करना है। पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए कुंभ मेला क्षेत्र में 160000 टेंट, 2200 विशेष टेंट, 218 होटल, 204 गेस्ट हाउस और 90 धर्मशाला एवं पेइंग गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं। इतना ही नहीं अगर आपको आकस्मिक सेवाएं, आवास एवं आहार, मेला प्रशासन, यूपी की उपलब्धि, कुंभ सहायक चैटबॉट की जानकारी चाहिए तो वो भी उपलब्ध है।
आप सोच रहे होंगे कि मैं बच्चों की बात करते-करते अचानक से क्यूआर कोड और एप की बात क्यों करने लगा हूं तो मैं आपको बता दूं। हमारी संस्कृति की यह एक खूबसूरती है कि वो तकनीक को भी अपने साथ लेकर चलती है और शायद यही कारण है कि वो हर दिन बड़ी होती जा रही है। तकनीक उसकी विरासत को सजोने में मदद कर रही है। वहीं बच्चों की परवरिश उन्हें आस्था की एक ऐसी शक्ति के साथ जोड़ रही है, जिसके वो जीवन भर साक्षी रहेंगे।
ऐसा ही एक उदारहण उस समय देखने को मिला जब मैं त्रिवेणी घाट के संगम पर था। वहां पर मेरी मुलाकात राजा बाबू और शिवानी नाम के दो बच्चों से हुई, जो भगवान का भेष धारण कर इतनी ठंड में भी अपनी आस्था के प्रतीक बनकर घूम रहे थे। श्रद्धालु उन्हें भगवान मानकर उनके चरण छूते और उनका आशीर्वाद ले रहे थे। ये बच्चे मिर्जापुर से आए हुए थे। लेकिन यह इस समय तकनीक नहीं कुंभ की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए आए हुए थे।
अब मैं आपको आस्था और तकनीक के एक और बेहतरीन उदाहरण से मिलाता हूं। इस बार महाकुंभ मेले में रेलवे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक का ज्यादा प्रयोग हो रहा है। अगर जंक्शन के किसी क्षेत्र में क्षमता से ज्यादा भीड़ होती है तो सायरन बजना शुरू हो जाएगा। इससे समय रहते वहां भीड़ हटाने का प्रबंधन किया जा सकेगा। उत्तर मध्य रेलवे के प्रयागराज मंडल में यह प्रयोग पहली बार प्रयागराज और कानपुर सेंट्रल पर किया जाना है। इन उदाहरणों ने हमें इस बात के लिए आश्वस्त कर दिया है कि ‘जनरेशन अल्फा’ हो या ‘जेन बीटा’ हमारे नन्ही पीढ़ी हमारी विरासत को बेहतर तरीके से संभालने के लिए तैयार है।
Add comment